मॉरीशस में हिंदी पत्रकारिता

मॉरीशस की हिंदी पत्रकारिता का इतिहास लगभग 112 वर्ष पुराना है। इन वर्षों में मॉरीशस से 50 से अधिक पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। मॉरीशस की हिंदी पत्रकारिता के उद्भव और विकास में हिंदी परिषद, आर्य परोपकारिणी सभा, हिंदी प्रचारिणी सभा, आर्य प्रतिनिधि सभा, हिंदी लेखक संघ, महात्मा गाँधी संस्थान, हिंदी शिक्षक संघ, हिंदी संगठन आदि संस्थाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

हिंदुस्तानीपत्र का प्रकाशन

मॉरीशस में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत का श्रेय मणिलाल डॉक्टर को जाता है जो महात्मा गाँधी की प्रेरणा से मॉरीशस आए थे। उन्होंने 15 मार्च, 1909 को ‘हिंदुस्तानी’ पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया। मणिलाल डॉक्टर के आगमन के समय मॉरीशस में अँग्रेजी एवं फ्रेंच की 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित होती थीं। उन्होंने ऐसे प्रतिकूल परिवेश में हिंदी पत्रकारिता शुरू करके एक विलक्षण कीर्तिमान स्थापित किया। प्रारंभ में ‘हिंदुस्तानी’ गुजराती और अँग्रेजी में निकलता था। यह चार पन्नों का समाचार-पत्र था। सन् 1910 में गुजराती के स्थान पर हिंदी को रखा गया। इस पत्र के मुखपृष्ठ का आदर्श वाक्य था- “व्यक्ति की स्वतंत्रता! मनुष्य की समानता! जातियों का भाईचारा !”

इस पत्र के माध्यम से मणिलाल मॉरीशस के भारतीयों का नवजागरण करना चाहते थे। शुरुआत में यह साप्ताहिक पत्र था और 1910 में इसे दैनिक कर दिया गया था। मणिलाल के प्रयासों से मॉरीशस के इतिहास में पहली बार दीन-हीन और असहाय शोषित भारतवंशियों की ओर से उनके लिए न्याय और हक की माँग करने वाला एक पत्र अस्तित्व में आया था, किंतु उस समय प्रवासी भारतीयों के बीच पाठकों और सहयोगियों का अभाव था, अतः मणिलाल डॉक्टर को उसे चलाने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कम ग्राहक होने के कारण इससे कोई आर्थिक लाभ नहीं होता था। वैसे लाभ कमाना मणिलाल का प्रयोजन था भी नहीं। वर्ष 1911 में मणिलाल ने मॉरीशस छोड़ते समय प्रिंटिंग प्रेस और समाचार-पत्र दोनों आर्य सभा को दान कर दिए। मणिलाल डॉक्टर के प्रस्थान के बाद संपादन का कार्य तेलुगु भाषी श्री नरसिमुल्लू, श्री ओनिस, पंडित रामअवध और पंडित आत्माराम विश्वनाथ ने सँभाला था। दिनाँक दो मार्च, 1913 के ‘हिंदुस्तानी’ के अंक में प्रकाशित ‘होली’ शीर्षक कविता और ‘सत्य होली’ शीर्षक लेख को मॉरीशस की हिंदी में प्रथम प्रकाशित साहित्यिक रचना माना जाता है। मॉरीशस के अभिलेखागार में ‘हिंदुस्तानी’ के केवल दो अंक (15 मार्च, 1909 और दो मार्च, 1913) ही उपलब्ध हैं। वर्ष 1914 में आर्थिक और अन्य प्रकार की प्रतिकूल स्थितियों के कारण इस दैनिक पत्र का प्रकाशन बंद हो गया, किंतु ‘हिंदुस्तानी’ के साथ ही मॉरीशस में हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन का सिलसिला प्रारंभ हो गया था।

वर्ष 1910 में मणिलाल डॉक्टर ने पोर्टलुई में आर्य समाज की स्थापना की थी। वे आर्य समाजी नहीं थे। फिर भी मॉरीशस के हिंदुओं को अंधविश्वास और रूढ़िवाद से उबारकर स्वस्थ परंपराओं के पालन के प्रति प्रेरित करना चाहते थे और धर्म परिवर्तन से बचाना चाहते थे। उस समय मॉरीशस में जाति-पाति और ऊँच-नीच के झगड़े होते ही रहते थे। वर्ष 1903 में मॉरीशस के क्यूर्पिप क्षेत्र के सजग हिंदुओं ने आर्य समाज की स्थापना की थी, किंतु कुछ ही समय बाद यह संस्था निष्क्रिय हो गई थी। मॉरीशसवासी मणिलाल डॉक्टर के 1910 में स्थापित आर्य समाज को ही मॉरीशस के नवजागरण में मील का पत्थर मानते हैं।

मॉरीशस आर्य पत्रिका

मणिलाल डॉक्टर द्वारा दानस्वरूप प्रदत्त प्रेस से ही 1911 में मॉरीशस आर्य पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। प्रारंभिक दौर में इस साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन आर्य सभा के पदाधिकारियों की देख-रेख में हुआ। मॉरीशस आर्य पत्रिका एक पाक्षिक पत्रिका पाकारियों की देखरेखकों में से एक श्री खेमलाल लालाजी थे। क तक यह स्वामी स्वतंत्र नंद जी महाराज के संपादकत्व में निकलती रही। इसमें आर्य समाज के सिद्धांतों पर लेखों के अतिरिक्त कविता, कहानी, निबंध आदि छपते थे। आर्थिक कठिनाइयों के कारण दो साल बाद इस पत्र को बंद करना पड़ा, किंतु 1924 में इसका पुनः प्रकाशन हिंदी-अँग्रेजी में प्रारंभ हुआ। मॉरीशस के राष्ट्रीय अभिलेखागार में मुझे इस साप्ताहिक पत्र का 13 फरवरी, 1931 का अंक प्राप्त हुआ। पत्र के संपादक के रूप में बाबु मूंसा सिंह का नाम प्रकाशित हुआ है। पत्र के मुख पृष्ठ पर चार कॉलम में हिंदी-अँग्रेजी में सामग्री प्रकाशित हुई है। ‘भारत का सूर्यास्त हो गया’ शीर्षक से पं. मोतीलाल नेहरू के निधन पर संपादक के विचारों को हिंदी में विस्तार से प्रकाशित किया गया है। इसी पृष्ठ पर 14 फरवरी, 1931 को सायंकाल 7.30 बजे ऋषिबोध महोत्सव समारोह का आमंत्रण वा. विष्णुदयाल मंत्री, पोर्ट लुईस समाज की ओर से प्रकाशित हुआ है। इसी पृष्ठ पर स्वामी दयानंद के विचारों पर भी सामग्री प्रकाशित हुई है। सन् 1925 में महर्षि दयानंद जन्म शती के अवसर पर इस पत्रिका का विशेषांक ‘शताब्दी अंक’ के नाम से ही प्रकाशित हुआ था। इस पत्रिका के द्वारा न केवल वैदिक धर्म का जोर-शोर से प्रचार हुआ बल्कि हिंदी भाषा और साहित्य को संबल भी प्राप्त हुआ। यह आर्य समाज का प्रथम हिंदी पत्र था और इसके द्वारा मॉरीशस में साहित्य सृजन को प्रोत्साहन मिला। कई लेखक, कवि और संपादक तैयार हुए। प्रसार संख्या या आर्थिक लाभ की दृष्टि से यह पत्रिका कमजोर ही रही। वर्ष 1936 से ‘मॉरीशस आर्य पत्रिका’ का नाम बदलकर ‘जागृति’ कर दिया गया।

मॉरीशस इंडियन टाइम्स

इंडो मॉरीशस संघ के तत्वावधान में चार दिसंबर, 1920 को ‘मॉरीशस इंडियन टाइम्स’ दैनिक पत्र का प्रकाशन अँग्रेजी, हिंदी और फ्रेंच में श्री के. द्वारका के नेतृत्व में शुरू हुआ। मुझे मॉरीशस के राष्ट्रीय अभिलेखागार में इस दैनिक पत्र के सात, आठ, नौ नवंबर और पाँच दिसंबर, 1921 के अंकों का अवलोकन करने का अवसर मिला। पत्र में प्रथम पृष्ठ के अंत में संपादक का नाम ए.एफ. फोकीर और प्रोप्रायटर का नाम जे. निरंजन दर्शाया है। वास्तव श्री फोकीर अँग्रेजी संस्करण के संपादक रहे। पत्र का दैनिक मूल्य पाँच सेंट, मासिक एक रुपया और वार्षिक मूल्य 12 रुपये दर्शाया गया था। अप्रवासियों को जागृत करना और स्थानीय समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित करना इसका प्रमुख उद्देश्य था।

इस पत्र के एक वर्ष पूर्ण होने पर प्रकाशित संपादकीय में प्रसन्नता इस प्रकार व्यक्त की गई- “गत साल में कई एक पुरुषों के चित्तों में अपनी जाति भलाई का शुभ संकल्प उत्पन्न हुआ और बाबू गणेश सिंह अग्रसर हुए। सब जाति-हितैषी भाइयों ने इस लोकोपकार में उदारता से दान दिया और ‘मॉरीशस इंडियन टाइम्स’ का जन्म हुआ और आज इसको चलते एक वर्ष हुआ एवं आज इसका वार्षिकोत्सव है। बहुत अन्य जाति वाले कहते थे कि हिंदुस्तानी लोग समाचार-पत्र नहीं चला सकते हैं। कोई-कोई यह भी श्राप दे दिए थे कि यह पत्र दो-चार महीने में बंद हो जाएगा किंतु हमारे जाति हितैषी ग्राहकों की बड़ी कृपया सहानुभूति से टाइम्स अपना एक वर्ष का आयु आज प्राप्त किया।”

इस समाचार-पत्र में मॉरीशस के प्रमुख घटना क्रम के अलावा ‘तार समाचार’ शीर्षक से भारत की खबरें, ‘स्थानिक समाचार’ में संक्षिप्त खबरें, ‘चिट्ठी पत्री’ में पाठकों के पत्र के अलावा लघु विज्ञापन भी प्रकाशित होते थे। इस समाचार-पत्र का प्रकाशन वर्ष 1924 तक ही हो पाया।

मॉरीशस मित्र

सन् 1924 में ‘मॉरीशस मित्र’ का प्रकाशन उच्च कोटि के विद्वान पं. रामअवध शर्मा के संपादन में हुआ। उन्होंने अत्याचारों से पीड़ित जनता के राजनैतिक एवं सामाजिक उत्थान हेतु निरंतर लेख लिखकर आवाज उठाई। इस पत्र का प्रकाशन 1932 तक ही हो पाया।

आर्यवीर

मॉरीशस में ‘आर्यवीर’ पत्र साप्ताहिक पत्र का संपादन भी हुआ। इसका पहला अंक अँग्रेजी-हिंदी में प्रकाशित हुआ। मुखपृष्ठ पर अँग्रेजी सामग्री और आगे के पृष्ठों में हिंदी सामग्री प्रकाशित होती थी। पत्र का उद्देश्य इन शब्दों में स्पष्ट किया गया है- “आर्यवीर को जन्म देने में हमारा उद्देश्य क्या है, इस बात को हम जनता के समक्ष रखना उचित समझते हैं, उद्देश्य रहित कार्यारंभ बेपेंदी के लोटे की तरह है। अतः कार्य में प्रवृत्त होने से पहले हमें अपने उद्देश्यों को निश्चित करना परमावश्यक है और उद्देश्य भी वही होना चाहिए जिससे स्वजाति, देश और धर्म की रक्षा हो।”

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