‘एक बार और जाल फेंक रे मछेरे/जाने किस मछली में बंधन की चाह हो’ जैसे अनेकों कालजयी गीतों के कवि डॉ बुद्धिनाथ मिश्र आधी सदी से हिन्दी काव्य मंच के गौरव हैं,जिनकी उपस्थिति नेपाली, बच्चन, नीरज की जादुई गीत परंपरा की उपस्थिति है। एलेग्जेंडर पुश्किन एवार्ड (मास्को), उ.प्र. हिन्दी संस्थान का लोहिया सम्मान (₹ पाँच लाख) साहित्य भूषण(₹दो लाख) परंपरा ऋतुराज, परिवार सम्मान (मुंबई) काव्यवीणा(कलकत्ता) जैसे शताधिक पुरस्कारों से सम्मानित बुद्धिनाथ जी आज हिन्दी काव्य मंच पर सबसे ज्यादा समादृत , अंतरराष्ट्रीय ख्याति के कवि हैं, जिनकी हिन्दी और मैथिली रचनाएं देश -विदेश के विश्वविद्यालयों में पढ़ायी जाती हैं और जिन पर शोध किये जाते हैं। आपने न्यूयॉर्क और जोहान्सबर्ग के विश्व हिंदी सम्मेलन में कवियों का प्रतिनिधित्व किया।

        समस्तीपुर (बिहार) के देवधा गाँव में 1 मई,1949 को विद्वानों के परिवार में जन्मे श्री मिश्र ने संस्कृत विश्वविद्यालय, काशी से ‘मध्यमा’ , बीएचयू से एमए (अंग्रेजी), पीएचडी, गोरखपुर विवि से एमए (हिन्दी) किया और वाराणसी में ‘आज’ दैनिक में संपादन, यूको बैंक, हिन्दुस्तान कॉपर लि० और ओएनजीसी के मुख्यालय में निगमित राजभाषा प्रभारी ।

               दूरदर्शन और आकाशवाणी के राष्ट्रीय कार्यक्रमों में 1969 से भाग लेनेवाले श्री मिश्र संप्रति अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य भारती के केन्द्रीय उपाध्यक्ष हैं।

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