नई दिल्ली, 1 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एनसीईआरटी और एससीईआरटी को देशभर के स्कूलों में ट्रांसजेंडर-समावेशी यौन शिक्षा लागू करने की याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमति दे दी है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने नोटिस जारी करते हुए केंद्र, एनसीईआरटी और महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक सरकार से मामले में जवाब मांगा है।

12वीं कक्षा के एक छात्र ने याचिका दायर कर कहा है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद, स्कूलों के पाठ्यक्रम में जेंडर पहचान, जेंडर विविधता और लिंग और जेंडर के बीच के अंतर को लेकर कोई जानकारी नहीं दी गई है।

याचिकाकर्ता ने महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा की, जिसमें पाया गया कि केरल को छोड़कर सभी जगह ट्रांसजेंडर-समावेशी शिक्षा का अभाव है।

याचिका में कहा गया है कि यह बहिष्कार अनुच्छेद 14, 15, 19(1)(ए), 21 और 21ए का उल्लंघन करता है। इसके साथ ही अनुच्छेद 39(ई)-(एफ), 46 और 51(ई) के निर्देशक सिद्धांतों की अवहेलना करता है। इससे समाज में इस वर्ग के प्रति भेदभाव और उपेक्षा बनी रहती है।

याचिका में आगे कहा गया कि भारत में ट्रांसजेंडर साक्षरता दर केवल 57.06 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत लगभग 74 प्रतिशत से काफी कम है, जो सामाजिक बहिष्कार और नीति निष्क्रियता के संचयी प्रभाव को दर्शाता है।

याचिका में कहा गया कि चूंकि 23 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों का पूरी तरह या काफी हद तक पालन करते हैं, इसलिए ट्रांसजेंडर-समावेशी सामग्री की कमी का संवैधानिक अनुपालन और सामाजिक न्याय पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।

याचिकाकर्ता काव्या मुखर्जी ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि एनसीईआरटी, एससीईआरटी और अन्य संबंधित अधिकारियों को स्कूलों के मुख्य पाठ्यक्रम और परीक्षा योग्य पाठ्यपुस्तकों में वैज्ञानिक रूप से सटीक, उम्र के अनुकूल और ट्रांसजेंडर-समावेशी व्यापक यौन शिक्षा को शामिल करने का निर्देश दिया जाए, जो संवैधानिक गारंटी, कानूनी आदेशों और बाध्यकारी न्यायिक निर्णयों के अनुरूप हो।

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