
आप कुछ दिन और रुकते..
संजीव साहब कुछ जल्दी ही इस दुनियां से कूच कर गए
भारतीय सिनेमा के सब से प्रतिभा संपन्न अभिनेता, जो मानव जीवन के भिन्न भिन्न किरदारों को बड़ी सहजता से रुपहले परदे पर जीने के लिए सदा तैयार, वे किसी इमेज में नहीं बंधे, जो रोल ऑफर हुआ, उसे चुनौती मान स्वीकार किया, और फिर उस किरदार में मानो प्रवेश कर गए.

संजीव जी को कुछ शब्दों मे समेट पाना संभव नहीं.. वे विस्तृत है, उनके अभिनय मे इतनी विविधता है की उसकी व्याख्या, वर्णन मे एक पुस्तक भी कम पड़े
आप याद करिये त्रिशूल फ़िल्म और स्वार्थी अभिमानी बिजनेसमैन पिता और उनके समक्ष उनका बेटा अमिताभ या फिर सिलसिला फ़िल्म का अपनी पत्नी पर सहज विश्वास करने वाला डॉक्टर या फ़िल्म आंधी मे महानायिका सुचित्रा सेन के पति के रूप मे, फ़िल्म शोले में ठाकुर तो उनकी एक सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म कोशिश, सुनने और बोलने में असमर्थ, जिस में जया के साथ बहुत ही मार्मिक अभिनय किया,

ये सब उनके अभिनय का चरम था..
वे शानदार कॉमेडियन भी थे, फ़िल्म अंगूर, जो हिन्दी सिनेमा की क्लासिक कॉमेडी फ़िल्म मानी जाती है (शेक्सपीयर के नाटक पर आधारित थी) दो जुड़वे एक समान दिखने वाले भाईयों की मज़ेदार कथा, जिसे संजीव ने अपने अभिनय से अमर कर दिया
उन्हें जो रोल दिया गया, उसे सहज स्वीकार किया, फ़िल्म मौसम मे वे शर्मीला के प्रेमी और पिता दोनों है, आत्म ग्लानि से भरा हुआ पात्र, सब कुछ बड़ा सहज लगता है, आप संजीव कुमार के साथ यात्रा करते है
आप शोले फ़िल्म के ठाकुर को कभी नहीं भूल सकते..
गब्बर ये हाथ नहीं फांसी का फंदा है..
उफ़ एक एक डायलॉग जो संजीव कुमार ने बोले अब तक लोगो को याद है
हम ने बात की शुरुआत की थी वे जल्दी चले गए, यदि हार्ट अटैक नहीं आता और वे इस संसार मे और रहते तो निश्चित ही उन किरदारों को निभाते जो दूसरे अभिनेताओं के लिए संभव नहीं था
उस के जैसा सहज सरल इंसान मिलना मुश्किल और पात्र के चरित्र मे रस बस जाना और अपने अभिनय से उसे अमर कर देना..
ऐसे ही कुछ थे संजीव कुमार.
संजय अनंत ©️