
भाषा विज्ञान और शोध क्षेत्र की चुनौतियों के मद्देनजर वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में 15 जून 2025 को प्रख्यात भाषाविद डॉ॰ जगन्नाथन से सीधे संवाद का आभासी कार्यक्रम आयोजित किया गया। संवादी की सशक्त भूमिका वैश्विक हिन्दी परिवार के न्यासी डॉ॰ जवाहर कर्नावट ने बेहतरीन समन्वय साधते हुए निभाई। हिन्दी सेवी एवं विद्वान डॉ॰ विजय कुमार मल्होत्रा, विशिष्ट अतिथि रहे। भाषा विज्ञानी एवं रेल मंत्रालय में पूर्व निदेशक डॉ॰ बरुण कुमार ने शालीन सान्निध्य प्रदान किया। आरंभ में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो॰ ओम प्रकाश द्वारा आत्मीयता से स्वागत किया गया। इस कार्यक्रम में देश-विदेश से अनेक साहित्यकार, विद्वान विदुषी, तकनीकीविद, प्राध्यापक,अनुवादक, शिक्षक, राजभाषा अधिकारी, शोधार्थी, विद्यार्थी और भाषा प्रेमी आदि जुड़े थे।
हिन्दी के प्रति लगाव के सवाल पर वयोवृद्ध विद्वान व भाषा शास्त्री एवं तमिल मातृभाषी प्रो॰ जगन्नाथन ने कहा कि उनके प्रारम्भिक विद्यार्थी जीवन में तमिलनाडु के विद्यालयों में हिन्दी भाषा का पठन-पाठन होता था। उन्हें छात्रवृत्ति भी मिली। बाद में राजनीतिक कारणों से हिन्दी पठन-पाठन बंद सा हुआ। आगे की शिक्षा अपनी रुचि और लगन के कारण उन्होंने मैसूर और इलाहाबाद से ग्रहण की तथा आगरा से पीएच॰ डी॰ उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1963 में कैरियर की शुरुआत हुई। केंद्रीय हिन्दी संस्थान में 24 वर्षों तक कार्य किया और लगभग छह दशक हिन्दी भाषी क्षेत्र में सेवारत रहे। उन्हें हिन्दी भाषा के लिए भाषा प्रशिक्षण, नवीकरण,गहन हिन्दी शिक्षण,प्रयोजन मूलक हिन्दी, कोश विज्ञान, विविध पाठ्यक्रम और भाषा विज्ञान के क्षेत्र में नए-नए अनुशासनों के द्वार खोलने के अवसर मिले तथा 4 वर्ष तक टुबैगो त्रिनिदाद में भाषा शिक्षण पाठ्यक्रम हेतु अथक प्रयास किए। उनका मानना था कि भाषा के लिए दूसरों में जोश पैदा करना जरूरी है।

अध्येता कोश और ‘प्रयोग और प्रयोग’ के प्रश्न पर प्रो॰ जगन्नाथन ने बताया कि उन्होने शब्द कोश ,चित्र कोश ,बाल कोश और ज्ञान कोश के लिए नितांत आवश्यक और उपयोगी कार्य किया। ज्ञान कोश का कार्य अभी भी प्रगति पर है। वाक्य विज्ञान मेरा मुख्य क्षेत्र है। हमें प्रकारों का नहीं बल्कि प्रकार्यों का व्याकरण चाहिए जिसके लिए शोधार्थियों की भी कमी और शुष्कता है। अब नए ढंग के व्याकरण की जरूरत है। भाषा तकनीकी को संवादात्मक बनाना श्रेयस्कर होगा। हम अपनी भाषा और विरासत न भूलें तथा भारतीय मनीषियों के ज्ञान को आधार बनाएँ। अभिव्यक्तियों को महत्व दिया जाए और सभी भारतीय भाषाओं के लिए सही ढंग से ऑनलाइन भी अभ्यास कराया जाए। संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी को बढ़ावा दिया जाए। नई शिक्षा नीति 2020 काफी कारगर साबित होगी। हमें मानकीकरण को मानना चाहिए।
विशेष अतिथि और रेल मंत्रालय में राजभाषा के पूर्व निदेशक डॉ॰ विजय कुमार मल्होत्रा ने प्रो॰ जगन्नाथन की दीर्घावधि भाषा साधना की प्रशंसा की और मनोरंजक ढंग से “एजुटेंमेंट, रूप में हिन्दी सिखाने की अपील की। उन्होने बताया कि शिक्षण बिन्दुओं के आधार पर हिन्दी फिल्मों के 74 गानों का उदाहरण लेकर बड़ा प्रयोग किया है जो प्रभावोत्पादक रहा है। हिन्दी के लिए डिजिटल संस्कारण तथा ‘ऐप’ समय की मांग हैं।

विदेशी मूल के हिन्दी विद्वान प्रो॰ हाइंस वेसलर के सवाल पर प्रो॰ जगन्नाथन ने बताया कि ‘प्रयोग और प्रयोग’ सालवेर की किताब के आधार पर है। डॉ॰ सुरेश कुमार मिश्र ‘उरतृप्त’ के प्रश्न पर बताए कि क्ष, त्र, ज्ञ संयुक्ताक्षर नहीं बल्कि जोड़ रूप में लिया गया है। भारतीय मानक ब्यूरो मानकीकरण का प्रयास कर रहा है और ‘हिन्दी भाषा का वैज्ञानिक व्याकरण’ विषय पर उनका दो भागों में कार्य जारी है। जापान से जुड़े पद्मश्री से सम्मानित प्रो॰ तोमिओ मिजोकामि ने प्रो॰ जगन्नाथन की सेवाओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारी श्री नितिन देसाई के सवाल पर डॉ॰ जगन्नाथन जी ने कहा कि मानकीकरण को जन जागरण के साथ सिद्दत से लागू करना जरूरी है। चेन्नई से जुड़ीं यमुना जी॰ के प्रश्न पर उन्होने कहा कि उच्चारण में तमिल भाषा का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। तमिल मातृभाषी, हिन्दी ज्ञान के लिए थोड़ी मेहनत करें। दोनों भाषाएँ आसान हैं।
सान्निध्यप्रदाता डॉ॰ बरुण कुमार ने कार्यक्रम को सार्थक बताते हुए प्रो॰ जगन्नाथन की दीर्घकालिक सेवा और व्यक्तित्व -कृतित्व की प्रशंसा की तथा ऋणी रूप में आभार प्रकट किया। उन्होने कहा कि साहित्य के विद्यार्थियों को भी भाषा विज्ञान और व्याकरण का सम्यक ज्ञान होना चाहिए। इसके अलावा आलोचना के क्षेत्र में भी भाषा पक्ष उपेक्षित है तथा भाषा शास्त्र के प्रति भी रुचि कम देखी जा रही है। भाषा विज्ञान और शोध का क्षेत्र पल्लवित पुष्पित होना चाहिए।
यह कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गनिर्देशन में सामूहिक प्रयास से आयोजित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख एवं सहयोगी की भूमिका का निर्वहन ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर और पूर्व राजनयिक सुनीता पाहुजा द्वारा किया गया। अंत में भारत से डॉ॰ जयशंकर यादव द्वारा कार्यक्रम हेतु सभी के प्रति आत्मीयता के कृतज्ञता प्रकट की गई। यह कार्यक्रम ‘वैश्विक हिन्दी परिवार’ शीर्षक के अंतर्गत ‘यू ट्यूब’ पर उपलब्ध है।

रिपोर्ट लेखन – डॉ॰ जयशंकर यादव
उत्तम व सफल आयोजन ।सभी उच्च स्तरीय वरिष्ठ अधिकारी व आचार्य हैं।इनको एक मंच पर सुनना अहोभाग्य है।आचार्य जगन्नाथन उच्च विचार संपन्न भारतीय नागरिक हैं।1980 से जानता हूं ।क्षेत्र वाद 1 प्रतिशत भी नहीं है। शुभकामनाएं
इस तरह की जानकारी हमे मिलती रहे।
अच्छी जानकारी।