
समाज, भाषा, संस्कृति के चमकते नक्षत्र – डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक‘
अनिल जोशी
एक युवक जिनकी अध्यापन की पृष्ठभूमि है। हिंदी और संस्कृत जिनके संस्कारों में है। उत्तराखंड की संस्कृति जिनकी रगों में बहती है। विनम्र, मृदुल स्वभाव के चलते सामाजिकता जिनके आचरण में है। वे 90के दशक में उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री बन जाते हैं। भाषा और संस्कृति के प्रति प्रतिबद्धता उसे जल्दी ही राज्य स्तर पर एक पहचान देती है। उनका लेखन और साहित्य उन्हें कवि – प्रधानमंत्री अटल जी के स्नेह का पात्र बनाता है। देखते – देखते एक नक्षत्र उत्तराखंड के राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक जीवन में घटनाओं और परिस्थितियों को प्रभावित करने लगता है और उनका उजाला चारों दिशाओं को प्रकाशित करने लगता है।
2000 के दशक में उत्तराखंड के जनजीवन में वे धुरी बनते गए।मंत्रिमंडल की विभिन्न जिम्मेदारियों से होते हुए वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और प्रदेश के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर के रूप में उनका स्थान बना।
वर्ष 2019 उनके लिए विशेष रहा जब उन्हें भारत के शिक्षा मंत्री के रूप में जिम्मेदारी मिली। भारत का युवा अपने वर्तमान और भविष्य के लिए शिक्षा नीति के रूप में मार्गदर्शन चाहता था। ऐसी शिक्षा नीति जो एक तरफ हमें हमारी विरासत से जोड़ती हो दूसरी तरफ हमारे कैरियर, भविष्य का रास्ता प्रशस्त करती हो। यह विकसित भारत की संकल्पना के लिए भी अनुकूल हो। वर्ष 2020 में आयी शिक्षा नीति देश की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक और इसरो के पूर्व चैयरमैन डॉ कस्तूरी रंगन की अध्यक्षता में बनी समिति ने देश के युवाओं को भविष्य का नया ब्लयू प्रिंट दिया। डॉ निशंक के सक्रिय मार्गदर्शन से बनी और उनकी सूझबूझ और प्रतिबद्धता के चलते लागू हुई यह शिक्षा नीति विकसित भारत के लिए सबसे बड़ा आधार बनेगी।
डॉ निशंक को जानने के लिेए कोरोना काल में उनके प्रयत्नों को जानना जरूरी है। मैं उस समय केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष के रूप में उनके मार्गदर्शन में काम कर रहा था। कोरोना काल में जब आक्सीजन सिंलेडर और हस्पतालों में प्रवेश एक बड़ी समस्या थी, निशंक जी ने जनसामान्य का डट कर सहयोग किया और भाषा, साहित्य और संस्कृति के लोगों के लिए तो वे देवदूत थे। उन्होंने कह रखा था कि किसी भी साहित्यकार और संस्कृति कर्मी जिसने स्वयं को समर्पित कर रखा है, हम उसे चिकित्सा के अभाव में मरने नहीं देंगे। मैंने उन्हें दूरस्थ ग्रामीण इलाके में भी साहित्यकारों के जीवन को बचाते देखा। इसके लिए छोटा-बड़ा, दलगत विचारधारा गत जैसे अवरोध नहीं था। एक कैबिनेट मंत्री का ऐसा सरल, विनम्र, उदार और लोगों के लिए समर्पित जीवन बहुत दुर्लभ है।
पिछले कुछ समय से समाज और राजनीति के साथ साहित्य उनके जीवन का प्रमुख ध्येय बना।वे स्वयं एक अच्छे लेखक हैं और सौ से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं। लेखक ग्राम के माध्यम से उन्होंने उत्तराखंड के साहित्यिक और सामाजिक जीवन में एक धुरी विकसित करने की कोशिश की है। आज देहरादून का लेखक ग्राम इतना लोकप्रिय हो गया कि उनकी एक पहचान लेखक ग्राम से बन गयी है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ रामनाथ कोविंद ने व 2024 में उसका उद्धाटन किया है। देश-विदेश में उसको लेकर एक आकर्षण है। आज मेरे सहित हजारों- लाखों लोगों के वे प्रेरणास्रोत हैं। उनके जन्मदिन के अवसर पर उनका कोटिश: शुभकामनाएँ।