
भक्ति की कोई सीमा नहीं होती न भौगोलिक, न भाषाई और न ही सांस्कृतिक। जापान में जब मंदिरों और सभागारों में “हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की” का स्वर गूँजता है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि कृष्ण भक्ति विश्वव्यापी है।
जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रसार का सशक्त प्रतीक है।
भारतीय संस्कृति की विशेषता है कि इसके त्योहार और परंपराएँ केवल भारत-भूमि तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि जहाँ-जहाँ भारतीय प्रवासी रहते हैं, वहाँ वहाँ भक्ति, उल्लास और सांस्कृतिक परंपराओं की गूँज सुनाई देती है। इन्हीं में से एक पर्व है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्य का पावन उत्सव। भारत की तरह यह पर्व जापान जैसे आधुनिक और तकनीकी रूप से प्रगतिशील देश में भी विशेष भक्ति-भाव और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

जापान में जन्माष्टमी का स्वरूप
टोक्यो, योकोहामा, नागोया और ओसाका जैसे बड़े शहरों में जन्माष्टमी के अवसर पर भारतीय समुदाय और अंतरराष्ट्रीय भक्तगण मिलकर भव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
• टोक्यो का श्री राम मंदिर (बांडो) तथा ISKCON Tokyo जैसे प्रमुख केंद्रों में रात्रि-जागरण, भजन-कीर्तन, गीता-पाठ और झूलन-उत्सव आयोजित किए जाते हैं। ISKCON टोक्यो अपने मंदिर को जन्मोत्सव के अवसर पर भव्य रूप से सजाता है।
• इस मंदिर में मध्यरात्रि आरती को विशेष रूप से महत्त्व दिया जाता है। भक्त मिलकर भक्तिमय भजन-कीर्तन (जैसे “हरे कृष्णा हरे कृष्णा…”) करते हैं, हाथों में मृदंग, तंग-ताल लेकर आवाज़ गुंजायमान होती है लय हर हृदय को उल्लासपूर्ण कर देने वाला दृश्य होता है। यह आरती कृष्ण के जन्म की घड़ी में विशेष श्रद्धा से समर्पित होती है।
• भगवान राधा-कृष्ण की अलौकिक झाँकियाँ और मंदिर की साज-सज्जा वातावरण को ब्रज की गलियों की भाँति पावन बना देती हैं।
• प्रवासी बच्चों को भारतीय संस्कृति से जोड़ने हेतु कृष्ण-लीला पर आधारित नृत्य-नाटिकाएँ और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ भी आकर्षण का केंद्र होती हैं। छोटे-छोटे कृष्ण वेश जिन्होंने धारण किए होते हैं, वे कार्यक्रम में आकर्षण का केंद्र होते हैं। कईदा-कैनव, कृष्णाध्याय, कविता-पाठ या लघु नाटिका जैसी गतिविधियाँ भी मंदिर में आयोजित की जाती हैं, जिससे युवा पीढ़ी भी संस्कृति से जुड़ती है।

• गीता पाठ, कृष्ण-लीला का वृत्तांत, तथा विद्वानों और अध्यात्मिक गुरुओं द्वारा प्रवचन आयोजित किए जाते हैं, जो भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा से विवर्ण कर देते हैं।
• आरती के बाद भक्तों को शुद्ध एवं स्वादिष्ट प्रसाद—मिठाई, फल, दही-भोग आदि प्रदान किया जाता है। ISKCON की विशेषता है कि प्रसाद शाकाहारी, और बिना प्याज-लहसुन के Krishnatarian भोजन होता है, जिसे भक्ति से पहले भगवन को अर्पित कर भक्तों में वितरित किया जाता है।
• विशेष यह बात है कि यहाँ केवल भारतीय ही नहीं, बल्कि जापानी नागरिक और अन्य देशों के लोग भी उत्सव में सम्मिलित होकर भारतीय अध्यात्म और भक्ति परंपरा का अनुभव करते हैं। कहीं-कहीं दही-हांडी जैसी परंपराएँ भी छोटे पैमाने पर देखने को मिलती हैं।
यद्यपि जापान में श्रीकृष्ण जन्म जैसा कोई विशिष्ट धार्मिक पर्व नहीं है, तथापि कुछ पारंपरिक उत्सव अपने भाव और स्वरूप में जन्माष्टमी से मेल खाते हैं
• तानाबाता (Tanabata) : यह सितारों के मिलन का पर्व है, जहाँ लोग अपनी इच्छाएँ रंगीन पर्चियों पर लिखकर बाँस की डालियों पर सजाते हैं। इसमें भी वही आस्था और प्रतीकात्मक मिलन है, जैसा जन्माष्टमी की रात्रि में भक्त अनुभव करते हैं।
• सान्जा मत्सुरी एवं कान्दा मत्सुरी : टोक्यो के प्रमुख शिन्टो उत्सव हैं, जिनमें मिकोशी (चल मंदिर) को कंधों पर उठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है। इसमें वही सामूहिक ऊर्जा, उत्साह और भक्ति का भाव दृष्टिगोचर होता है, जो भारत में जन्माष्टमी की शोभायात्राओं में परिलक्षित होता है।
जापान में जन्माष्टमी प्रवासी भारतीयों के लिए अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का माध्यम है। साथ ही यह उत्सव भारतीय और जापानी समाज के बीच सांस्कृतिक सेतु का कार्य करता है।
• यह नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं से अवगत कराता है।
• जापानी समाज को भारतीय अध्यात्म और श्रीकृष्ण की शिक्षाओं से परिचित कराता है।
• प्रवासी जीवन की व्यस्तताओं के बीच यह पर्व भक्ति, आनंद और सामुदायिक एकता का संचार करता है।

– डॉ रमा पूर्णिमा शर्मा, संस्थापक एवं संरक्षक- हिंदी की गूँज अंतरराष्ट्रीय पत्रिका (टोक्यो, जापान )