वरिष्ठ शिक्षाविद सुशीला शर्मा हक़ ने किया हिंदी दिवस का संयोजन

जर्मनी की राजधानी बर्लिन में संस्था लेडीज़ कॉर्नर और निरंकारी परिवार के सौजन्य से हिंदी दिवस इस वर्ष वरिष्ष्ठ नागरिकों के संस्थान स्टियर स्ट्रासे में अनेक हिन्दीभाषी विद्यार्थियों, साहित्यकारों, कवियों एवं लेखकों की उपस्थिति में मनाया गया।

कार्यक्रम का उद्घाटन बर्लिनवासी हिंदी भाषा की प्राध्यापिका तथा महिलाओं की संस्था की संस्थापिका श्रीमती सुशीला शर्मा ने किया।  इस अवसर पर उन्होंने अपनी कविता “आती है हिंदी जुबां आते आते” पढ़ी जिसे हिंदी भाषा के विद्यार्थियों ने खूब सराहा। सातवर्षीया बालिका नवजोत ने गणेश वंदना नृत्य से पारम्परिक रूप से संध्या का प्रारंभ  किया और बालसुलभ कविता “चुन चुन चिड़िया” अपनी माँ रजनी की मदद से सुनाई। इस संध्या की प्रमुख अतिथि चौरानबे वर्षीया डॉक्टर श्रीमती कृष्णा ब्रून थीं आपने इंडोलॉजी में डॉक्टरेट की है, इनके पति श्रीमान ब्रून भी इंडोलॉजिस्ट थे और और बर्लिन की फ्री यूनिवर्सिटी के  इंडोलॉजी विभाग के कुलपति भी। एक और विशेष अतिथि देबाशीष भादुड़ी  थे जो वर्षों तक जर्मन पार्लियामेंट के निर्वाचित सदस्य रहे हैं। तुरंत इसके बाद अगम्या और तमन्ना ने हिंदी भाषा में ही सुन्दर भजन गा कर सुनाया।  इन बालिकाओं की उम्र भी पांच और सात साल की है। उम्र का उल्लेख करना इसलिए भी आवश्यक है कि सुशीलाजी ने अब अपना ध्यान बच्चों को हिंदी भाषा के ज्ञान दिलाने का बीड़ा उठाया है। तमन्ना और अगम्या  की  माँ  नवेता  गर्ग ने भी सुशीलजी से ही हिंदी भाषा सीख कर राजदूतावास द्वारा आयोजित  हिंदी की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की हैं। नवेता ने भी धाराप्रवाह हिंदी भाषा में विदेशों में बसे भारतीय मूल के नागरिकों के बच्चों को हिंदी क्यों सीखनी चाहिए इस पर प्रकाश डाला।यहाँ इस बात का उल्लेख भी अति आवश्यक है कि  ये सभी बच्चे जर्मनी में पैदा हुए हैं।  इनके पश्चात कृष्णा चटर्जी जो बर्लिन के अंतर्राष्ट्रीय स्कूल में अध्यापिका रही हैं  और अंग्रेजी भाषा में ही इनकी कविताओं की एक पुस्तक भी  प्रकाशित  हुई है, इन्होने हिंदी में लिखी हुई अपनी कविता सुनाई।  कृष्णा का कहना है कि बर्लिन की संस्था लेडीज़ कॉर्नर में आने के बाद उन्होंने बहुत प्रयास करके पुन: हिंदी भाषा पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। मीता  चोपड़ा ने पहली बार मंच  से स्वलिखित कविता में इस भाषा की सत्ता और महत्ता का उल्लेख किया।  डॉ . विवेक ने जो होमियोपैथी के डॉक्टर हैं  अपने वक्तव्य में इस बात का उल्लेख किया कि जर्मनी होमियोपैथी की जन्मदाता है। रजनी अब तक पंजाबी भाषा में कविताएं लिखती रही हैं, आज उन्होंने भी हिंदी भाषा में ही कविता पाठ किया।

अंजना सिंह के नाम से अवश्य ही कुछ लोग परिचित होंगे आप भी बर्लिन में कई वर्षों से हिंदी भाषा की प्राध्यापिका हैं।  बर्लिन की टेक्निक यूनिवर्सिटी में तथा विदेश  मंत्रालय में इस समय हिंदी पढ़ा रही हैं। बर्लिन में “अमीकाल” नामक संस्था  की संस्थापिका एवं संचालिका हैं। इनके प्रयास  से बर्लिन में अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है जैसे कि “फिल्म फेस्टिवल” जिसमे भारत में बननेवाली फ़िल्में दिखाई जाती हैं।  इसी वर्ष “कलर्स ऑफ़ इंडिया” का भी भव्य आयोजन बाबिलोन नामक ऐतिहासिक थियेटर के प्रांगण में किया गया।  हिंदी भाषा के जीवन में महत्व पर आपने भी प्रकाश डाला। इस संध्या की प्रमुख अतिथि ने हिंदी साहित्य के इतिहास की चर्चा करते हुए  जब  गिरधर कवि की कुंडलियों में से “लाठी में गुण बहुत हैं …” का ज़िक्र किया तो  उपस्थित सभी वयोवृद्ध श्रोता अपनी छड़ी संभालने लगे।  सुशीलजी ने भी “सांई ये न विरोधिये वाली कुंडली को सुनाया। अंत में अतिथियों को धन्यवाद देने की  औपचारिकता श्रीमान चौपड़ाजी ने  निभाई। आज की संध्या  के प्रमुख आयोजक चोपड़ा दम्पति ही थे। चाय नाश्ते की पूरी व्यवस्था भी इनकी ही तरफ से थी। समापन अतिथियों और आयजकों के बीच चर्चा का विषय हिंदी भाषा का भविष्य ही रहा।

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