
शनिवार, दिनांक 20 सितम्बर 2025 को हिंदी राइटर्स गिल्ड द्वारा ब्रैम्पटन लाइब्रेरी की स्प्रिंगडेल शाखा में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी का विषय था “आधुनिक स्त्री और हिंदी साहित्य”।
कार्यक्रम का संचालन अनुभवी संचालक डॉ. नरेंद्र ग्रोवर जी ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ आशा बर्मन जी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ।
इसके बाद डॉ. बंदिता सिन्हा जी ने “आधुनिक स्त्री” पर अपना आलेख प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने स्त्री के घर से लेकर विज्ञान और अन्य क्षेत्रों में बढ़ते योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने आधुनिक साहित्य में स्त्री की मुखरता और अभिव्यक्ति की ओर ध्यान आकर्षित किया।
उनके बाद आशा बर्मन जी ने विचार व्यक्त किए कि इक्कीसवीं शताब्दी की भारतीय लेखिकाओं ने सोच में बदलाव लाया है। हिंदी साहित्य में स्त्री पात्र अब मुखर और सशक्त हैं। स्त्रियाँ अब घर और समाज के हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं। पिछले पचास वर्षों की शिक्षा ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आशा जी के विचारों के बाद इंदिरा वर्मा जी ने साठ के दशक में अपने प्रवासी जीवन और स्त्री अनुभव साझा किए। उन्होंने वोट देने के अधिकार और वेतन में समानता जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर अपने विचार रखे।
इसके पश्चात कुलदीप अहलूवालिया जी ने अपनी दो कविताओं का पाठ किया। उनकी कविताओं में शहर की हलचल, चुनौतियाँ, अकेलापन, आत्मीयता, स्त्री का आत्मविश्वास और उससे उपजी दृढ़ चेतना की झलक मिली।
कविता पाठ के बाद डॉ. कनिका वर्मा जी ने अपना भावपूर्ण निबंध पढ़ा, जिसमें उन्होंने भारत में भाषाओं की विविधता और चार भाषाएँ सीखने के अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि भारत में बच्चे कैसे सहज रूप से बहुभाषी हो जाते हैं।
इसके बाद डॉ. निधि सक्सेना जी ने भारतीय स्त्रियों के संदर्भ में आधुनिकता की व्याख्या की। उनके अनुसार केवल पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करना आधुनिकता नहीं है। भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही स्त्रियों के अधिकार रहे हैं, जिनका ह्रास विदेशी आक्रमणों से हुआ। उन्होंने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी की कहानी “आँख की किरकिरी” का भी उल्लेख किया।
निधि जी के विचारों को आगे बढ़ाते हुए प्रीति अग्रवाल जी ने कहा कि हिंदी साहित्य में स्त्री की भूमिका और पहचान में परिवर्तन आया है। स्त्रियाँ जीवन के हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा दिखा रही हैं और राष्ट्र निर्माण में भी सक्रिय योगदान दे रही हैं। उन्होंने साहित्य में आधुनिकता के नाम पर बढ़ती अश्लीलता पर भी आगाह किया।
इसके बाद ऋतु जी ने “आधुनिकता क्या है?” का प्रश्न उठाया और बंगला साहित्य के संदर्भ दिए। उन्होंने एक लड़की की प्रगति की धुंधली राह पर की गई यात्रा को संक्षेप में रखते हुए कहा कि पहले त्याग करने वाली माँ या फिल्म ‘महानगर’ जैसे उदाहरणों से आरती अच्छी लड़की, स्कर्ट पहन कर मनमर्ज़ी करने वाली एडिथ अच्छी लड़की नहीं, कह कर लड़कियों को त्यागमयी बनने का आदर्श दिया जाता था। हम उसी आदर्श पर ‘टाइट रोप वॉकर’ की तरह चले पर सफल नहीं हुए। अपने घर के पेड़ से हमने सीखा कि हमें अपने विवेक और आत्मा की जड़ों से पानी खींच कर अपने को सींचना है और पेड़ की तरह घर की, काम की ज़िम्मेदारियों को अपने पत्तों में जगह देते हुए कभी झूम भी लेना है — यही आधुनिक स्त्री है।
इसके पश्चात राकेश मिश्र जी ने समकालीन और समाज को दर्पण दिखाने वाली लेखिका शैलजा पाठक जी की कविताओं की चर्चा की और उनके काव्य संग्रह “कमाल की औरतें” से भावपूर्ण कविता “बुआ” का पाठ किया।
फिर सरस दरबारी जी ने अपने आलेख में वैदिक काल से आधुनिक काल तक के ऐतिहासिक संदर्भों की व्याख्या की। उन्होंने मध्यकाल में आए परिवर्तनों, समाज में आई कुरीतियों और विदेशी आक्रमणों की संस्कृति के दुष्प्रभाव को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि 1900 के बाद परिवर्तन दिखना शुरू हुआ और सामाजिक सुधारों के कारण अब के लेखन में स्त्री विमर्श स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

इसके बाद तारा वर्षणेय जी ने आधुनिक हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श की प्रगति पर संतोष व्यक्त किया और कई प्रसिद्ध लेखिकाओं को उद्धृत कर उनके योगदान को सराहा। उन्होंने वर्तमान लेखकों और आधुनिक हिंदी साहित्य को असमानता और पितृसत्तात्मक समाज को चुनौती देने वाला बताया।
फिर अजय गुप्ता जी ने कविता पाठ किया जिसमें सुगंधों और संबंधों का उल्लेख था — कि कैसे सुगंध परिवार को बाँधती है। कविता में व्यंग्य और हास्य के साथ भावनाओं का सुंदर संगम था, जिसने सभी को गुदगुदाया।
अंत में डॉ. शैलजा सक्सेना जी ने अत्यंत भावपूर्ण और विचारोत्तेजक चर्चा की। उन्होंने आधुनिक हिंदी साहित्य की प्रगति को स्वीकारते हुए यह प्रश्न उठाया कि क्या स्त्रियों ने वास्तव में स्वतंत्रता प्राप्त की है? उन्होंने स्त्रियों पर हो रही शारीरिक और मानसिक हिंसा पर अपनी पीड़ा व्यक्त की और पूछा कि क्या आधुनिक हिंदी साहित्य सत्यनिष्ठा से इन प्रश्नों को उठाता है?
शैलजा जी के 20 मिनट के इस संबोधन ने सभागार में उपस्थित सभी श्रोताओं को भावुक कर दिया।
इस विचारोत्तेजक चर्चा के बाद जलपान के लिए ग्रोवर जी का आभार किया गया और डॉ. बंदिता सिन्हा के जन्मदिन के अवसर पर उनके परिवार द्वारा लाए गए केक को काट कर आत्मीयतापूर्ण वातावरण में कार्यक्रम समाप्त हुआ।
नोट: हिंदी राइटर्स गिल्ड कनाडा के कार्यक्रम हर तीसरे शनिवार को स्प्रिंगडेल ब्रांच लाइब्रेरी, ब्रैम्पटन में 1 बजे से 4 बजे तक निशुल्क होते हैं जिसमें प्रत्येक हिंदी प्रेमी का स्वागत है। -रिपोर्ट – राकेश मिश्र