
दिनांक 04.10.2025 को नई दिल्ली के रायसीना रोड स्थित प्रतिष्ठित प्रेस क्लब आफ इंडिया के सभागार में अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के तत्वावधान में शिक्षाविद् एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार श्रीमती सरोजनी चौधरी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित बहुराष्ट्रीय पत्रिका “प्रज्ञान विश्वम” के लोकार्पण का भव्य आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता एवं संचालन का दायित्व पत्रिका के प्रधान संपादक प्रज्ञान पुरुष पण्डित सुरेश नीरव के कुशल एवं सशक्त हाथों में रहा। मुख्य अतिथि की भूमिका का निर्वहन इटावा टाइम्स के संपादक श्री अतुल वी एन चतुर्वेदी ने किया। विशिष्ट अतिथियों की श्रेणी में विविध विधाओं की सुविख्यात वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सविता चडढा, दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षा, स्वयं वरिष्ठ साहित्यकार एवं गत 44 वर्षों से राष्ट्रीय कवि सम्मेलन की कर्णधार श्रीमती इंदिरा मोहन तथा आकाशवाणी और दूरदर्शन कलाकार, सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी, अधिवक्ता एवं गद्य लेखक श्री कुमार सुबोध सहित वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती सरोजनी चौधरी मंचासीन रहे।
इस कार्यक्रम का यूट्यूब चैनल के माध्यम से लाइव प्रसारण भी किया गया, जिसमें देश-विदेश के विभिन्न शहरों और क्षेत्रों से उपस्थित रहकर अपनी-अपनी सहभागिता सुनिश्चित की।
कार्यक्रम का आरंभ सभागार में मंच के दोनों ओर उपस्थित विभूतियों एवं विद्वतजनों के कर-कमलों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करने के साथ वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती वीणा अग्रवाल के मुखारविंद से मां सरस्वती वंदना की प्रस्तुति से हुआ। तत्पश्चात्, मंचासीन विभूतियों को माल्यार्पण, अंगवस्त्र ओढ़ाकर एवं पुष्पगुच्छ भेंट स्वरूप प्रदान करके सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम को गति देते हुए संचालक श्री सुरेश नीरव ने श्रीमती सरोजनी चौधरी के आत्मीय अनुज भ्राता एवं स्वयं वरिष्ठ गीतकार श्री विनय कुमार को आमंत्रित किया। उन्होंने अपनी अग्रजा दीदी के संघर्षपूर्ण जीवन से जुड़े कुछ चुनिंदा अनसुने-अनकहे-अनछूए पहलुओं से सभागार में उपस्थित श्रोताओं तथा आनलाइन माध्यम से जुड़े विद्वतजनों को अवगत कराया।
तदोपरांत, प्रज्ञान पुरुष पण्डित श्री सुरेश नीरव ने अपनी काव्यात्मक मंचासीन विभूतियों को क्रमबद्ध तरीके से उनके व्यक्तित्व परिचय सहित अपने-अपने उदगारों के लिए आमंत्रित किया। सभी ने अपने समयावधि को ध्यान में रखते हुए अतिसंक्षिप्त उदबोधन के माध्यम से सभागार में उपस्थित जनसमुदाय को लाभान्वित किया।
अगले क्रम में देश के विभिन्न शहरों से पधारे सभी विद्वतजनों को भी यथावत आमंत्रण सहित अपने उदगारों प्रकट करने के लिए समय सीमा की ओर ध्यानाकर्षण सहित उचित अवसर दिया। सभी विद्वतजनों ने लेखिका से अपने व्यक्तिगत परिचय एवं साक्षात्कार के आधार पर सारगर्भित वक्तव्यों के माध्यम से उनसे संबंधित पक्षों से सभागार में उपस्थित जनसमुदाय को अवगत कराया।


जहां एक ओर, बीच-बीच में अपने अनूठे अंदाज में संचालक प्रज्ञान पुरुष श्री सुरेश नीरव ने श्रीमती सरोजनी चौधरी के नाम को संधि-विग्रह के माध्यम से व्याख्यायित करते हुए उसे वेदों और उपनिषदों के उपक्रमों के माध्यम से कुशलतापूर्वक विस्तार से बताया। वहीं दूसरी ओर, अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में उन्होंने कुछ चुनिंदा बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लोग आसानी से कह देते हैं ‘कुछ नहीं’। उसके भी गहन अर्थ से अवगत कराया और साथ ही, उन्होंने इस भ्रम से भी आवरण हटाया कि चित्रकूट धाम का संबंध श्रीराम से नहीं है, बल्कि चित्रगुप्त से है। उन्होंने संदर्भित किया कि शिक्षकों ने हमें बताया है कि लोहे का सिक्का भारी होने के कारण हवा में उछालने से नीचे आ जाता है, किन्तु वैज्ञानिक चेतना इसे नकारते हुए मानती है कि इसके आगे कुछ है और वह लोहे से बने जहाज को जहां एक ओर, पानी की सतह पर तैरा देती है। वहीं दूसरी ओर, उसे अपने वज़न के साथ-साथ यात्रियों और सामान के घनत्व के हवा में उडान भरने में सक्षम है। इसलिए हमने जो पढ़ा था, वह भ्रम था और असली सत्य के लिए ओर आगे जाना होगा। सत्य तो अनंत है, जहां तक पहुंचना संभव नहीं है। यदि हम अपनी चेतना को आगे बढ़ाते रहेंगे, तो कहीं-न-कहीं अवश्य पहुंचेंगे। हमारी कविता, साहित्य का जो सृजन है, वह अनवरत रूप से हमें आगे लेकर जाती है। जब हम सही ग़लत का निर्धारण स्वयं करने लगते हैं, तो यह राजनीतिक सोच कहलाती है। वैज्ञानिक कापरनिक्स ने कहा था कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, जबकि धर्म के ठेकेदारों का मत था कि सूरज पृथ्वी की परिक्रमा करता है। इस कथन पर कापरनिक्स को फांसी दे दी जाती है। इसलिए विज्ञान कहता है कि ऐसा नहीं है। विद्वान गलत सही का निर्धारण नहीं करता। वह दोनों पक्षों को सामने रखते हुए कहता है कि यह भी सही हो सकता है और कभी-कभी वह भी सही हो सकता है। यही क्वेंटम फिजिक्स है। इसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने भगवान महावीर के जैन संप्रदाय मंतव्यों के माध्यम से विषय-वस्तु को ऐसे ओर भी कई पक्षों के संदर्भो पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हम कहां तक जा सकते हैं, वह उस पदार्थ पर नहीं, बल्कि उसका सृजन करने वाले कर्ता पर निर्भर करता है, जो उसे विस्तार दे सकता है। उन्होंने वर्तमान में एआई को अभिशाप और वरदान की संज्ञा के माध्यम से आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए अपनी वाणी को विराम दिया।
तत्पश्चात्, मंचासीन विभूतियों के कर-कमलों द्वारा शिक्षाविद् एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती सरोजनी चौधरी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाशित प्रज्ञान विश्वम के विशेषांक का लोकार्पण किया गया।
अंतिम पड़ाव पर एशियन डेवलपमेंट बैंक, फिलीपींस में कार्यरत श्रीमती सरोजनी चौधरी के सुपुत्र श्री मयंक चौधरी ने अपनी माता के संबंध में कुछ आत्मीय विचारों सहित कहा कि उनका संपूर्ण जीवन संघर्षों और चुनौतीपूर्ण रहा है। उनकी साहित्य सृजनात्मकता पर टिप्पणी कर पाना मेरी पहुंच से बाहर है। बस इतना ही कहूंगा कि जो भी कर रही हैं, अपने आपको जीवन की सृजनात्मक गतिविधियों में संलिप्त रहते हुए अपनी इच्छानुसार निर्वहन करके सफलता के नए प्रतिमान स्थापित करें। अपनी वाणी को विराम देने से पूर्व मयंक चौधरी ने सभागार में उपस्थित जनसमुदाय एवं आनलाइन माध्यम से जुड़े श्रोताओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए धन्यवाद और आभार ज्ञापित किया।
सभागार में उपस्थित जनसमुदाय द्वारा समवेत राष्ट्रगान के पश्चात् यह भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ।
— कुमार सुबोध, ग्रेटर नोएडा वेस्ट।
