
उमाशंकर जोशी गुजराती के ऐसे वरिष्ठ साहित्यकार हैं जिन्होंने सर्जन, चिंतन, विवेचन और अनुवाद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रदान किया है। उत्तर गुजरात के छोटे से गांव वामणा ( ईडर) में जन्मे उमाशंकर जोशी ने अपनी साहित्य साधना से 1967 में साहित्य का सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त किया। वे साहित्य अकादमी दिल्ली के अध्यक्ष (1978 – 1983) रहे।उन्होंने 1979 से 1982 तक विश्व भारती -शांतिनिकेतन के कुलपति का पद गौरवान्वित किया। आपातकाल में राज्यसभा के सदस्य के रूप में उनका भाषण ऐतिहासिक महत्व रखता है। वे गुजरात यूनिवर्सिटी के दो बार कुलपति नियुक्त हुए।
उमाशंकर जोशी के साहित्य पर गांधी दर्शन का गहरा प्रभाव रहा है। 1931 से अंत उनका सर्जनात्मक कार्य से चला रहा । 23 अक्टूबर 1988 को उन्होंने अंतिम कविता ‘सासन गीर में सिंहमय शांति’ लिखी थी। उनकी कविताएं ‘समग्र कविता’ ग्रंथ के रूप में 1981 में संकलित हैं।विश्व शांति (1931), गंगोत्री (1934), निशीथ (1939), प्राचीना (1944), वसंत वर्षा (1954) , महाप्रस्थान (1965) उनके महत्वपूर्ण काव्य ग्रंथ हैं। सापना भारा (सांप का झुंड) एकांकी संग्रह, अखो :एक अध्ययन( विवेचन), उत्तर रामचरित, शाकुंतल आदि के नाट्यानुवाद उनके विषय प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। संस्कृति नाम से उन्होंने मासिक और बाद में त्रै-मासिक साहित्यिक पत्रिका का संपादन किया, जिसने गुजराती साहित्यकारों की नई पीढ़ी के दिशा निर्देशन का कार्य किया। उन्हें अनेक गुजराती , भारतीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। अनेक प्रतिनिधिमंडल एवं सांस्कृतिक विदेश यात्राओं के द्वारा उन्होंने भारतीय साहित्य के वैशिष्ट्य से विद्वानों को परिचित कराया।