tumor cell creating it’s own blood supply.(photo:Instagram)

यरूसलम, 8 मई (आईएएनएस)। इजरायल के वैज्ञानिकों ने एक खास आनुवंशिक पहचान (जेनेटिक फिंगरप्रिंट) खोजी है, जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली इम्यूनोथेरेपी किसी मरीज पर असर करेगी या नहीं।

यह शोध इजरायल के ‘टेकनियन – इजरायल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ ने किया है। सिन्हुआ न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों का कहना है कि यह खोज इम्यूनोथेरेपी को हर मरीज के अनुसार बेहतर ढंग से देने में मदद करेगी। इम्यूनोथेरेपी एक आधुनिक इलाज है, जो कैंसर से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) को मजबूत करता है ताकि वह कैंसर कोशिकाओं को पहचान कर नष्ट कर सके। लेकिन इसमें एक बड़ी समस्या यह है कि हर मरीज पर इसका असर अलग-अलग होता है। कुछ मरीजों को फायदा नहीं होता, बल्कि उल्टा साइड इफेक्ट्स हो जाते हैं।

इसलिए वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि किसी मरीज पर यह इलाज काम करेगा या नहीं, इसका पहले से अनुमान कैसे लगाया जा सकता है।

जर्नल सेल जीनोमिक्स शोध में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने टी-सेल क्लोन की जांच की। ये टी-सेल्स शरीर की सुरक्षा प्रणाली का हिस्सा होते हैं और किसी विशेष बीमारी को पहचानकर उससे लड़ते हैं।

जरूरी लक्ष्य को पाने के लिए, टीम ने कैंसर के मरीजों से मिले सिंगल-सेल आरएनए सीक्वेंसिंग और टी-सेल रिसेप्टर सीक्वेंसिंग डेटा का इस्तेमाल करके एक बड़ा मेटा-विश्लेषण किया। इन मरीजों का इम्यूनोथेरेपी से इलाज चल रहा था। उन्होंने कैंसर के मरीजों के सैंपल लेकर यह देखा कि जो मरीज इम्यूनोथेरेपी का अच्छा असर दिखाते हैं, उनकी टी-सेल्स में एक खास तरह की आनुवंशिक पहचान होती है। इस पहचान के कारण इलाज के दौरान उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली ज्यादा सक्रिय हो जाती है।

एक और अहम बात यह पता चली कि जिन मरीजों पर इलाज असर नहीं करता, उनके शरीर में कुछ टी-सेल्स एक साथ खून और ट्यूमर दोनों में मौजूद होती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, इम्यूनोथेरेपी का बेहतर असर तब होता है जब सिर्फ ट्यूमर के अंदर मौजूद टी-सेल्स को सक्रिय किया जाए, न कि खून में और ट्यूमर दोनों में मौजूद टी-सेल्स को।

इस खोज से भविष्य में इम्यूनोथेरेपी के असर की पहले से बेहतर भविष्यवाणी की जा सकेगी और इलाज को और असरदार बनाया जा सकेगा।

–आईएएनएस

एएस/

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