
Deepa Bhatti

– अनीता वर्मा
कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक को उनके अंग्रेज़ी में अनूदित कहानी संग्रह ‘हार्ट लैंप’ के लिए प्रदान किया गया है। इन कहानियों का कन्नड़ से अनुवाद किया है दीपा भस्ती ने। संग्रह में कुल 12 कहानियाँ हैं, जो कि मध्यमवर्गीय मुस्लिम महिलाओं के जीवन पर आधारित कहानियाँ हैं। उनके कहानी संकलन “हार्ट लैंप “के लिए मिला ये पुरस्कार पहली बार किसी को कहानी लेखन के लिए मिला है। उल्लेखनीय है कि अब तक ये पुरस्कार उपन्यास के लिए ही मिलते रहें हैं।
अपने एक साक्षात्कार में वो कहती हैं कि हर भारतीय स्त्री के भीतर विद्रोह की प्रवृत्ति तो रहती है पर घर परिवार और समाज के हित में वो उन्हें दबा जाती है। स्त्री विमर्श की ये कहानियाँ हर वर्ग की स्त्री के संघर्ष की कहानी कहती है। जीवन के कटु यथार्थ को, पितृ सत्ता व कट्टरपंथी बंधनों के रहते छटपटाती हुई हर स्त्री इसको अपने जीवन के साथ जोड़कर देख सकती है। मुस्लिम समाज के नियमों, मान्यताओं और बंधनों के बारें में यह कहानियाँ मूल रूप से कन्नड़ में लिखी गई हैं। अंग्रेज़ी अनुवाद के रहते यह वैचारिक व वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी हैं।
कट्टरपंथी विचारधारा, मुस्लिम समाज और धर्म में महिलाओं के अधिकारों पर बात करती इस पुस्तक को अगर हर स्त्री के संदर्भ में देखा जाए तो इसके विरोध में उठ रही आवाज़ों को उनके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है।
एक बार और ये लेखक और अनुवादक दोनों को ही सम्मान देने की परम्परा को ये पुरस्कार दृढ़ करता है। अनुवादक की भूमिका यहाँ पर उतनी ही महत्त्वपूर्ण हो जाती है जितनी मूल लेखक की। बुकर अवॉर्ड में पुरस्कार की धनराशि £50,000/- (यानी कि आज की पाउंड-रुपए की दर के अनुसार ₹57,52,900/-) प्रदान की गई, जो कि लेखिका और अनुवादक में बराबर-बराबर बाँटी जाएगी। इसका अर्थ आसानी से यह निकाला जा सकता है कि बुकर अवॉर्ड के नियमों के अनुसार पुरस्कार विजेता बनने के लिए लेखक और अनुवादक का दर्जा समान है। अनुवादक का अनुवाद ही उस पुस्तक को वैश्विक स्तर पर पाठकों तक पहुंचा सका।
बहरहाल लेखिका व अनुवादक दोनों को ही बधाई।