अनिल वर्मा

अनिल वर्मा की यात्रा बिहार से सिडनी तक; विज्ञान से कविता तक; सौंदर्य से प्रार्थना तक रही है। पेशे से एक वरिष्ठ कम्प्यूटर टेक्नोलोजिस्ट और दिल से एक संवेदनशील कवि एवं नाटककार – ये गणित और काव्य दोनों में एक-सा जादू और संगीत देखते हैं।

1955 में बिहार में जन्म। 1973 की इंटरमीडिएट परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम स्थान। अगले पाँच वर्षों तक इंजीनियरिंग की पढ़ाई, साथ में सुरुचिपूर्ण कवि-सम्मेलनों का आयोजन और भागेदारी, हिंदी पत्रिका ‘वातायन’ का सम्पादन, और 1978 में विद्युत् यांत्रिकी में स्नातक। 

गणित, विज्ञान और कविता में विशेष रूचि ने जैजोर गाँव से छपरा जिला स्कूल और फिर आई आई टी दिल्ली के प्रवेश द्वार खोले, अंतरंग मित्र दिए, और प्रकृति के रहस्य की परतों को खोल उसके अंदर के संतुलन और संगीत से परिचय कराया। सौंदर्य की वह प्रेरणा धीरे-धीरे उपासना में बदल गई। यंत्रों की यंत्रणा और मन्त्रों की मंत्रणा के बीच कहीं से सोता फूटा, और फिजिकल और मेटाफिजिकल के दो पाटों के बीच इनके गीत बह निकले।

1991 से सिडनी निवासी हैं जहाँ स्थानीय समुदाय में योगदान के लिए ऑस्ट्रेलिया-दिवस पुरस्कार के लिए मनोनित हुए। NASSCOM ऑस्ट्रेलिया के संस्थापक और प्रबंधक अध्यक्ष होने के नाते भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग के लिए चर्चित रहे।

गीत लिखे, गाये; नाटक लिखे, किये; और अपनी भाषा एवं विशिष्ट शिल्प के लिए सराहे गए।’एक मुक्त ज्वार’ इनकी बावन हिंदी कविताओं का संग्रह है जिसका अंग्रेजी रूपांतरण इन्होंने स्वयं किया।

हृदय में करुणा का अभाव आज की समस्याओं के मूल में है। इस परिप्रेक्ष्य में करुण भावों और शिल्प-सौष्ठव से पूरित अनिल वर्मा का काव्य-जगत एक उम्मीद जगाता है। प्रकृति के संगीत और संतुलन से आकृष्ट मन से निकली हुई रौशनी की इस दुनिया में जीवन के प्रति आस्था है, अपने स्वरुप की तलाश है, उत्सव का उछाह है।

इनकी रचनाओं में खिले हैं मन के, ऋतुओं के और सामजिक संचेतना के बिंब जो दर्द और मुस्कान की धूप – छाँव में आकर्षक हो उठते हैं। यहाँ मिट्टी की खुशबू और सॉफ्टवेयर के बीच का विस्तृत स्पेक्ट्रम शब्दों, ध्वनियों और संकेतों को नया आयाम-सा देता महसूस होता है।

अनिल सम्प्रति Intellect Design Arena Ltd के कार्यकारी निदेशक हैं। इनका कहना है, “जो भी गीत है, संगीत है, जादू है वह पाठक के करुणामय हृदय में है – मेरी पंक्तियाँ सिर्फ उसे छू पायें तो सार्थक हैं।’’

ईमेल – toanilverma@gmail.com

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