
पद्मभूषण बिहार कोकिला शारदा सिन्हा को विनम्र श्रद्धांजलि
लोकगायिका शारदा सिन्हा (1952-1924) नई दिल्ली के एम्स में सदा के लिए मौन हो गईं, किन्तु उनकी लोक संस्कृति का स्वर सदैव गूँजता रहेगा। महापर्व छठ की सुप्रसिद्ध गीतकार और भारतीय संस्कृति की पोषक शारदा सिन्हा का छठ पूजा के पहले व्रत “नहाय खाय, के दिन अनंत में विलीन हो जाना विशेष भगवत कृपा का द्योतक है। लगभग चार दशक से भोजपुरी, मैथिली और मगही आदि में उनके लोक पर्व में गाए गीत वैश्विक पहचान बन चुके हैं। उनकी आवाज में अनोखी खनक और देशजता तथा भारतीय संस्कृति की आत्मा थी। स्वनामधन्य शारदाजी सुर, संगीत, देशज भाषा, रीति रिवाज, अनुशासित परंपरा और जीवन मूल्यों की साधक थीं। वे नई पीढ़ी के लिए भोजपुरी गीतों में स्वच्छता अभियान की पक्षधर थीं।
पद्मभूषण शारदा सिन्हा के गीत के बिना पूर्वाञ्चल का शादी विवाह और तीज त्योहार आदि कोई भी मांगलिक या परंपरागत आयोजन अधूरा रहता है। उन्होंने लोकगीतों के अलावा सुगम संगीत, शास्त्रीय गायन, गीत, ग़ज़ल और फिल्मों में भी अमिट छाप छोड़ी है। उनके द्वारा लोक गायिकी की स्वस्थ परिपाटी कायम की गई है। वे अपने पीछे भरा पूरा परिवार और लोक संस्कृति का विराट संसार छोड़कर गईं हैं। अब हम सबकी बलैया को टालने वाला गीत कौन गाएगा। कोकिला शारदा जी का देहावसान अपूरणीय क्षति है। वैश्विक हिन्दी परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।
रिपोर्ट-डॉ॰जयशंकर यादव