भारत रत्न स्व.भूपेन हजारिका की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि

बंगाल,आसाम ,त्रिपुरा सहित भारत का पूरा नार्थ ईस्ट झूमता है ,गाता है गुनगुनाता है जिन के गीत
भारत रत्न भूपेन दा शरीर छोड़ कर इस संसार से जा चुके है किंतु उनका संगीत अमर है,
गंगा आमार माँ पद्मा आमार माँ 🎵
ओ गंगा बहती हो क्यू ..🎵
एक कली दो पत्तियां ..🎵
दिल हुम् हुम् करे … 🎵

भूपेन दा कितना बड़ा नाम है, उनका कद कितना बड़ा है, ये वो समझ सकते है जो बांग्ला-असमी संस्कृति ,साहित्य व संगीत को समझते है, हेमंत दा के बाद मेरे दूसरे सबसे पसंदीदा गायक, भूपेन दा ने हेमंत दा की तरह एक पूरी पीढ़ी को अपने विलक्षण संगीत से प्रभावित किया है
भूपेन दा की आवाज़ बहुत गंभीर, मानो किसी गहरी घाटी से आती आवाज़ ,गज़ब का सम्मोहन है उनकी आवाज़ में
एक ब्लॉग में इतने बड़े विस्तार को समेट पाना असंभव है
दादा अपने को सांस्कृतिक मज़दूर कहते थे, सादगी भरा जीवन और उच्च कोटि का संगीत, वे असम और पूरे नार्थ ईस्ट के लोक संगीत को पहचान दिलाने वाले अकेले व्यक्तित्व है
असम में, जब देश का सबसे बड़ा सेतु भूपेन दा के नाम किया गया, लता जी ने प्रसन्न्ता व्यक्त की थी, गंगा आमार माँ पद्म आमार माँ, हिंदी में उनका गाया कालजयी गीत याद कर रहा हूँ..

बिस्तिर्नो पारोरे, अशंख्य जोनोरे
हाहाकार खुनिऊ निशोब्दे निरोबे
बुढ़ा लुइत तुमि, बुढ़ा लुइत बुआ कियो ? क्षमा करियेगा हिंदी में………
विस्तार है आपार, प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यूँ ?
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई
निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हुंकार
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को
सबल-संग्रामी, समग्रोगामी
बनाती नहीं हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यूँ ?

अनपढ़ जन, अक्षरहिन
अनगीन जन, खाद्यविहीन
नेत्रविहीन दिक्षमौन हो क्यूँ ?

इतिहास की पुकार, करे हुंकार
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को
सबल-संग्रामी, समग्रोगामी
बनाती नहीं हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यूँ ?

व्यक्ति रहे व्यक्ति केंद्रित
सकल समाज व्यक्तित्व रहित
निष्प्राण समाज को छोड़ती न क्यूँ ?

इतिहास की पुकार, करे हुंकार
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को
सबल-संग्रामी, समग्रोगामी
बनाती नहीं हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यूँ ?

रुदस्विनी क्यूँ न रहीं ?
तुम निश्चय चितन नहीं
प्राणों में प्रेरणा देती न क्यूँ ?
उनमद अवमी कुरुक्षेत्रग्रमी
गंगे जननी, नव भारत में
भीष्मरूपी सुतसमरजयी जनती नहीं हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार, निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यूँ ?
ओ गंगा तुम, ओ गंगा तुम
गंगा तुम, ओ गंगा तुम
गंगा… बहती हो क्यूँ ?
संजय ‘ अनंत ‘©️

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