नहीं रहे जासूसी उपन्यासकार वेद प्रकाश कांबोज

स्मृति-शेष वेद प्रकाश कांबोज 1-12-1939 से 6-11-2024
हमारी पीढ़ी में कोई भी ऐसा नहीं होगा जिसने “वेद प्रकाश कांबोज “ के जासूसी उपन्यास बचपन में नहीं पढ़े। लोकप्रिय लेखकों की पीढ़ी के प्रयोगधर्मी लेखक ने 18 साल की उम्र में पहला जासूसी उपन्यास कंगूरा लिखा और उसके बाद एक के बाद एक 400 से अधिक उपन्यास लिखे।


वो अपने पात्रों के साथ नवीन प्रयोग करते रहते थे। उनके कुछ पात्र इतने लोकप्रिय थे कि जब उन्होंने अपने एक पात्र को मारा, तो जनता की मांग पर उसे फिर जिंदा करना पड़ा। वह इब्ने सफी से प्रभावित थे और उनके पात्र विजय और रघुनाथ सफी से ही प्रेरित थे।

जासूसी और अपराध कथा लेखक वेद प्रकाश का जन्म एक दिसंबर, 1939 को शाहदरा, दिल्ली में एक साधारण व्यापारी परिवार में हुआ। उन्होंने कुछ पौराणिक और ऐतिहासिक रचनाओं पर भी काम किया।

अंतिम वर्षों में वे नए और उदीयमान लेखकों के लिए एक गुरु और मार्गदर्शक की तरह अपना फर्ज निभाते रहे। कहते थे, जो अपने गुरुजनों पन्नालाल पाठक, जवाहर चौधरी और ओमप्रकाश शर्मा से ग्रहण किया, उसे आगे देने में कैसा संकोच! उन्होंने कभी भी प्रकाशकों के दबाव में अपने कथानकों और लेखन के साथ कभी समझौता नहीं किया।
उनकी कृतियां फिरंगिया ठग-गाथा और नवीनतम रचना गालिब बदनाम अपने अनूठे विषयों और प्रस्तुति के कारण विशेष चर्चा में रहीं। अपने लेखन से हिंदी पल्प फिक्शन को एक नई दिशा देने वाले वेद प्रकाश कांबोज का प्रयोगधर्मी लेखन और साहित्य में उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा।
-अनीता वर्मा

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