
वीरांगना झांसी की रानी को नमन
सम्पूर्ण विश्व को अपने अमिट रण कौशल से अभिभूत कर देने वाली, अपने प्राणोत्सर्ग से स्वातंत्र्य भाव को भारतीय जन जन में मुखरित करने वाली, स्त्री शौर्य की जाज्वल्यमान प्रतीक वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की 19 नवंबर 2024 को 196वीं जयन्ती है। सम्पूर्ण राष्ट्र के अन्तर्मन पर रानी लक्ष्मीबाई का ऐसा प्रभाव है कि उनके महाप्रस्थान के 166 वर्ष बाद भी उनकी शौर्य गाथा विविध लेखक, कवि कवयित्रियां लिखकर गाकर स्वयं को धन्य मानते हैं। सन 1857 में स्वातंत्र्य भाव की जो चिंगारी प्रज्वलित हुई थी, उसे अग्निपुंज बनाने का श्रेय उन्हें है। रानी लक्ष्मीबाई मात्र स्वातंत्र्य चेतना की सजग सतर्क प्रहरी नहीं, वरन आज वे स्त्री की सशक्ति का प्रतीक भी हैं। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने उनके उत्सर्ग को मान देते हुए आज़ाद हिन्द फौज में रानी झांसी ब्रिगेड की स्थापना की थी। रानी लक्ष्मीबाई पर इतने ऐतिहासिक ग्रंथ, काव्य रचनाएं, कथाएँ और लोक संस्कृति में विद्यमान लोकगीत तथा लोकगाथाएं हैं कि उन्हें लिखने बैठें तो सात समुद्र की मसि की शायद ज़रूरत पड़े। यह भी अनुपम संयोग है कि आज की तिथि 19 नवम्बर को विश्व पुरुष दिवस भी है।
वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की जयन्ती पर उन्हें श्रद्धास्पद नमन के साथ प्रस्तुत है एक बुन्देली लोकगीत, जो वीरांगना के अपरिमित शौर्य को रूपायित करता है :
खूब लड़ी मर्दानी अरे झांसी वाली रानी।
बुर्जन बुर्जन तोपें लगाय दईं गोला चलाएं आसमानी।
अरे झांसी वाली रानी
खूब लड़ी मर्दानी अरे झांसी वाली रानी।
सगरे सिपहियन को पेड़ा जलेबी, अपने चबाई गुड़ धानी।
अरे झांसी वाली रानी
खूब लड़ी मर्दानी अरे झांसी वाली रानी।
संभवतः इसी से प्रेरणा लेकर सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी गीत लिखा था।
© प्रो. पुनीत बिसारिया