मथुरा में Hybrid public school: बच्चों के सपनों का घर!!!

-प्रेमपाल शर्मा

मैं तो इसे जंगल में मंगल ही कहूंगा! शिक्षा की मेरी थोड़ी बहुत जो समझ है वह गिजुभाई वधेका महात्मा गांधी जॉन हाल्ट, ए एस नील, प्रोफेसर कृष्ण कुमार आदि से बनी है लेकिन उन  विचारों को साकार होते हुए मैंने इसी स्कूल में देखा है। सिर्फ आठवीं तक का स्कूल है। कोई बहुत बड़ा कैंपस नहीं। 12 साल पहले भी आना हुआ था। 10 नवंबर को फिर उनके वार्षिक कार्यक्रम में शामिल होने का मौका मिला।  बच्चों को दिए जाने वाले पुरस्कारों के नाम थे : कहानी कथा में प्रेमचंद पुरस्कार; फिल्म थिएटर के लिए बलराज साहनी; पेंटिंग के लिए पिकासो; विज्ञान के लिए भाभा पुरस्कार।।।। मैं इसी क्षेत्र (बुलंदशहर) का रहने वाला हूं। क्या 99 प्रतिशत यहां के शिक्षक महान पिकासो के नाम से भी परिचित होंगे! मुझे शक है। कुछ ने भले ही बलराज साहनी नाम सुना होगा! लेकिन बचपन से ही बच्चों के सपनों में जब ये नाम और उनके काम प्रवेश कर जाते हैं तभी शिक्षा शब्द की सार्थकता होती है!

   मुख्य दरवाजे पर सबसे ऊपर ठीक ही लिखा है “बच्चों के सपनों का घर! Devoted to scientific approach! बच्चे ऐसे स्कूलों में ही एक आजादी के साथ उड़ान भरते हैं जहां उनका 100%/ 99% लाने का दबाव नहीं होता! जो वहां के पुस्तकालय में मनमर्जी किताबें पढ़ सकते हैं! नियमित चलने वाली थिएटर म्यूजिक विज्ञान की वर्कशॉप में भाग ले सकते हैं! और केवल बच्चों के लिए ही नहीं शिक्षकों के लिए भी विशेष रूप से देश भर के लोगों को बुलाकर वर्कशॉप कराई जाती है! और आप इसे किसी भी दिन स्कूल में प्रतिबिंबित होता देख सकते हैं। मेरे पास बैठी बच्ची से मैंने पूछा कि “आठवीं के बाद कहां जाओगी? मासूम जवाब था, “सर, यही 12वीं तक हो जाता तो कितना अच्छा होता! यह होता है सपनों के घर को न छोड़ने का दर्द! तीन भाई हनी, गनी और सनी, प्रिंसिपल अनीता चौधरी ने मिलकर सपनों के इस घर को साकार किया है।

   “12वीं तक क्यों नहीं करते इसे? हमारे पास संसाधन कहां है? दसवीं तक भी करने के लिए और जगह चाहिए। किसी अफसोस के साथ नहीं! एक संतोष के साथ कहते हैं। यही बच्चे ठीक बन जाए तो हमें खुशी होगी। यहीं से पढ़े एक बच्चे को अभी भाभा एटॉमिक रिसर्च केंद्र में जगह मिली है। एक विद्यार्थी अंतरिक्ष यहां से निकलकर जेएनयू में थिएटर में पीएचडी कर रहे हैं और  नंदिनी लवानिया ने दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय से एम ए एजुकेशन में शोध करने की तरफ बढ़ रही है। पिछले 5-7 वर्षों में स्कूल से निकले छात्र विशेष रूप से दिल्ली और दूसरी जगह से आए हुए थे। उन्होंने इस उत्सव के नाटकों उसकी सज्जा में वैसे ही भाग लिया जैसे कोई अपने पुराने घर को बेहतर देखना चाहता है! दाद और शाबाशी! उन शिक्षकों को भी जिनकी मेहनत और रचनात्मक हर  कार्यक्रम में झलक रही थी। दिल्ली के नेशनल स्कूल आफ ड्रामा या किसी भी संस्थान की टक्कर के कार्यक्रम कहे जा सकते हैं ये। कम से कम मेरे अपने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो मैं ऐसी गतिविधियां कहीं नहीं देखी! बहुत से बहुत हुआ तो किसी चालू फिल्मी गाने पर भोंपू बजता है और बच्चे स्टेज पर खड़े होकर किसी राजनेता के सामने मंच पर उतना ही भांड डांस करते हैं। पूरे क्षेत्र के स्कूलों के लिए मंदिरों की नगरी मथुरा के लिए एक उदाहरण/सबक!पुरानी छात्रा का कहना था कि इस स्कूल में रोजाना आने का मन करता है। मुझे याद आया विदेश मंत्रालय में काम कर रहे मेरे दोस्त की बेटी की बात जब वह शनिवार-रविवार को भी स्कूल जाना चाहती थी और दिल्ली के स्कूलों में उन्हें जाने से भी डर लगता था।

   शिक्षा आनंद के लिए होती है तनाव और अंत में प्रतिदिन बढ़ते आत्महत्याओं के लिए नहीं! और इतनी मारामारी परसेंटेज के बावजूद हम कहां हैं! नोबेल पुरस्कार से लेकर पेटेंट या शिक्षा के किसी भी पैमाने पर देख लीजिए! इसलिए हाइब्रिड जैसे स्कूल एक उम्मीद जगाते हैं। केंद्रीय विद्यालयों की तरह! अपनी भाषा भी और अंग्रेजी भी!

 स्कूल चलाने वाले तीनों भाइयों के चेहरे पर संतोष और सफलता के पीछे उनकी कर्म और जीवन का भी असर है।  उनके अपने बच्चे भी थिएटर, फिल्म, विज्ञान के क्षेत्र में भी उतना ही अच्छा कर रहे हैं। हनी की बेटी आयशा ने अभी हाल ही में बहुत चर्चित रही हिंदी फिल्म matto की साइकिल में मशहूर फ़िल्म निर्देशक प्रकाश झा के साथ मुख्य भूमिका निभाई है और फिलहाल मुंबई में फिल्म और शिक्षा की दुनिया से जुड़ी है। इनके पिता हनी भी जाने-माने हिंदी के कथाकार हैं। 2 वर्ष पहले यह फिल्म आई थी जिसमें ज्यादातर भूमिका प्रिंसिपल अनीता चौधरी समेत स्कूल के बच्चों और आसपास के लोगों ने निभाई है। फिल्म के कुछ शॉट्स सत्यजीत रे, गोविंद निहलानी की याद दिलाते हैं। इसे इन्हीं भाइयों में से एक गनी ने निर्देशित किया है और वे फिलहाल भी मुंबई में एक और फिल्म पर काम कर रहे हैं। शिक्षा इसी रास्ते से आपकी पर्सनालिटी को बदलती है।

     बच्चों से बातचीत में एक बच्चे ने प्रश्न और शिकायत के स्वर में पूछा कि पता नहीं हमारे मां पिता हमको क्यों जबरदस्ती उन विषयों की तरफ धकेलते हैं जिनमें हमारी कोई रुचि नहीं होती। सचमुच ऐसे मां-बाप से यही कहने का मन होता है कि बच्चों को उनको अपने हिसाब से पढ़ने दें! लेकिन प्रश्न यह भी है कि ऐसे स्कूल कितने होंगे जो हाइब्रिड की तरह उनके सपनों को आगे बढ़ा सकें! यह सचमुच मथुरा के लिए गर्व की बात है कि 20 वर्षों से यह स्कूल बच्चों के सपनों को साकार कर रहा है- शिक्षा में चुपचाप एक क्रांति।

दिल्ली लौटकर मेरे दिमाग में बार-बार यह बात उभर रही है कि सचमुच इसी रास्ते से शिक्षा की तस्वीर बदली जा सकती है। मैं भी इसी क्षेत्र हूं का और शिक्षा स्कूली से लेकर विश्वविद्यालय में कितना पतन हो सकता है, मैं उससे रोज गुजरता हूं। शिक्षा धंधा बन गई है चाहे अंग्रेजी के नाम से हो या धर्म के धंधे से— सी.एस.आर., एम.पी., एम.एल.ए. को मिलने वाले पैसे और भयानक होती! सचमुच गरीबों किसानों के बच्चों को शिक्षा के नाम पर लुटा जा रहा है। ऐसे रेगिस्तान में पानी के कुछ सोते- oasis कुछ तो संतोष देते है। काश! दूसरे स्कूल और उनके शिक्षक भी इससे कुछ सीख पाए! क्योंकि इसी रास्ते से देश की तस्वीर और तकदीर बदली जा सकती है! इसी शिक्षा से उनके अंदर एक वैज्ञानिक चेतना पैदा होती है जो उन्हें जाति और धर्म से दूर रहना सिखाती है! अच्छा नागरिक वैज्ञानिक खिलाड़ी राजनेता बनाती है! मेरे साथ मेरे मित्र अमित कुमार सेन भी थे और उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई, वहां के समाज और उसमें व्याप्त साहित्य-संस्कृति के प्रति लगाव को बहुत सुंदर शब्दों में बच्चों के बीच साझा किया आभार! शिक्षा के लिए हर खिड़की खुली रहनी चाहिए! बहुत शुभकामनाएं हाइब्रिड स्कूल और उनकी टीम को।

(हाइब्रिड स्कूल, daharu रेलवे क्रॉसिंग के पास, जमुना पार मथुरा, यूपी. Mob :  7417 1 77177/ 8791 761 874

*प्रेमपाल शर्मा (पूर्व संयुक्त सचिव/ एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रेलवे/  दिल्ली।) mob : 99713 99046

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