
जन्मदिन की अशेष बधाइयाँ
हिन्दी के यशस्वी साहित्यकार, लेखक, कहानीकार ज्ञानरंजन का आज जन्मदिन है। वैश्विक हिन्दी परिवार की तरफ़ से उन्हें जन्मदिवस की अनंत शुभकामनाएँ।
21 नवंबर, 1936 को महाराष्ट्र के अकोला में पैदा हुए ज्ञानरंजन का बचपन और किशोरावस्था अधिकांशत: दिल्ली, अजमेर और बनारस में बीता और उच्च शिक्षा इलाहाबाद में संपन्न हुई।
प्रकाशित संग्रह के रूप में ज्ञानरंजन के छह कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं, लेकिन यह बहुचर्चित तथ्य है कि इनकी कहानियों की कुल संख्या 25 है, जो कि ‘सपना नहीं’ नामक संकलन में प्रकाशित हुई हैं। कहानियों के अतिरिक्त भी साहित्य की कई विधाओं में ज्ञानरंजन ने लेखन किया।
ज्ञानरंजन की कहानियों का हिंदी से इतर कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद तो हुआ ही इसके अतिरिक्त अनेक विदेशी भाषाओं में भी उनकी रचनाएं अनूदित हो चुकी हैं। भारतीय विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त ओसाका, लंदन, सैनफ्रांसिस्को, लेनिनग्राद, और हाइडेलबर्ग आदि के अनेक अध्ययन केंद्रों के पाठ्यक्रमों में भी इनकी कहानियाँ शामिल हैं।
ज्ञानरंजन को साहित्य साधना के लिए अब तक ‘सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड’, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘साहित्य भूषण सम्मान’, ‘अनिल कुमार और सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार’, मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग का ‘शिखर सम्मान’, ‘सुदीर्घ कथा साधना’, सृजनशीलता और बहुआयामी कार्यनिष्ठा के लिए वर्ष 2001-2002 के राष्ट्रीय ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’ से सम्मानित किया जा चुका है।
सातवें दशक के यशस्वी कथाकार ज्ञानरंजन ने ‘घंटा’, ‘बहिर्गमन’, ‘अमरूद’ और ‘पिता’ जैसी कहानियों के माध्यम से हिंदी कहानी लेखन को एक नया गद्य दिया है। उनके मध्यवर्गीय पात्र जीवन के तमाम विरोधाभासों को अभिव्यक्त करते हुए एक नवीन संरचना व भाषा को स्थापित करते हैं। उनकी बहुचर्चित कहानियाँ समकालीन सामाजिक जीवन की विरूपताओं को उजागर करती हैं।
मध्यवर्ग की नई पीढ़ी की सोच को ज्ञानरंजन ने बखूबी पकड़ा और अपनी कहानियों में उसे ढाला भी है। ज्ञानरंजन की कहानियाँ उसके विविध पहलुओं का अविस्मरणीय साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं।
केवल मध्यवर्ग ही नहीं बल्कि वे समाज के सभी वर्गों की मन:स्थितियों को समझने की अलग दृष्टि रखते हैं। उनके द्वारा प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ‘पहल’ साठोत्तरी प्रगतिशील कथा-साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।
-अनीता वर्मा