© विनयशील चतुर्वेदी

ग़ज़ल

युँ ढल कर शाम का सूरज सुबह ऐसे निकलता है।
किसी दुल्हन की घूंघट से वदन जैसे झलकता है

मुहल्ला आशिक़ों का है यहाँ आना बहुत धीमे
किसी पायल की छन छन से किसी का दम निकलता है।

हमी मुजरिम हमी मुंसिफ हमारा राज है हम पर
तुम्हारा दिल मिरे दिल में मिरी शह पर धड़कता है।

बड़ी मुश्किल से बनता है भरोसा तोड़ मत देना
किसी की आँख से गिरकर कहाँ कोई सम्हलता है।

सियासत मोम है साहिब इधर से दूर ही रहना
यहाँ भूखों की भट्टी है यहाँ लोहा पिघलता है।

बड़ा मगरूर है डरता नहीं क़ाबों शिवालों से
कबूतर के निवाले को वो दानों सा बिखरता है।

ये धरती है भारत की सुन उठाना मत ग़लत नजरें
गिनेगा दांत शेरों के, यहां बच्चा मचलता है।

डकैती क़त्ल चोरी से भरे अखबार रहते हैं
बुरी खबरों से भी शायद किसी का दिल बहलता है

***** ***** *****

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »