
© विनयशील चतुर्वेदी
ग़ज़ल
रहते हैं किस तौर यहाँ पर हाल न पूछो
मिलती है किस भाव यहाँ पर दाल न पूछो
आत्महत्या पर खेतिहर की भी साहब जी
हंसते हैं कि तरह बजाकर गाल न पूछो
नेता कहला ने वाला ये भोला मजलूम
कितनी मोटी इसकी है तुम खाल न पूछो
पेट भरा है मोटा है पर भूखा दिखता
रखता है यह किधर छुपाकर माल न पूछ
आज खड़ा है अड़ कर आगे तन करके वो
किस किस जूते पर है कितनी राल न पूछो
शील विनय के हिस्से खाली धोखे हैं
कैसे कैसे लोग बदलते चाल न पूछो
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