
हमारे बीच कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिन्हें हम कलात्मक व्यक्तित्व कहते हैं और कुछ दुर्लभ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनमें कला स्वयं व्यक्तित्व हो जाती है। श्रद्धेय विद्यानिवास जी ऐसे ही व्यक्तित्व थे जिनमें कला स्वयं मूर्त हो गई थी।
श्रद्धेय पंडितजी कहते थे कि जीवन और कला दोनों को अलग अलग कर नहीं देखा जा सकता। दोनों में कहीं द्वैत नहीं है और यदि उनमें द्वैत होता है तो दोनों अधूरे रह जाते हैं। पंडितजी के कला के क्षेत्र में दिए गए अवदान को रेखांकित करते हुए अध्यक्षीय वक्तव्य में श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने अपने विचार व्यक्त किए।

आदरणीय पंडितजी की जन्मशती के अवसर पर केंद्रीय साहित्य अकादेमी नई दिल्ली के द्वारा १८ तथा १९ जून को साहित्य अकादेमी के सभागार में पूज्य पंडितजी के कृतित्व के विभिन्न आयामों पर विस्तृत विमर्श देश के प्रतिष्ठित विद्वानों के द्वारा किया गया। १८ जून के उदघाटन सत्र में अकादेमी के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव तथा हिंदी भाषा के संयोजक क्रमशः डॉक्टर माधव कौशिक, डॉक्टर कुमुद शर्मा, श्री के श्रीनिवास राव तथा प्रख्यात कथाकार गोविंद मिश्र ने अपने वक्तव्यों में कार्यक्रम के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए पंडितजी के व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर प्रकाश डाला। अकादेमी के पूर्व अध्यक्ष श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी तथा महात्मा गांधी केंद्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉक्टर गिरीश्वर मिश्र ने उदघाटन वक्तव्य तथा बीज वक्तव्य दिए। इसके पश्चात दोनों दिन पंडितजी के कृतित्व के विभिन्न पक्षों पर सत्र संपन्न हुए। इनमें उनके ललित निबंधकार तथा संपादक स्वरूप सहित उनके कला, लोकसंस्कृति, भारतीय परंपरा तथा उनके आलोचना साहित्य के क्षेत्रों में दिए गए अवदान को देश के शीर्षस्थ विद्वानों ने रेखांकित किया। इनमें पंडितजी के अनुज डॉक्टर दयानिधि मिश्र, डॉक्टर नंदकिशोर आचार्य, श्रद्धेय वागीश शुक्ल, डॉक्टर राधावल्लभ त्रिपाठी, डॉक्टर विद्याबिंदु सिंह, डॉक्टर रामदेव शुक्ल, डॉक्टर श्यामसुंदर जी दुबे, डॉक्टर कृष्णकुमार सिंह, डॉक्टर माधव हाड़ा तथा डॉक्टर ज्योतिष ज्योतिषी सम्मिलित थे। इस अवसर पर बड़ी संख्या में शोधार्थी, पंडितजी के प्रशंसक, दिल्ली और आसपास के साहित्यकार, कला चिंतक, कला इतिहासकार तथा कलाकार उपस्थित थे।इन सबसे अच्छा संवाद हुआ।अनेक कृतियां लोकार्पित भी हुईं।पण्डितजी के व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर आधारित एक फिल्म भी प्रदर्शित की गई।

साहित्य अकादेमी में एक बैठक वाणी तथा ज्ञानपीठ प्रकाशन के संचालक श्री अरुण माहेश्वरी तथा उसकी निदेशक डॉक्टर अदिति माहेश्वरी गोयल, श्री दयानिधि मिश्र तथा डॉक्टर गिरीश्वर मिश्र के साथ विभिन्न परियोजनाओं को लेकर सम्पन्न हुई।
श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने कला केंद्रित सत्र की अध्यक्षता करते हुए पंडितजी के कला के अवधारणात्मक तथा व्यावहारिक पक्ष के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए तथा उनके द्वारा साहित्य अकादेमी और महात्मा गांधी केंद्रीय हिंदी विश्वविद्यालय से अनुरोध किया गया कि वे देश के सर्वोच्च संस्थानों में से हैं तथा पंडितजी के कला के क्षेत्र में किए गए अंतरानुशासिक कार्य को दृष्टिगत रखते हुए उन्हें भारत की लघुचित्र परंपरा और साहित्य के अंतर्संबंधों पर कार्य कराना चाहिए क्योंकि कुछ अपवादों को छोड़कर ये हमारे हिंदी और संस्कृत के विद्वानों के दृष्टिपथ में नहीं आ पाए हैं। यह जानना बड़ा सुखद है कि दोनों ही संस्थानों ने अपनी ओर से इस प्रस्ताव पर कार्य करने हेतु सहमति व्यक्त की।









दोनों दिनों के सभी सत्रों का सीधा प्रसारण यू ट्यूब पर भी किया गया।