
27 जुलाई, रविवार दोपहर 11.30 बजे
वैश्विक हिंदी परिवार के ट्रस्टी एवं जाने-माने गजलकार श्री विनयशील चतुर्वेदी जी ने ऑस्ट्रेलिया प्रवास में रहते हुए प्रशांत सागर क्षेत्र का प्रथम काव्य सरिता कार्यक्रम सफलतापूर्वक आयोजित किया। इसमें भारत सहित नौ देशों के 17 कवियों और साहित्यकारों ने सहभागिता की। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. सुमन कपूर जी (न्यूजीलैंड) ने सभी आमंत्रित सदस्यों का भावपूर्ण अभिनंदन करते हुए किया। कवितापाठ का सम्मोहक संचालन आस्ट्रेलिया के विख्यात कवि एवं संचालक डॉ. सुभाष शर्मा ने किया।
सर्वप्रथम सिंगापुर के डॉ. अंकुर गुप्ता ने अपनी ग़ज़ल ‘जो मरने से नहीं डरते, वे मरा नहीं करते’ सुनाकर सबको मन्त्रमुग्ध कर दिया। सिंगापुर के ही श्री रत्नाकर पाण्डेय ने पिता पर मार्मिक कविता सुनाकर सबका दिल जीत लिया। तत्पश्चात फिजी से सुश्री श्वेता दत्त चौधरी ने आँसू को मोती बनाने वाली स्वाभिमानी नारी का गौरव गान किया। उसके पश्चात मॉरीशस से पधारी डॉ. कल्पना लाल जी ने गिरमिटिया मज़दूरों की पीड़ा को साक्षात् किया तथा श्रीमती अंजू ने दर्द का सागर लहराते हुए शोषित मजदूरों की पीड़ा को व्यक्त किया।
जापान से डॉ. रमा शर्मा ने फूजी पर्वत के मनोहारी सौंदर्य का बखान किया और प्रसिद्ध मौसम विज्ञानी श्री हरिहर झा ने “धुंध खटखटाती है सांकल मुट्ठी भर ऊष्मा पाने” कविता सुना कर धुंध, कोहरे, ओंस और फूलों के बीच सबको सराबोर कर दिया। तत्पश्चात फिजी के उच्चायुक्त डॉ. ईश्वर सिंह यादव ने फिजी की संस्कृति और वहाँ चल रहे हिंदी कार्यों के लिए प्रोत्साहन भरे शब्द कहे।
तत्पश्चात फिजी से पधारे श्री अमित अहलावत ने मनोरम घनाक्षरी सुना कर माँ शारदे को नमन किया तथा बेटी पर भावपूर्ण कविता सुनाकर खूब वाहवाही लूटी। इसके पश्चात आस्ट्रेलिया से डॉ. रेखा राजवंशी ने युद्ध के माहौल में खोई हुई बच्ची की गुड़िया की विडंबना व्यक्त की तो थाईलैंड से डॉ. शिखा रस्तोगी ने तीज का मनोरम चित्रण किया। सिंगापुर से पधारे श्री अनिल कुलश्रेष्ठ ने भी “अब भी खुद को आजमाना रह गया है” कहकर अपनी शेष आकांक्षा व्यक्त की। तत्पश्चात श्री विनयशील चतुर्वेदी ने अपनी भावपूर्ण गजलें कहीं तथा डॉ. अशोक बत्रा ने तिरंगा कविता सुना कर वातावरण को देशभक्ति के रंग से आप्लावित कर दिया। मंच संचालक डॉ. सुभाष शर्मा ने अपने सुमधुर गीतों से रंग बिखेरा तो अंत में काव्य सरिता के अध्यक्ष और प्रसिद्ध दोहाकार तथा गजलकार श्री नरेश शांडिल्य ने अपने भावपूर्ण तथा गहन कलात्मक दोहे तथा गजलें कहकर इस कार्यक्रम को ऊँचाइयों तक पहुँचा दिया। अंत में श्री विनयशील चतुर्वेदी जी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।