
विदेश में हिन्दी पत्रकारिता
कहा जाता है कि पुस्तक प्रेमी सुखी होते हैं। एक मित्र या पड़ोसी धोखा दे सकता है किन्तु एक अच्छी पुस्तक कभी धोखा नहीं देती। पुस्तक चर्चा की शृंखला में वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में 13 जुलाई 2025 को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में स्थान प्राप्त डॉ॰ जवाहर कर्नावट की पुस्तक “विदेश में हिन्दी पत्रकारिता’ पर चर्चा की गई। इसकी गरिमामयी अध्यक्षता जापान के ओसाका विश्वविद्यालय में एमिरेट्स प्रोफेसर एवं पद्मश्री से सम्मानित डॉ॰ तोमियो मिजोकामि द्वारा की गई। उन्होंने शुभ कामनाएँ देते हुए कहा कि इस पुस्तक के लेखक डॉ॰ जवाहर कर्नावट अन्वेषण प्रवृत्ति के स्वामी हैं और इनका सूक्ष्म निरीक्षण विलक्षण है। पुस्तक की भूमिका और विभिन्न अध्यायों में निहित तथ्य अनोखे हैं। जापान से भी कुछ हिन्दी पत्रिकाएँ प्रकाशित होना हर्षदायक है। तुलनात्मक अध्ययन भी नितांत आवश्यक है। उन्होने अगला विश्व हिन्दी सम्मेलन जापान में कराने की सदिच्छा प्रकट की। कार्यक्रम में सभी महाद्वीपों के दर्जनों देशों से सैकड़ों साहित्यकार, विद्वान विदुषी,कवि, तकनीकीविद, योग साधक, प्राध्यापक, अनुवादक, शिक्षक, राजभाषा अधिकारी, शोधार्थी, विद्यार्थी और भाषा-संस्कृति प्रेमी आदि जुड़े थे।



आरंभ में जापान से संपादक व साहित्यकार डॉ॰ रमा शर्मा द्वारा आत्मीयता से सबका स्वागत किया गया। तत्पश्चात ब्रिटेन के बर्मिंघम से व्याख्याता एवं साहित्यकार डॉ॰ वंदना मुकेश ने सधे और संतुलित शब्दों में शालीनता से बखूबी संचालन संभाला। लेखकीय वक्तव्य में बैंक ऑफ बड़ौदा के सेवानिवृत्त महाप्रबंधक एवं रबीन्द्रनाथ टैगोरे विश्वविद्यालय भोपाल के अंतरराष्ट्रीय हिन्दी केंद्र के निदेशक डॉ॰ जवाहर कर्नावट ने आयोजक मण्डल एवं सभी संस्थाओं तथा उपस्थित महानुभावों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक की प्रस्ताविकी में डॉ॰ कर्नावट ने बताया कि वर्ष 1999 में लंदन में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में सहभागिता के दौरान इसे लिखने की अन्तःप्रेरणा हुई। अनुसंधित्सु के रूप में लगभग 22 वर्षों के अनवरत प्रयास एवं विभिन्न देशों की यात्रा और खोज के बाद प्रामाणिक लेखन और प्रकाशन से यह पुस्तक सामने आने पर हर्षानुभूति है। हमने हिन्दी की गौरव गाथा के साथ शोध की संभावना के नए द्वार खोलने का विनम्र प्रयास किया है।



विशिष्ट वक्ता के रूप में महात्मा गांधी हिन्दी संस्थान मॉरीशस से प्रो॰ राज शेखर ने कहा कि यह पुस्तक सीमाओं से परे प्रवासी संघर्ष, संकल्प, आंदोलन और चेतना का प्रकाश स्तम्भ भी है। बेशक भारतेन्दु काल में हिन्दी नई चाल में ढली किन्तु इस पुस्तक से विभिन्न काल खंडों और महाद्वीपों तथा देशों में हिन्दी पत्रकारिता की पृष्ठभूमि उजागर हुई है। बाल साहित्यकार प्रो॰ राजशेखर ने बच्चों पर इसके पठन-पाठन के स्वरूप की ओर ध्यान आकृष्ट किया। पत्रकारिता के क्षेत्र में सुप्रतिष्ठित लेखक एवं ‘आज तक’ न्यूज चैनल के पूर्व संपादक श्री राजेश बादल ने कहा कि पत्रकारिता के दो सौ वर्षों के पूरा होने के पूर्व इस पुस्तक ने हिन्दी की यात्रा और स्वतन्त्रता संग्राम के साथ शोध के नए दरवाजे खोले हैं। लेखक से सुपरिचित श्री बादल ने कहा कि विश्वविद्यालयों द्वारा इस ओर यथेष्ट आवश्यक है। कनाडा के टोरंटो से जुड़े वरिष्ठ लेखक श्री धर्म पाल जैन ने कहा कि इस पुस्तक के लेखक की प्रामाणिकता एवं दीर्घकालिक साधना अत्यंत सराहनीय है। पूर्व बैंक कर्मी एवं लेखक से पाँच दशक से परिचित श्री जैन ने पुस्तक के कुछ अंशों को उद्घृत किया और हिन्दी तथा प्रवासी भारतीयों की क्रमिक पत्रकारिता पर प्रकाश डाला।



वरिष्ठ पत्रकार श्री राहुल देव ने कहा कि पुस्तक में निहित सुदृढ़ नींव, खजाने और विभिन्न शोध आयामों से पाठक परिचित होंगे और डॉ॰ कर्नावट के एक वर्णाश्रम रूपी प्रदत्त काल का ऋषि ऋण रहेगा। इससे तत्कालीन तकनीकी और प्रेस तथा सामयिक स्थितियों के अलावा समाजशास्त्रीय दृष्टि से अवलोकन का आधार मिलेगा। इस असाधारण कार्य और पुरुषार्थ को नए डिजिटल युग के परिप्रेक्ष्य में सहेजना और प्रस्तुत करना श्रेयस्कर होगा। विशिष्ट अतिथि के रूप में पुणे से जुड़े बैंक कर्मी, साहित्यकार एवं भाषाविद श्री दामोदर खड़से का कहना था कि डॉ॰ कर्नावट ने बैंक, सम्मेलनों और विभिन्न आयोजनों तथा प्रदर्शनियों आदि में भी हिन्दी को सुदृढ़ किया और विश्व में हिन्दी सेवियों को जोड़ा, जिसे हमने निकट से देखा है। बैंक के अनुभवों के आधार पर इन्होंने पुस्तक में हर सामग्री को सलीके से गुंफित किया है। हम अगले अंक हेतु प्रतीक्षारत हैं। प्रख्यात कवि एवं साहित्यकार श्री अशोक चक्रधर ने कहा कि डॉ॰ कर्नावट की सक्रियता और सृजन को हमने पिछले 25 वर्षों में निकट से देखा है। इस पुस्तक के शोध, संयोजन और लेखन में उनकी भिक्षुक वृति प्रशंसनीय है। अब प्रस्थान बिन्दु से आगे चलने की निहायत जरूरत है।



श्रीलंका से हिन्दी सेवी डॉ॰ अतिला कोतलावल ने कहा कि इस पुस्तक से श्रीलंका में हिन्दी पत्रकारिता और विभिन्न आयामों की जानकारी सहज ही मिलती है। प्रवासी संसार के संपादक और साहित्यकार श्री राकेश पाण्डेय का मन्तव्य था कि इस पुस्तक में लोक साहित्य भी सहज ही दृष्टिगोचर हुआ है और अवध क्षेत्र के साथ गिरमिटिया आदि के विभिन्न विधान और मुहावरे आदि साहित्य को संपुष्ट करते हैं। इंदौर से जुड़ी कर उपायुक्त एवं साहित्यकार श्रीमती संध्या सिलावट का कहना था कि इस पुस्तक से हिन्दी की संघर्ष यात्रा और विदेशों में पनपती हिन्दी की सही जानकारी मिलती है। नीदरलैंड से जुड़ीं साहित्यकार डॉ॰ ऋतु पाण्डेय ने कहा कि धरोहर रूपी इस ऐतिहासिक पुस्तक ने हिन्दी की आवाज और संस्कृति को बखूबी फैलाया है। यूक्रेन से प्रो॰ यूरी बोत्विंकिन ने सदिच्छा प्रकट की कि समसामयिक स्थितियों में इस पुस्तक को डिजिटल रूप में लाना श्रेयस्कर होगा। उज्बेकिस्तान की प्रो॰ उल्फ़त और अमेरिका से जुड़े श्री राकेश दंड ने विशेष रूप से शुभ कामनाएँ दीं। विभिन्न देशों से जुड़े विद्वान विदुषियों ने भी चैट बॉक्स के माध्यम ने विशेष रूप से लेखक को हार्दिक बधाई दर्ज की।



सान्निध्यप्रदाता एवं वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी ने लेखक के काम के महत्व और व्यक्तिगत प्रभाव से सैकड़ों सुधी श्रोताओं के जुडने पर प्रसन्नता प्रकट की। उन्होने कहा कि विभिन्न देशों में भाषा का अलग -अलग स्वरूप होना स्वाभाविक है। आरंभ में हिन्दी पत्रकारिता का सांस्कृतिक परिदृश्य अलग था। फ़िजी के अनुभव को साझा करते हुए उनका कहना था कि वहाँ प्रधान मंत्री “शांति दूत’ अखबार सबसे पहले देखते थे। संपादकीय बहुत ही महत्वपूर्ण होता था। उसमें स्वतन्त्रता आंदोलन से जुड़ी काफी कवरेज होती थी। रेडियो का प्रभाव व्यापक होता है। अखबारों के निकलने के बाद बंद होने का भी खतरा होता है। वैश्विक हिन्दी परिवार के आधार स्तम्भ डॉ॰ जवाहर कर्नावट के श्रम का नए रूप में तकनीकी दस्तावेजीकरण जरूरी है। इससे हिन्दी भाषा की श्रीवृद्धि होगी।

यह कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गनिर्देशन में सामूहिक प्रयास से आयोजित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख एवं सहयोगी की भूमिका का निर्वहन ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर और लेखक जवाहर कर्नावट तथा पूर्व राजनयिक सुनीता पाहुजा द्वारा किया गया। अंत में दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ॰ रूद्रेश कुमार मिश्र के आत्मीय धन्यवाद ज्ञापन के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ। यह कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत “यू ट्यूब ,पर उपलब्ध है।
रिपोर्ट लेखन – डॉ॰ जयशंकर यादव