
दिनांक 23.11.2025 को नई दिल्ली के आईटीओ स्थित प्रवासी भवन के बालेश्वर अग्रवाल सभागार में अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद् एवं वातायन के संयुक्त तत्वावधान में पद्मश्री स्वर्गीय डॉ रामदरश मिश्र जी की स्मृति में वैश्विक हिंदी परिवार का आयोजन किया गया। मंचासीन गणमान्य विभूतियों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद् के राष्ट्रीय महासचिव श्री नारायण कुमार, वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी, वातायन यूके की संस्थापिका डॉ दिव्या माथुर, डॉ स्मिता मिश्रा (सुपुत्री), भारत सरकार के राजभाषा विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी श्री वरूण कुमार, आकाशवाणी-दूरदर्शन की प्रतिष्ठित उद्घोषिका श्रीमती अल्का सिन्हा तथा चीन से पधारे साहित्यकार श्री विवेक मणि त्रिपाठी प्रमुख रहे। कार्यक्रम के संचालन का दायित्व हिन्दी अकादमी के पूर्व उपसचिव श्री ऋषि कुमार शर्मा के सशक्त हाथों में रहा।
साथ ही, देश-विदेश के साहित्यिक और सामाजिक परिवेश से प्रमुख हस्ताक्षर भी आनलाइन माध्यम से इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे, जिनमें हीना यादव, अंशु कुमारी, नर्मदा कुमारी, डॉ सौभाग्य कोराते, रेखा गुप्ता, डॉ जयशंकर यादव, अनीता वर्मा सेठी, कृष्णा, विवेक मिश्र (अनुज पुत्र), सुभाष शर्मा, किरण खन्ना, उमेश कुमार प्रजापति, प्रियांशु शुक्ल, रागिनी संकृत, कृपाल सिंह, डॉ अशोक कुमार, विनयशील चतुर्वेदी, डॉ पद्मेश गुप्त, डॉ गंगाधर वानोडे इत्यादि प्रमुख रहे।
इस अवसर पर श्रोताओं की दीर्घा में विराजित विभूतियों में श्री विजय कुमार मल्होत्रा (वर्ष 1966-68 के शिष्य), मनोज सिन्हा, संजय प्रभाकर, नवीन कुमार नीरज, अर्चना त्रिपाठी, मनोज सिन्हा, संजय प्रभाकर, अर्चना त्रिपाठी, नरेश शांडिल्य, डॉ वेद मित्र शुक्ल, प्रो॰ अमरेन्द्र पाण्डेय, डॉ सुधा शर्मा ‘पुष्प’, डॉ आदित्य कुमार, डॉ अनिरुद्ध सुधांशु, डॉ नीता त्रिपाठी, डॉ केदार खांडे, डॉ सन्नी कुमार, रवि, कुमार सुबोध, नवीन कुमार नीरज इत्यादि प्रमुख रहे।
कार्यक्रम का आरंभ सभागार में उपस्थित समस्त जनसमुदाय के कर-कमलों द्वारा स्वर्गीय डॉ रामदरश मिश्र जी को पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ हुआ। तत्पश्चात्, संचालक द्वारा क्रमबद्ध तरीके से गणमान्य विभूतियों को अपने-अपने उदगारों के माध्यम से भावांजलि सहित श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के लिए आमंत्रित किया गया।
लखनऊ से जुड़ी प्रो॰ रेखा गुप्ता, जिन्होंने अपनी पीएचडी डॉ रामदरश मिश्र जी के साहित्य-सृजन पर शोध करके प्राप्त की है, ने उनकी कविता का काव्यपाठ करके उन्हें नमन किया।
अनुज सुपुत्र श्री विवेक मिश्र ने अपने पिताजी की दो रचनाओं की कवितामय अभिव्यक्ति के माध्यम से उन्हें स्मरण किया।
डॉ केदार खांडे ने काव्यपाठ के माध्यम से दिवंगत आत्मा को श्रद्धासुमन अर्पित किए।
कोझिकोड से आनलाइन माध्यम से उपस्थित प्रो॰ एन एम सन्नी ने रेखांकित किया कि मिश्र जी सपरिवार मेरे दिल्ली के गौतम नगर आवास पर पधारे थे और उन्होंने उपहार भी दिया था, उस संजोए हुए उपहार को पटल पर दिखाया। मेरी पत्नी ने उनपर शोध करके पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है। डॉ रामदरश मिश्र जी ने अपनी पुस्तक “आस-पास” में पषठ संख्या 189-190 पर हमारा उल्लेख किया है।


डॉ दिव्या माथुर ने अवगत कराया कि वो मुस्कुराते हुए सुनते रहते थे, कहने पर ही बोलते थे। जब भी मैं लो महसूस करती हूं, तो उनके मुस्कुराते चित्र का अवलोकन करके पुनः जीवंत हो उठती हूं। स्त्री नहीं बदलेगी, तो दुनिया कैसे बदलेगी।
डॉ पद्मेश गुप्त ने वर्ष १९९७ की अध्यक्षता में लंदन के विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिस पर उन्होंने वहां की प्रतिष्ठित पत्रिका में एक विस्तृत लेख लिखा था। साथ ही, उन्होंने आदरणीय मिश्र जी के प्रथम लंदन प्रवास से संबंधित प्रकरण ‘घर से घर तक’ के वृत्तांत को समर्पित करते हुए बारंबार प्रणाम किया।
श्री वरूण कुमार ने डॉ रामदरश मिश्र जी की अपनी पसंदीदा रचना की सुरमई प्रस्तुति के गायन से उन्हें अपने स्मरणों की अंजुलि अर्पित की।
प्रो॰ अमरेन्द्र पाण्डेय ने खेत रेहन पर रखकर कोयले की कालिख से पढ़ना लिखना माताजी ने किया।
डॉ वेद मित्र शुक्ल जी ने रामदरश मिश्र जी की रचना के काव्यपाठ से अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए।
श्री अनिल जोशी ने स्मृतियों से चित्रण करते हुए कहा कि निशंक जी जब डॉ रामदरश मिश्र जी को मिलने आए थे, तो मैं भी उनके साथ था। उन्होंने उनकी ही कविता के शीर्षक से मिलती-जुलती मेरी कविता “नदी रोशनी की” को गुनगुना हुए काव्यपाठ के माध्यम से मुझे आशीर्वाद प्रदान दिया था। अनिल जोशी ने बताया कि उन्होंने जो भी सृजन किया, विचारधारा से मुक्त होकर किया। जीवन जीने के मूलभूत सूत्र ही उनके लेखन पर हावी थे। मतभेद होने पर उन्होंने हंस की जगह कौवे पर कविता लिख डाली थी। जीवन में उन्हें जितने भी पुरस्कार मिले, वह सभी वर्ष 1985 के बाद मिले थे, जब विचारधारा वाले लेखन का हृास हो चुका था। हमारे भीतर मन में लेखन के बीज उनके समय के अंतराल में ही प्रस्फुटित हो पनपे थे। अपनी कविता के वाचन के साथ अपनी वाणी को विराम दिया।
वयोवृद्ध कर्मठ समाजसेवी और एनसाइक्लोपीडिया के उपनाम से चर्चित विभूति श्री नारायण कुमार ने अपने दृष्टिगोचर के माध्यम से अभिव्यक्ति देते हुए दिल्ली के माडल टाउन में पड़ोसी रहे डॉ रामदरश मिश्र जी से जुड़ी यादें सांझा की। उन्होंने अवगत कराया कि उन्हें सम्मान की चिंता कभी नहीं थी। उनका लेखन उनकी अनुभूति से उपजा है। परती भूमि की मिट्टी को लेकर आए थे, उससे कलम बनाकर अपना सृजन प्रारंभ किया था। घर शब्द कितनी बार उपयोग किया, यही जानना ही हम सबके लिए बहुत बड़ी बात होगी। वे सामाजिक जीव थे। समाज, गांव, घर को साथ लेकर चलने वाले वे कवि मात्र नहीं, कथाकार थे। नारायण जी स्मृतियों से उनके शब्दों को उकेरते हुए कहा कि “तुम बोलते थे, तो सुनने का मन करता था। मौन होते थे, तो गुणने का मन करता था और अब बिखर गए हो तो, चुनने का मन करता है। नारायण कुमार जी ने उनकी ‘आलोचक’ कविता को स्मरण किया।
सुपत्री डॉ स्मिता मिश्र ने अपने रूंधे कंठ और अश्रूपूरित नम और डबडबाई आंखों से पिताजी को स्मरण करते हुए उदृधत किया कि मेरा जन्म माडल टाउन वाले घर में हुआ था और फिर हम वाणी विहार तथा कालांतर में द्वारका आ बसे थे। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी हूं, इसलिए पिताजी की सदैव लाड़ली होने के साथ-साथ उनके अत्यधिक निकट रही। उनकी “रोशनी की नदी” कविता ने हमें विचरण होने से बचाया। जब भी हम तकलीफ़ में होते हैं, तो पिताजी की ओर ध्यान केंद्रित करते हुए संभलते हैं। उन्होंने स्त्री-विमर्श की अवधारणा पर बात की। विवाह के समय हमारी माताजी आठवीं पास थी। पिताजी ने उन्हें अपने साथ पीएचडी के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया तक पहुंचाने में सफल योगदान दिया था। समाज के विरोध को हम तक कभी नहीं आने दिया। साहित्य चुनने की वजह से मैं पिताजी के अधिक निकट रही। उनके साहित्य सृजन की संप्रति को सहेजकर समाज के समक्ष लाना मेरा उद्देश्य है।
डॉ स्मिता मिश्र ने अपनी व्यक्तिगत स्मृतियों को सांझा करते हुए अवगत कराया कि पिताजी आशावादी थे। माताजी को ट्यूमर हो गया था और हमने पिताजी को बताया नहीं था। जीवन में कितनी बार वह कैसी-कैसी परिस्थितियों से जूझकर वापिस आए थे। उनके आशावादी विचारधारा को पिताजी की ग़ज़ल “कहां-कहां गया मैं, किंतु रात से डरा नहीं, रूको तो ज़रा जिंदगी मन अभी भरा नहीं” को उदृधत करते हुए व्याख्यायित किया। 100 वर्ष की आयु में भी वह यह लिख रहे थे। दिनांक 18.05.2025 को लिखे उनके अंतिम मुक्तकों में से एक “गा रही है आज, कल भी प्यार से गाती रहेगी। मिट्टी शहर से गांव तक जाती रहेगी। मैं नहीं रहूंगा कल, वह रहेंगी जिंदगी बन। मेरे स्वर में लोक से हंस-हंस के बतियाती रहेगी। गा रही है आज, कल भी प्यार से गाती रहेगी।” के माध्यम से पिताजी के व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए जीवन जीने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को संदर्भित किया। 31 अक्तूबर से 15 दिन पूर्व जब मैं कालेज से लौट आने पर पिताजी से मिली, जो सदैव से मेरी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा था, उस दिन वह मुझसे बोले थे कि “बेटा, अब मज़ा नहीं आ रहा” और यह कहकर उन्होंने करवट बदल ली थी। उन्होंने मन बना लिया था। यह मुझे भी एहसास हो गया था। 30 अक्तूबर को कालेज से लौटते ही मिलने पर जब मैंने कहा था कि “पापा, मैं आ गई हूं। तो उन्होंने मुझे देखा भर, किंतु कोई जवाब नहीं दिया था। अक्सर मैं प्रतिदिन उनकी कविता का कुछ पंक्तियां गलत पढ़कर सुनाती थी, तो वो मुझे बीच में रोककर गलती को सुधारकर सही पढ़ने को कहते थे। लेकिन, उस दिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। मुझे लगता था कि पिताजी को इच्छा मृत्यु का वरदान है। आज भी मन यह मानने को तैयार नहीं है कि 101 वर्ष की आयु पाकर गए हैं, क्योंकि मुझे लगता था कि वह अभी तीन-चार साल और हमारे साथ रहेंगे। मेरा मन अभी भी यही कहता है कि पिताजी से किसी-न-किसी रूप में कहीं-न-कहीं फिर मुलाक़ात होगी। कोटि-कोटि नमन।
सभागार के इस हाइब्रिड कार्यक्रम में कर्मयोगी श्री संजय प्रभाकर एवं श्री वरूण कुमार ने डॉ रामदरश मिश्र जी की श्रेष्ठतम रचनाओं को सुरमई प्रस्तुति के साथ समस्त वातावरण को गुंजायमान करते हुए डॉ रामदरश मिश्र जी की स्मृतियों को सभी उपस्थित विद्वतजनों के अंतर्मन में एक जनचेतना के माध्यम से पुनः जीवंतता के साथ संचारित कर दिया।
इस दौरान उनके व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और साहित्यिक सृजन की स्मृतियों की चित्रावली सहित उनकी श्रेष्ठतम रचनाओं के कुछ ख़ास अंशों को समाहित किए गए एक उत्कृष्ट वृतचित्र का भी प्रदर्शन किया गया।
औपचारिकता स्वरूप श्री वरूण कुमार द्वारा इस आयोजन का समापन भी देश-विदेश के विभिन्न शहरों और क्षेत्रों से पधारे सभी विद्वतजनों एवं आगंतुकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए धन्यवाद और आभार ज्ञापित करने के साथ किया गया।
आयोजन के दौरान लिए गए कुछ चित्र एवं वीडियो आप सभी के अवलोकनार्थ यहां प्रस्तुत हैं।
— कुमार सुबोध, ग्रेटर नोएडा वेस्ट।
