• भारत सहित श्रीलंका, आस्ट्रेलिया, लंदन के विद्वानों ने व्यक्त किए विचार
  • ‘हिंदी का वैश्विक परिदृश्य : कल, आज और कल’ विषय पर हुई अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी
  • विश्व रंग श्रीलंका 2025 का पोस्टर हुआ लोकार्पित
  • “टैगोर : एक जीवनी (विश्वकवि रबीन्द्रनाथ ठाकुर का भावालोक)”, “कालिदास” एवं “परदेसिया” पुस्तकें हुई लोकार्पित
  • विश्व रंग श्रीलंका 2025 : भारतीय उच्चायोग, कोलंबो में 29–30 सितम्बर को होगा आयोजित

विश्व रंग फाउंडेशन, टैगोर अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र, हिंदी विभाग, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी दिवस पखवाड़ा – 2025 का भव्य शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर ‘विश्व रंग श्रीलंका 2025’ का पोस्टर लोकार्पित किया गया।

विश्व रंग अंतरराष्ट्रीय चैप्टर के रूप में विश्व रंग श्रीलंका 2025 का आयोजन 29–30 सितम्बर 2025 को कोलंबो (श्रीलंका) में किया जाएगा। इस आयोजन का सह–आयोजक स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केन्द्र, भारतीय उच्चायोग, कोलंबो है। इसमें भारत सहित दक्षिण एवं दक्षिण–पूर्व एशियाई देशों के प्रमुख साहित्यकार, प्रोफेसर और विद्यार्थी भाग लेंगे। कार्यक्रम का मुख्य विषय “दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में सांस्कृतिक समन्वय के आधार” है। इस दौरान उद्घाटन वक्तव्य प्रख्यात चिंतक–विचारक श्री पवन वर्मा देंगे। इसमें भाषाई आदान–प्रदान, सांस्कृतिक एकता पर विमर्श और कवियों का विशेष काव्य–पाठ शामिल होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं ‘विश्व रंग’ के निदेशक श्री संतोष चौबे ने यह जानकारी देते हुए कहा कि हिंदी का विकास भारतीय भाषाओं के विकास के साथ ही होगा। बोलियों के साथ हमारी भाषा को समृद्ध करें। भाषा को कौशल विकास की तरह देखा जाना चाहिए। हिंदी शिक्षण के स्तर का निर्धारण बहुत आवश्यक है। टैगोर विश्वविद्यालय ने हिंदी शिक्षण के पाठ्यक्रम का निर्माण किया है। हिंदी के वैश्विक मानकीकरण के एक टेस्ट को भी रेखांकित किया गया है। आर्थिक समृद्धि के साथ ही भाषा भी समृद्धशाली होती है।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रवि प्रकाश दुबे ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हिंदी के लिए हमारे प्रयासों को और अधिक ताकत प्रदान करेगा। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय हिंदी के लिए विश्व रंग अंतरराष्ट्रीय हिंदी ओलंपियाड का आयोजन विश्व के 50 से अधिक देशों में कर रहा हैं। यह हमारे लिए गौरव की बात है।

टैगोर अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र के निदेशक डॉ. जवाहर कर्नावट ने अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि हिंदी के गुण गाते हो तो फिर हिंदी लिखने में क्यों शरमाते हो। हिंदी पर हमें गर्व होना चाहिए। हमें हिंदी बोलने के साथ ही लिखते समय, खासकर सोशल मीडिया पर भी रोमन लिपि के स्थान पर देवनागरी लिपि का ही उपयोग करना चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में अतिथि वक्ता के रूप में श्रीमती रीता कौशल (ऑस्ट्रेलिया) ने कहा कि हम हिंदी समाज आस्ट्रेलिया के माध्यम से हिंदी का कार्य कर रहें हैं। वहाँ हिंदी सेवी दिनेश श्रीवास्तव जी के प्रयासों के प्रतिफल स्वरूप वर्ष 2012 में हिंदी को आस्ट्रेलिया के मुख्य पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया। आस्ट्रेलियन टाइम्स में भी हिंदी के दो पृष्ठ प्रकाशन ने हिंदी को लोकप्रिय बनाया। स्थानीय रेडियो के माध्यम से भी हिंदी शिक्षण के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा हैं। हिंदी पाठशाला का आरंभ भी किया है। आस्ट्रेलिया में छः राज्य और दो केन्द्र शासित राज्य है। लगभग सभी जगह हिंदी प्रगति के पथ पर अग्रसर है। आस्ट्रेलिया में हिंदी रचनात्मक लेखन के क्षेत्र में भी काफी काम हो रहा है। वहाँ हर विद्यार्थी को उसकी जरूरत के हिसाब से हिंदी पढ़ाई जाती है।

श्रीमती पद्मा वीरसिंह (श्रीलंका) ने कहा कि हिंदी से विशेष लगाव और प्रेम के चलते मैंने श्रीलंका में हिंदी स्वयं सीखी और आने वाली पीढ़ी को हिंदी पढ़ना लिखना सिखाया। इसमें मेरे पति ने मुझे बहुत प्रेरित किया। श्रीलंका में हिंदी की सेवा में उनका भी अनुकरणीय योगदान रहा हैं। भारतीय फिल्म जिस देश में गंगा बहती है फिल्म से प्रेरित होकर हमने हिंदी सीखने का संकल्प लिया। यह सुखद है कि श्रीलंका सरकार भी हिंदी के लिए सहयोग प्रदान करती हैं।

डॉ. वंदना मुकेश शर्मा (लंदन) ने कहा कि लंदन में महेंद्र वर्मा जी ने 1967 से हिंदी का बहुत कार्य किया। उनसे प्रेरणा लेकर कई संगठन हिंदी की सेवा में रत हैं। वैश्विक स्तर पर रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा निर्मित हिंदी पाठ्यक्रम हिंदी शिक्षण की दिशा में एक नींव का पत्थर साबित होगा। उन्होंने आगे कहा कि बीबीसी लंदन के जरिए एवं एफ.एम. रेडियो के माध्यम से भी ब्रिटेन में हिंदी के प्रति लोगों का लगाव बढ़ा है।

श्रीमती अतिला कोतलावल (श्रीलंका) ने कहा कि हमारे यहाँ हिंदी से लोगों को जोड़ना उतना आसान नहीं था। मैंने हिंदी शिक्षण संस्थान से हिंदी सीखी फिर श्रीलंका में छोटी बहनों को घर पर ही हिंदी पढ़ना लिखना सिखाया। हमने बोलचाल की हिंदी के लिए बहुत काम किया। वर्तमान में युवाओं को हिंदी से जोड़ने के लिए हिंदी को रोजगार की भाषा बनाना होगा। श्रीलंका में प्रतिवर्ष चार लाख भारतीय पर्यटकों का आना होता है। ऐसे में श्रीलंका में टूरिस्ट गाईड के लिए हिंदी शिक्षण का पाठ्यक्रम पृथक से बनाना होगा। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय और कोलंबो विश्वविद्यालय के मध्य एक एमओयू होने वाला है। श्रीलंका में यह हिंदी के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।

डॉ. के.सी. अजय कुमार (त्रिवेंद्रम, भारत) ने कहा कि केरल में हिंदी का पठन पाठन और प्रचार प्रसार प्रारंभ से रहा है। केरल पाठ्यक्रम में हिंदी की पढ़ाई अनिवार्य है। मलयालम संस्कृत आधारित भाषा हैं अतः केरल में हिंदी के प्रति लोगों का लगाव भी अधिक हैं।

उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर आईसेक्ट पब्लिकेशन, भोपाल द्वारा प्रकाशित एवं केरल के वरिष्ठ रचनाकार डॉ. के.सी. अजय कुमार द्वारा लिखित टैगोर : एक जीवनी (विश्वकवि रबीन्द्रनाथ ठाकुर का भावालोक)” , “कालिदास” लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया।

आस्ट्रेलिया की लेखिका सुश्री रीता कौशल द्वारा लिखित पुस्तक “परदेसिया” का लोकार्पण भी अतिथियों द्वारा किया गया। विश्व रंग की पत्रिकाओं ‘वनमाली कथा’, ‘रंग संवाद’, ‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिये’ का लोकार्पण भी अतिथियों द्वारा किया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के स्टुडियो द्वारा तैयार किये गये स्वाधीनता के गीतों की प्रस्तुतियों ने सभी को भावविभोर कर दिया। स्वाधीनता गीतों की पुस्तक भी लोकार्पित की गई।

प्रारंभ में स्वागत उद्बोधन टैगोर विश्वविद्यालय की कुलसचिव डॉ. संगीता जौहरी द्वारा व्यक्त किया गया। प्रारंभिक संचालन हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अरुण पाण्डेय द्वारा किया गया। आभार मानविकी एवं उदार कला संकाय की अधिष्ठाता डॉ. रुचि मिश्रा तिवारी द्वारा व्यक्त किया गया।

उल्लेखनीय है कि “हिंदी का वैश्विक परिदृश्य : कल, आज और कल” विषय पर आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और श्रीलंका के हिंदी विद्वानों के साथ–साथ विश्व कला एवं संस्कृति केंद्र के निदेशक, श्री विनय उपाध्याय, विश्व रंग फाउंडेशन के सीईओ श्री विकास अवस्थी, वनमाली कथा के संपादक श्री कुणाल सिंह, वनमाली सृजन पीठ की राष्ट्रीय संयोजक एवं आईसेक्ट पब्लिकेशन की प्रबंधक सुश्री ज्योति रघुवंशी, विश्व रंग सचिवालय के सचिव संजय सिंह राठौर, विश्वविद्यालय के विभिन्न संकाय के अधिष्ठाता, विभागाध्यक्ष, प्राध्यापकगण एवं विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में रचनात्मक भागीदारी की।

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