
पहले दिन का कार्यक्रम
4 अक्टूबर, 2025, नई दिल्ली
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने विरोधियों और शत्रुओं को अनेक बार क्षमा किया है, परंतु राष्ट्र के विरोधियों और शत्रुओं को कभी क्षमा नहीं किया।
प्रो. सिंह ने शनिवार को इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर पीजीडीएवी महाविद्यालय में आयोजित द्विदिवसीय समग्र संघ साहित्य परिचर्चा के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए उक्त बातें कहीं।
प्रो. सिंह ने कहा कि इस वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं। ऐसे में यह उपयुक्त एवं अनुकूल समय है जब संघ साहित्य पर परिचर्चा का आयोजन हो रहा है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मात्र व्यक्तियों का समूह नहीं है, अपितु यह एक विचार है। विचार से जुड़ने पर कभी मन में निराशा का भाव नहीं आता। संघ व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के ध्येय को लेकर कार्य करता है।
मुख्य अतिथि के रूप में केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर के पूर्व कुलाधिपति डॉ. बलवंत जानी ने कहा कि इन दिनों राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं भारतीय ज्ञान परंपरा पर चर्चा होने के चलते संघ साहित्य को मान्यता मिल रही है।
विशिष्ट अतिथि के नाते सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष श्री राजीव तुली ने कहा कि संघ को ऐसे लोगों ने गढ़ा है जो रुके नहीं, टुटे नहीं, झुके नहीं और बिके नहीं। उन्होंने कहा कि सुरुचि प्रकाशन राष्ट्रीय साहित्य प्रकाशन का महती कार्य कर रहा है।


कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती के अध्यक्ष डॉ. अवनिजेश अवस्थी ने कहा कि संघ के बारे में प्रामाणिक जानकारी लोगों तक पहुंचें, इसलिए हमने समग्र संघ साहित्य परिचर्चा का आयोजन किया है।
उद्घाटन सत्र का संचालन इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती के महामंत्री संजीव सिन्हा एवं धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम संयोजक प्रो. ममता वालिया ने किया।
इस अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री श्री मनोज कुमार, राष्ट्रीय मंत्री प्रो. नीलम राठी एवं श्री प्रवीण आर्य, पीजीडीएवी महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. दरविंदर कुमार, इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. विनोद बब्बर, उपाध्यक्ष मनोज शर्मा, मंत्री नीलम भागी, सुनीता बुग्गा, राकेश कुमार, कोषाध्यक्ष अक्षय अग्रवाल, डॉ. रजनी मान, सारिका कालरा सहित बड़ी संख्या में साहित्यकारों एवं छात्रों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
उद्घाटन सत्र के पश्चात् प्रथम सत्र में साहित्यकारों, प्राध्यापकों एवं शोधार्थियों ने राष्ट्र, भारतबोध, धर्म एवं संस्कृति, हिंदुत्व, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, कार्यकर्ता निर्माण, संघ और स्वतंत्रता आंदोलन, संघ और सामाजिक समरसता, पर्यावरण, कुटुंब व्यवस्था, नारीशक्ति, शिक्षा सहित अनेक विषयों से संबंधित संघ विचारकों द्वारा लिखित पुस्तकों का सार प्रस्तुत किया। इस सत्र का संचालन कार्यक्रम सह संयोजक डॉ. मलखान सिंह ने किया।
दूसरे दिन का कार्यक्रम
5 अक्टूबर, 2025, नई दिल्ली
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री श्री मनोज कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ऐसे लोग तैयार किए जो देश के लिए प्राण देने पड़े तो प्राण दिए, नहीं तो देश के लिए जिए। इस समय संघ, भारत और हिंदू तीनों शब्द पर्याय हो गए हैं।

श्री कुमार ने रविवार को इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर पीजीडीएवी महाविद्यालय के पुस्तकालय में आयोजित द्विदिवसीय समग्र संघ साहित्य परिचर्चा के समारोप सत्र में उक्त बातें कहीं।
श्री कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य व्यापक है। कोई विषय अछूता नहीं है। संघ ने व्यक्ति से विश्व तक काम किया। राष्ट्र के पुनर्सृजन का कार्य किया। संघ का लक्ष्य है हिंदू समाज का संगठन करना एवं भारत को विश्व-मित्र बनाना।
उन्होंने कहा कि समग्र संघ साहित्य परिचर्चा इसलिए आयोजित की गई है ताकि संघ का सही विचार साहित्य की सभी विधाओं के माध्यम से जन-जन तक पहुंचे। संघ साहित्य का कलेवर भले उतना उत्कृष्ट न हो लेकिन विषयवस्तु तथ्यात्मक रहता है।
इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती के कार्यकारी अध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. विनोद बब्बर ने कहा कि इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती द्वारा निरंतर साहित्यिक कार्यक्रमों के माध्यम से जनमानस में साहित्य के प्रति अभिरुचि उत्पन्न की जा रही है।

इससे पूर्व दूसरे सत्र में कुल 20 साहित्यकारों, प्राध्यापकों एवं शोधार्थियों ने विभिन्न विषयों से संबंधित संघ विचारकों द्वारा लिखित पुस्तकों का सार प्रस्तुत किया, जिसमें मनीषा शर्मा (भारत की संत परंपरा और सामाजिक समरसता), नवीन कुमार नीरज (और देश बंट गया), वरुण कुमार (धर्म और संस्कृति : एक विवेचना), सोनू (डॉ. हेडगेवार, संघ और स्वतंत्रता संग्राम), प्रणव कुमार ठाकुर (हमारी सांस्कृतिक विचारधारा के मूल स्रोत), संजय सिंह (भारत के राष्ट्रत्व के अनंत प्रवाह), भास्कर उप्रेती (धर्म की अवधारणा), विकास कुमार यादव (राष्ट्र चिन्तन), अवंतिका यादव (पर्यावरण दर्शन), प्रियंका मिश्रा (रा.स्व.संघ : कार्यकर्ता, अधिष्ठान, व्यक्तिमत्व, व्यवहार), आदर्श कुमार मिश्र (वर्तमान संदर्भ में हिन्दुत्व की प्रस्तुति), अनु कुमारी (भविष्य का भारत), रजत तिवारी (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का परिचय), डॉली गुप्ता (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का परिचय), रचना (भारतीय शिक्षा दृष्टि), पूनम राठी (भारतीय शिक्षा के मूल तत्व), अंकित कुमार (एकात्ममानव दर्शन ), मीनाक्षी यादव (भविष्य का भारत), सूर्य प्रकाश (धर्म की अवधारणा) एवं लक्ष्मी नारायण (डॉ. हेडगेवार : परिचय एवं व्यक्तित्व) के नाम उल्लेखनीय हैं।
दूसरे एवं समारोप सत्र का संचालन कार्यक्रम सह संयोजक प्रो. सारिका कालरा एवं धन्यवाद ज्ञापन इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती कार्यकारिणी सदस्य डॉ. रजनी मान ने किया।
इस अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की राष्ट्रीय मंत्री प्रो. नीलम राठी, इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती के उपाध्यक्ष मनोज शर्मा, प्रो. ममता वालिया, महामंत्री संजीव सिन्हा, मंत्री नीलम भागी, राकेश कुमार, जगदीश सिंह, आचार्य अनमोल, सुनील दत्ता, सुपरिचित लेखक देवांशु झा, डॉ. श्रुति मिश्रा सहित अनेक साहित्यकार एवं शोधार्थी उपस्थित थे।