नरेश शांडिल्य के हाल ही में प्रकाशित दोहा-संग्रह  ‘मेरी अपनी सोच’ पर चर्चा

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान शिवाजी कॉलेज के हिन्दी विभाग और साहित्यिक संस्था ‘वयम्’ के संयुक्त तत्त्वावधान में देश के प्रख्यात दोहाकार नरेश शांडिल्य के हाल ही में प्रकाशित दोहा-संग्रह ‘मेरी अपनी सोच’ पर एक विस्तृत चर्चा का कार्यक्रम शिवाजी कॉलेज के पेशवा बाजीराव सभागार में आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता हिन्दी साहित्य-जगत की वरिष्ठ काव्य-विभूति, प्रख्यात साहित्यकार बालस्वरूप राही ने की। शिवाजी कॉलेज के प्राचार्य प्रो. वीरेंद्र भारद्वाज के गरिमामय सान्निध्य में कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के पूर्व उपाध्यक्ष, वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष, कवि-लेखक-समीक्षक अनिल जोशी तथा वक्ताओं के रूप में सुपरिचित कवयित्री-कथाकार अलका सिन्हा व शिवाजी कॉलेज के हिन्दी विभाग के प्रो. विकास शर्मा मंच पर विराजमान रहे। शिवाजी कॉलेज के हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. ज्योति शर्मा और वयम् के महासचिव कवि अनिल वर्मा ‘मीत’ के संयुक्त संयोजन में सम्पन्न हुए इस कार्यक्रम का संचालन वयम् के सचिव कवि ताराचन्द ‘नादान’ ने  किया।

     कार्यक्रम का शुभारंभ मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन और कॉलेज की छात्रा श्रीलक्ष्मी द्वारा सुमधुर सरस्वती वंदना करके किया गया। तत्पश्चात सभी गणमान्य अतिथियों को अंगवस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। सभी वक्ताओं ने पुस्तक के लेखक नरेश शांडिल्य के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अपने सार्थक और सारगर्भित विचार रखे तथा उनके दोहों की खुलकर प्रशंसा की।

प्रख्यात कवि व वयम् के उपाध्यक्ष शशिकांत और हंसराज कॉलेज के हिन्दी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ रवि कुमार गोंड़ ने पुस्तक पर अपने-अपने सारगर्भित आलेख पढ़े। दोहासंग्रह के प्रकाशक श्वेतवर्णा प्रकाशन की ओर से कवि राहुल शिवाय ने नरेश शांडिल्य के दोहों को अत्यंत लोकप्रिय बताते हुए अपने महत्वपूर्ण विचार रखे।

     मुख्य वक्ता अनिल जोशी ने पुस्तक पर विस्तार से अपने विचार व्यक्त करते हुए नरेश शांडिल्य को ‘दोहों का दुष्यंत’ कहा। दोहों में उनके आधुनिक बोध का ज़िक्र करते उन्होंने कहा कि नरेश कुबेरी नहीं कबीरी सोच के कवि हैं। उन्होंने पुस्तक से उनका ये दोहा भी कोट किया –

बेशक होगा शाह वो, मैं अलमस्त फ़क़ीर।

उसका पीर कुबेर है, मेरा पीर कबीर।।

     अलका सिन्हा ने उक्त दोहा संग्रह के ‘मेरी अपनी सोच’ शीर्षक को सर्वदा उपयुक्त बताते हुए दोहों में व्यक्त नरेश शांडिल्य की औरों से भिन्न मौलिक सोच को कई तरह से रेखांकित किया। जहाँ शिवाजी कॉलेज के प्राचार्य प्रो. वीरेंद्र भारद्वाज ने इन दोहों को नई पीढ़ी के लिए ज़रूरी बताया वहीं आचार्य प्रो. विकास शर्मा ने दोहों में व्यक्त राष्ट्रीय चेतना को अलग से रेखांकित किया।

     अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार बालस्वरूप राही ने कहा कि समकालीन दोहाकारों में नरेश शांडिल्य अलग से पहचाने जाते हैं। उनके दोहे अनेक कवि सम्मेलनों में कोट किये जाते हैं। दोहा और नरेश शांडिल्य लगभग एक दूसरे के पर्याय हो गए हैं।

      लगातार तीन घंटे तक चले इस कार्यक्रम में शिवाजी कॉलेज के अनेक गणमान्य प्रोफेसर, भारी संख्या में छात्र-छात्राएँ तथा दिल्ली, एनसीआर से पधारे तीस से ज़्यादा साहित्यकार और साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे जिनमें से कुछ नाम हैं:  डॉ रंजना अग्रवाल, डॉ प्रमोद शास्त्री, डॉ नीलम वर्मा, प्रेम बिहारी मिश्र, शिव कुमार त्रिपाठी, सत्या त्रिपाठी, मीना चौधरी, रामानुजसिंह सुन्दरम्, प्रमोद शर्मा ‘असर’, अश्विनी शर्मा, जगमोहन सैनी, हर्षवर्धन आर्य, मनु सिन्हा, वेणुगोपाल शर्मा, गरिमा श्रीवास्तव, रवींद्र भारद्वाज, प्रेम सागर ‘प्रेम’, आलोक पाण्डेय, राहुल शिवाय, रोहित आनंद, राकेश कुमार, शिव कुमार, इब्राहिम अल्वी, समीना बेगम, डॉ पन्नालाल आदि।

कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम की मुख्य संयोजक प्रो. ज्योति शर्मा ने सभी आगुंतकों को धन्यवाद ज्ञापित किया। 

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