
(प्राक्कथन – अनीता वर्मा, प्रस्तुति : जयशंकर यादव, जय वर्मा (ब्रिटेन), अलका सिन्हा, डॉ अनिता कपूर (अमेरिका), निशा भार्गव, अजेय जुगरान, डॉ दीप्ति अग्रवाल, मंजु गुप्ता, नूपुर अशोक (औस्ट्रेलिया), सुनीता पाहुजा, संगीता चौबे पंखुड़ी (कुवैत), पूनम माटिया, डॉ सुनीता श्रीवास्तव, डॉ. अमरपाल सिंह की रचनाओं को जगह दी गई है।)
प्राक्कथन

अनीता वर्मा
आज पूरा विश्व राममय है। भगवान राम के जन्मोत्सव पर हर तरफ़ ख़ुशी का वातावरण है। यह त्यौहार भारतीय त्योहारों की परंपरा में गहराई से निहित है, जो हिंदू धर्म की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत पर जोर देते हुए विभिन्न क्षेत्रों में भक्ति, आशीर्वाद और अनुष्ठानों की एक झलक दर्शाता है। पूरे विश्व की उस राम पर आस्था है जो उनके जीवन का आधार हैं । राम कभी अभिराम हैं तो कभी अविराम और कभी अविनाशी।
वैश्विक उत्सव और समावेशिता का पर्व राम नवमी भौगोलिक सीमाओं से परे है, इसे न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर के हिंदू समुदायों द्वारा मनाया जाता है। समावेशिता और वैश्विक महत्व का त्योहार जन जन के जीवन में विशेष महत्व रखता है।
सीय राममय सब जग जानी।
करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥1॥
चौरासी लाख योनियों में चार प्रकार के जीव जल, पृथ्वी और आकाश में रहते हैं, उन सबसे भरे हुए इस सारे जगत में सीताराममय हिन्दू संस्कृति के आदर्श हैं।
राम जड़ चेतन सबमें व्याप्त हैं। “हरे राम” से “हे राम“ तक जन-जन में व्याप्त राम गाथा अनंत है।
आज हमारी वेबसाइट भी राममय हो गई है। बहुत सारी कविताएं हमें पूरे विश्व से प्राप्त हुई हैं। हम सब अभिभूत से राम की भक्ति के रंग में सराबोर हैं। आइए आज के इस विशेषांक में राम की अनंत महिमा से ओतप्रोत रचनाओं को पढ़ते हैं।
राम नवमी का दिव्य रहस्य : मुनि सुतीक्ष्ण और अगस्त्य ऋषि का संवाद
(रत्न हरि के ‘राम रहस्य’ से)


प्रस्तुति : जयशंकर यादव
“गुरुदेव! क्या कोई ऐसा जप है, जिससे हृदय की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाएँ?”
“क्या कोई ऐसा ध्यान है, जो जन्म-मरण के बंधन से मुक्त कर दे?”
“और वह परम तत्व क्या है, जिससे यह संपूर्ण सृष्टि आलोकित है?”
सुतीक्ष्ण मुनि के इन गूढ़ प्रश्नों पर अगस्त्य मुनि एक पल के लिए मौन हो गए। फिर उनके होंठों से दिव्य वाणी फूटी—
“सुनहु सतीछन! परम जो तत्व कहत श्रुति सोई।
गुनातीत पर जोति अज अमल अखिल जिय जोई।।”
परम तत्व वही है, जिसे वेद बार-बार गाते हैं।
वह निर्गुण, अनंत प्रकाश, अजन्मा, पवित्र और सबके हृदय में विद्यमान है।
बहुरि परम जप कहौं सुतीछन।
जाहि जपत उघरै उर ईछन।।
सबसे श्रेष्ठ जप ‘राम’ नाम है।
जो भी इस नाम का निरंतर स्मरण करता है, उसके हृदय के समस्त द्वार खुल जाते हैं—भक्ति के भी, मोक्ष के भी।
“राम नाम सम जप जग नाही। आगम निगम पुरान कहांही।।”
वेद, उपनिषद्, पुराण—सब यही कहते हैं कि ‘राम’ नाम से श्रेष्ठ कुछ नहीं।
लेकिन ध्यान? वह कौन-सा ध्यान है जो मोक्ष का सीधा द्वार खोल देता है?
अगस्त्य मुनि की दृष्टि तेजस्वी हो उठी
“सुनि पुनि ध्यान सकल स्रुति सारा। जिंहि करि नर पावत भव पारा।।”
जिस ध्यान से भवसागर तरा जा सकता है, वह ध्यान है—श्रीराम के बालरूप का ध्यान!
कल्पना कीजिए—अयोध्या नगरी के बीचों-बीच एक भव्य मणि-मंडप है। वहाँ, माता कौशल्या की गोद में एक मनमोहक बालक मुस्कुरा रहा है।
“तहं निज जननि गोद गत रामा। इंद्रनील मनि सुंदर स्यामा।।”
श्याम वर्ण, इंद्रनीलमणि के समान चमकता दिव्य स्वरूप।
“मृदुल मंजु मूरति मनमोहन। दामिनि वरन बसन सुभ सोहन।।”
कोमल और आकर्षक आकृति, बिजली की चमक जैसे स्वर्णाभ वस्त्र।
“भाल सुढाल विसाल विलोचन। झलकत अलिक तिलक गोरोचन।।”
उन्नत भाल, विशाल नेत्र, और मस्तक पर झिलमिलाता गोरोचन तिलक।
“रतन किरीट कलित कमनीया। कंठ कंठ भूषन रमनीया।।”
मणियों से जड़ा मुकुट, गले में कौस्तुभ मणि और मोतियों की मालाएँ।
जो भी इस अद्भुत स्वरूप का ध्यान करता है, उसके हृदय में भक्ति का महासागर उमड़ पड़ता है राम नवमी केवल एक उत्सव नहीं, एक दिव्य योग है—परम तत्व, परम जप और परम ध्यान का!
जिसने इसे जान लिया, उसने सब कुछ जान लिया।
**** **** ****
जय वर्मा

फिर से रामराज्य
हर युग में होंगी सीता
हर युग में होंगे राम
हर युग में होगी अग्नि परीक्षा
हर युग में होंगे श्याम
द्वापरयुग के तुम अवतार
मानव के भेद मिटाने वाले
अहिल्या को मुक्त कराने वाले
शबरी के बेर बना दिए प्रसाद
तुम तो कल आकर चले गये
त्रेतायुग की दिशा दिखा गये
आज कलयुग का सुन क्रन्दन
क्या नहीं करता तुम्हारा वापिस आने का मन
तुलसी ने लिखी रामचरित मानस
रामानन्द सागर ने बनाया रामायण सीरियल
केवट आज आज भी खड़े हैं नाव लिए
तुम्हें वापिस लाने के लिए
कोई कहता है कि राम ने
धोबी के कहने पर सीता को छोड़ दिया
कोई कहता है कि लव और कुश ने
पिता को युद्ध में हरा दिया
सीता को सोने का मृग लाने वाले
सुग्रीव को राज्य लौटाने वाले
रावण ने मांगी तुमसे परम गति
रघुकुल की रीत निभाने वाले
हे मर्यादा पुरुषोत्तम राम
मैं तुमसे आज कहती हूँ
तुम्हें कलियुग में आकर देखना होगा
हिंसा, स्वार्थ और अधर्म को मिटाना होगा
राजनीति को फिर से संभालना होगा
हनुमत को साथ लाना होगा
वरना पूर्ण कैसे होंगे अधूरे सपने
और कैसे होगा फिर से राम राज्य।
**** **** ****
अलका सिन्हा

जब भी कोई विपदा आई, मैंने तुझको सुमिरा राम।
जो तुम मेरी जगह पे होते, कैसे राघव लोहा लेते
कैसे मर्यादा को रचते, कैसे करते पूरे काम।
वन-वन भटके राजभवन से, राज प्रतिज्ञा की खातिर
छोड़ राजसी ठाठ-बाट सब, बने नागरिक आम।
शबरी के जूठे बेरों में, थी मिठास तूने बतलाया
है कितना अनमोल भाव यह और कैसा बेदाम।
तुम मर्यादा पुरुषोत्त्म थे, आदर्शों पर सदा चले
ऐसी थी यश-कीर्ति तुम्हारी, कभी न ढलती जिसकी शाम।
सजी हुई है आज अयोध्या, दीप जलाता सारा देश
जगमग करती नगरी सारी, सबके मन में तेरा धाम।
जब भी कोई संकट आया, तुमको अपने भीतर पाया
राह दिखाई हरदम जिसने, तेरा चरित ललाम।
भव सागर सी दुनिया गहरी, पर केवट की नैया ठहरी
सहज भाव से तर जाएंगे, लेकर तेरा नाम।
**** *** ****
डॉ अनिता कपूर, (कैलिफोर्निया, अमेरिका)

मन की अयोध्या
मुझमे, मेरे भीतर
यह पारस जो महसूस होता है
वह है राम….
केवल राम, सिर्फ….राम….
यह अपनापन
किसी भी रिश्ते से ज़्यादा सगा
रामत्व में नहाया
भीगा-भागा आचरण
राम की खड़ाऊँ की खट-खट….
राम आशीष की छाँह में बैठी मैं….
मूर्तमान चरण
मन गोया कि तुलसी का राम सत्वन
सुबह उठो तो मन की अयोध्या में
बधाइयाँ बजती होती हैं
रामनवमी और कहीं नहीं
मेरे अतल तल में….
अपनी सम्पूर्ण राममयता के साथ
कौशल्यावत साकार होती है….
माँ बेटे की ऊं-ऊं पर रीझती है….
पूजा पर बैठो तो….
प्रार्थना ही शरीर धार लेती है….सीता का….
मेरे राम को वरमाल पहनाती है….
यह दृश्य, यह छवि
प्राणों के मरुस्थल पर
हर हर लहराती है….
दोपहर मन कुछ बधहवास होता है
चिलचिलाती धूप में तपिश का एहसास
शायद राम को बनवास होता है….
लंका दहन की तपिश भी उसमे महसूस होती है
मन का दिन आगे सरकता है
फिर
शाम होती है….
मन चुपचाप होता है
इतने में प्राणों में
राम का अवध आगमन होता है….
लाखों आँखें दिवाली सी टिमटिमा उठती हैं
दीपावली मनाती है….
राजतिलक का मुहूर्त
राम का मन कुछ उदास होता है
शायद पिता दशरथ के आसपास होता है
इतने में माँ कौशल्या का आशीर्वाद
मन फिर से खिलकर सुर्खुरु पलाश होता है
मन भर-भर आता है….
सिहर-सिहर उठती है रोमावलियाँ
यह अवध की सड़कें और गलियाँ
मेरा मन चक्रवर्ती सम्राट होता है….
इतने में आती है
सरयू की तरह घुमड़ती काली रात
मेरा राम हरहराती नदी में उतरकर
लहर-लहर हो जाता है….
और अगले ही क्षण
मुझमे …..मेरे भीतर
राम नाम का पारस मेरी आत्मा में चला आता है
और मन की अयोध्या
जुगनुओं की खेती सी लहलहा उठती है।
**** *** **** *** ****
निशा भार्गव

राम नमामि नमामि
नहीं लिखती मैं गीत
पर राम से रखती हूँ प्रीत
ग्रीष्म हो या शीत
राम हैं सबके मनमीत
प्रजापालक
सृष्टि के संचालक
कृपालु, दयालु
पावन हैं आपके दर्शन
सबके हैं मार्गदर्शक
शक्तिशाली, निडर मर्यादा पुरषोत्तम
आप हैं सर्वश्रेष्ठ और नरोत्तम
रूप है मनमोहक
देते सबको सबका हक
शबरी के राम
गए उसके धाम
अहिल्या के राम
चरणरज ने किया कमाल
केवट के राम
भवसागर कराते पार
निषादराज के राम
मित्रता का मुकाम
सीता के राम
रावण तमाम
हनुमान के राम
कर्म निष्काम
दुष्टों के विरुद्ध
लड़ने वाले जायज युद्ध
भ्रातृ प्रेम का नहीं कोई सानी
वनगमन की पितृ इच्छा आपने मानी
आप सुपुत्र हैं, वंदनीय हैं
पूजनीय हैं, सम्माननीय हैं
अनंत गुणों से सम्पन्न
राज में नहीं रहा कोई विपन्न
हम सबकी आस हैं
सबके निकट और पास हैं
राम अपराजित
सबके ह्रदय में विराजित
आवश्यक नहीं कोई प्रमाण
अमोघ बांण
रावण के हरे प्राण
भक्तों का करा कल्याण
मानवीयता की ओर प्रयाण
नहीं लिखती मैं गीत
पर राम से रखती हूँ प्रीत
**** *** ****
आशा बर्मन, कनाडा

उर्मिला की व्यथा
मन में ही रही मन की बात
कभी न ओठों तक ला पायी
जो ह्रदय लगा आघात |
जब आयी थी मैं विवाह कर
हँसते- गाते सभी परस्पर,
नहीं जान पायी कब कैसे
बीते वे सुखमय दिन सत्वर।
अनमोल पलों से सजे सजे
वे अपने दिन रात
मन में ही रही मन की बात
सहसा कैसे दुर्दिन घिर आये,
केकैयी माँ ने दुर्वचन सुनाये,
राजा से पाकर दो वर,
रामचंद्र वनवास पठाए।
आनंद भरे मेरे जीवन पर
हुआ कुठाराघात।
मन में ही रही मन की बात
जब भरत गए तुमको लौटाने,
क्षीण आशा थी जागी मन में
आशा वह भी हुई विफल,
व्यथा भरी मेरे कण कण में
कितना अवशिष्ट रहा प्रियतम
कहना- सुनना, तुमसे तात
मन में ही रही मन की बात।
पति हैं पर जीवन पतिविहीन
विरह में हो रही हूँ क्षीण
सबके बीच भी हूँ एकाकी,
’जीवन मेरा हुआ सारहीन
सूने सूने से हो गए
अब मेरे दिन- रात
मन में ही रही मन की बात
न जाने प्रिय अब कब आयेंगे ?
मुझको क्या जीवित पायेंगे?
बरसों पर यदि मिल भी पायी,
मुझको क्या वैसा पायेंगे ?
जीवन की बाजी में मैंने
केवल पायी है मात।
मन में ही रही मन की बात।
**** *** ****
अजेय जुगरान

आइए राम को ले आइए व्यवहार में
लो जब हो गए हैं श्रीराम निज मंदिर में पुनः प्राण प्रतिष्ठित
तो कृतित्व उनका क्यूँ न हम अब तो करें स्वयं में स्थापित।
आइए आम जन का मान हम करें उनसा निश्चित
आइए दिखाइए स्वयं में कुछ तो गुण राम के।
आइए राम को ले आइए निज व्यवहार में
आइए राम को ले आइए नित व्यवहार में।
दें राम सा सम्मान शबरी को
दें राम सा स्पर्श गिलहरी को
भला सबका करें ह्रदय प्रज्ञा से
संग सबको ले चलें सत् चित्त यज्ञ में।
आइए राम को ले आइए निज व्यवहार में
आइए राम को ले आइए नित व्यवहार में।
जीवन बिताएँ राम सा सर्वहारा शुभ को
करुणा दिखाएँ राम सी सब जीव वन को
संजीवनी बाँटे उनके हनु सम हर आहत को
तजें राज सिंहासन उनके भरत सम न्याय में।
आइए राम को ले आइए निज व्यवहार में
आइए राम को ले आइए नित व्यवहार में।
करें नहीं शक्ति संचित कर कहीं घृणा सिंचित
आइए श्रमिक किसान का करें आभार किंचित
अंत्योदय – सर्वोदय करें न रहें स्वजन सीमित
आइए निरिह- निराश को ले आइए आस में।
आइए राम को ले आइए निज व्यवहार में
आइए राम को ले आइए नित व्यवहार में।
सैनिकों का सम्मान करें युद्ध- शांति में
नारायण का दर्शन करें खग- वानरों में
आइए लोक हित में काम हर प्रहर करें
आइए निर्बल- निर्धन को नव अवसर दें।
आइए राम को ले आइए निज व्यवहार में
आइए राम को ले आइए नित व्यवहार में।
**** **** ****
डॉ दीप्ति अग्रवाल

सिया के राम
मेरी माँ ने नहीं रखा, मेरा नाम सीता
कहती राजा की बेटी, राजा के घर ब्याही
पर सुख, एक दिन भी नहीं पा पाई
कैसे समझाऊँ उन्हें?
राम जैसा पति मिलना
सीता का ही सौभाग्य था
इससे बड़ा सुख और क्या?
प्रेमी, दोस्त जैसा पति
मन, कर्म, वचन से एकनिष्ठ
अच्छा बेटा, अच्छा राजा
स्वार्थ से परे, मर्यादा से बंधा
सुख की मात्रा और सुख की गुणवत्ता में फर्क है
प्रेमिल पति के साथ रहना सुख है तो?
वो रही ना वन में, राम के साथ
वो भूखी रही, तो खाया राम से भी ना गया
हरी गई, तो विरह राम से भी ना सहा गया
वो धरती में समाई, तो राम ने भी ली जल-समाधि
उनके नाम से पहले आता है सिया का नाम
बिना राम के सिया नहीं
बिना सिया के राम नहीं
और एक स्त्री को क्या चाहिए?
**** *** ****
मंजु गुप्ता

तुलसी के राम
हे महाकवि, तुमने अपने मानस के रस और गंधमयी
प्रज्ञा से
राम की जो उदात्त परिकल्पना मानस में की
शब्दों के रंग और रेखाओं से
अपनी विराट परिकल्पना को
जो सर्वांगपूर्ण अभिव्यक्ति दी
उसने तुम्हारे राम को
जन-जन का कंठहार बना दिया
मनमंदिर में बिठा दिया
शक्ति, शील, सौंदर्य का संगम करा दिया
मानव संपुट में निहित
अपार सामर्थ्य को मूर्तिमान कर दिया
यह तुम्हारी प्रतिभा का कमाल था
या सशक्त लेखनी का करिश्मा
या तुम्हारी आस्था ने
दाशरथी राम को परब्रह्म बना दिया
राम थे भी या नहीं
या थे तो कैसे, बार-बार उठने वाली
शंका का फण कुचल,
तुमने दुखों से टूटते,
हताशा से जूझते
हम मनुष्यों को आशा, विश्वास और भक्ति का
वह सबल दिया
जिसके चरणों में स्वयं को,
नैवेद्य-सा चढ़ाकर
हम तीन तापों से मुक्त हो जाते हैं
ज्योति की दुनिया में कदम रख पाते हैं
उस दुनिया में जहाँ राम का वरद हस्त नीलाकाश-सा
हमारे सिर पर होता है
उनकी संजीवनी मुस्कान
हमारे होंठों पर खिल आती है
उनका धनुषबाण अहोरात्र
हमारी रक्षा करता है
और उनका शील हमारी क्षुद्रताओं को इतना बौना कर
देता है
कि हम सही अर्थों में मानव हो जाते हैं
हमारी लुंजपुंज क्षमताएं
राम का सहारा पा उठ खड़ी होती हैं
**** **** **** ****
नूपुर अशोक (सिडनी, औस्ट्रेलिया)

राम तुम्हें फिर आना होगा
राम तुम्हें फिर आना होगा,
उलझे सवालोँ को सुलझाने,
हर कर्म का मर्म बताने,
जो किया वह क्योँ किया,
राम चरित्र को फिर समझाने,
राम तुम्हें फिर आना होगा।
तुम पर उठते हैं सवाल,
तुम पर हो जाते हैं बवाल,
तुम्हारे नाम पर लड़ने वाले
मंद्बुद्धियोँ को समझाना होगा,
राम तुम्हें फिर आना होगा।
किसी के लिये तुम फैशन हो,
किसी के लिये बस आइटम हो,
जिये जो जीवन मूल्य तुमने,
उन्हेँ फिर से समझाना होगा,
राम तुम्हें फिर आना होगा।
किसी के लिये बस मूरत हो,
आरती, पूजा और मन्नत हो,
मूरत से बाहर आकर अब,
फिर कर्तव्य सिखाना होगा,
राम तुम्हें फिर आना होगा।
किसी कठघरे में आरोपी हो,
सीता त्याग के दोषी हो,
निज प्रेम पर राज धर्म का
महत्व उनको समझाना होगा,
राम तुम्हें फिर आना होगा।
क्यों ठुकराया शूर्पणखा को,
प्रेरित किया क्योँ अंग-भंग को,
मर्यादा का सीमा-लंघन
है असह्य, बतलाना होगा,
राम तुम्हें फिर आना होगा।
क्यों गये तुम गहन वन में,
क्यों किये असुर-वध तुमने,
अराजकता और प्रपंच का
विनाश करना सिखलाना होगा,
राम तुम्हें फिर आना होगा।
तुम तो थे सियावर राम,
कैसे बन गये जय श्री राम,
नारोँ, झंडोँ को छोड़ फिर से
सियावर राम कहलाना होगा,
राम तुम्हें फिर आना होगा।
कुछ आहत हैं रावण वध पर,
कुछ विभीषण अभिषेक पर,
नीति रहित ज्ञान है निष्फल,
पुनः स्थापन कर जाना होगा,
राम तुम्हें फिर आना होगा।
जो करणीय, वही है धर्म,
तुम्हारा जीवन, तुम्हारे कर्म,
धर्म की सही परिभाषा को
फिर से याद दिलाना होगा,
राम तुम्हें फिर आना होगा।
‘आई’, ‘मी’ और ‘मैँ’ तक सीमित,
बस अपने सुख तक संकुचित,
इस स्वकेन्द्रित दुनिया को,
विश्व-कर्तव्य सिखाना होगा,
राम तुम्हें फिर आना होगा!
राम तुम्हें फिर आना होगा!!
——-*——–
सुनीता पाहुजा

हाइकु
1.
सगुण रूपी
चाहे निर्गुण राम,
पार उतारें
2.
ज्ञान, वैराग्य,
फिर भक्ति के रास्ते
मोक्ष दिलाता
3.
ताप मिटाता
दैहिक व दैविक
राम का नाम
4.
धर्म, कर्तव्य,
सामाजिक चेतना
उदात्त रूप
5.
आदर्श, मूल्य,
आध्यात्मिक चेतना
पूर्णतः स्पष्ट
…………..
आदर्श, मूल्य,
आध्यात्मिक चेतना
मानस सार
6.
मोक्ष जो चाहें
चमत्कारिक मंत्र
जपें मन से।
7.
रघुनंदन
विष्णु के अवतार
मन में धार
8.
उदात्ततम,
लोक कल्याणकारी
मानस कथा
………….
उदात्ततम,
लोक कल्याणकारी
ये महाकाव्य
9.
जप व योग
हरिभक्ति के बिना
हो जाते व्यर्थ
10.
बड़ा भाग्य है
मिली जो नर देह
कर्म मिटा ले
**** *** ****
संगीता चौबे पंखुड़ी, कुवैत

प्रभु श्री राम जन्म
प्रतीक्षा का हुआ अंत और शुभ घड़ी आई,
लिया जन्म श्री राम ने घर घर बजी बधाई।
चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी सुखदाई,
पुनर्वसु नक्षत्र में अभिजीत मुहूर्त शुभ दाई।
पिता दशरथ के मुख पर अति प्रसन्नता छाई,
माता कौशल्या संग कैकई सुभद्रा भी हरषाई।
श्यामल सलोना मुखड़ा देख रानियां हरषार्ई,
नजर उतारकर राम की लख-लख ली बलाई।
शीतल मन्द सुगंधित पवन अति सुखदाई,
सरयू नदी ने अमृत की मधुर धारा बहाई।
अप्सरा भी देवलोक की देने लगी बधाई,
देवी देवता में आशीर्वाद की झड़ी बरसाई।
समस्त नगरवासियों ने खूब खुशियां मनाई,
गीत संगीत नृत्य कर दी एक दूजे को बधाई।
दशरथ ने नगर में माणिक मणियां बंटवाई,
मंगलमय गीत गाना गा जनता सारी हरषाई।
**** **** **** ****
पूनम माटिया

1.
राम मिले सीता को जैसे मुझको भी तुम मिल जाओ
तोड़ धनुष को वरण करो तुम, राम मेरे तुम बन आओ
नहीं मांगती बंगला, गाड़ी, नहीं मांगती मैं सोना
कुछ छोटे-छोटे सपने हैं, आकर पूरा कर जाओ
राम मेरे तुम बन आओ…….
युग-युग से प्यासी है धरती, आकर अगन बुझा जाओ
घट-घट बैठी कोटि अहिल्या, आकर उन्हें जिला जाओ
राम मेरे तुम बन आओ…….
दुर्योधन-दसग्रीव बने सब, नारी हाहाकार करे
मर्यादा पुरुषोत्तम हो तुम, त्रेता याद दिला जाओ
राम मेरे तुम बन आओ……
साधू-संत-सियाने जितने, सब माया के लोभी हैं
बच न सकी सोने की लंका,आकर पाठ पढ़ा जाओ
राम मेरे तुम बन आओ….
** **** **** **
2.
मन है हर्षित, सिया का पता लाऊँगा।
बोले हनुमत, है विश्वास, कर पाऊँगा।
शंका रखना न मन में तनिक मित्रगण!
राम का काज है, करके ही आऊँगा।
**** **** **** ****
डॉ सुनीता श्रीवास्तव, इंदौर, मप्र

श्री राम
मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम को
बारम्बार प्रणाम है
पितृ दशरथ, मात कौशल्या
विराट स्वरूप,
श्री राम को बारम्बार प्रणाम है
भाई भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न
ऐसे भ्रात प्रेम को
कोटि-कोटि प्रणाम है
रावण का अहंकार तोड़ा
विभीषण को गले लगाया
ऐसे श्री राम को कोटि-कोटि प्रणाम है
पापियों का नाश कर
अवध को लौट रहे
ऐसे श्री राम को कोटि-कोटि प्रणाम है
मूरत है अति सुंदर
त्याग संकल्प जिस तरह जीवित रखा
वचन भी था थामना
आदेश भी था मानना
ऐसे आज्ञाकारी श्री राम को कोटि कोटि प्रणाम है
वैसे तो वह भगवान था
चुना ऐसा किरदार था
भक्तों के भाग्य खुल गए
जिसने भजा राम को
उसका जीवन तार गए
ऐसे श्री राम को कोटि-कोटि प्रणाम है
अवध को दुल्हन की तरह सजाते हैं
ढोल नगाड़े बजाते हैं
घर घर दीप जलते हैं
आओ सब मिलकर मंगल गीत गाते हैं
बोलो जय सियाराम जय सियाराम
**** **** ****
डॉ. अमरपाल सिंह, वडोदरा, गुजरात

राम नवमी
चैत्र माह की शुक्ल पक्ष
नवमी तिथि को मर्यादा पुरुषोत्तम
श्रीरामचंद्र का अवतरण दिवस मनाएं,
जो हैं विष्णु के सातवें अवतार,
जो हैं बुराई पर
धर्म की जीत-
का प्रतीक,
असत्य पर
सत्य की जीत
का प्रतीक।
राम नवमी है
श्रद्धा और आस्था का पर्व,
इसी दिन करें
चैत्र नवरात्रि का समापन,
नदियों में करें
पवित्र स्नान,
नौ दिन करें
तामसी भोजन का त्याग,
करें तुलसी के राम
का गान,
रामायण के सातों
कांडों का गान,
राम के आदर्श मूल्यों
का गान,
कण कण में
बसे श्री राम,
अंबर और चंदा तारों में
राम,
धरती के कण कण में
हैं राम।
*** *** ***