विदेश में राम साहित्य

        वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में राम नवमी के पावन पर्व पर रविवारीय कार्यक्रम के अंतर्गत 6 अप्रैल  को “ विदेश में राम साहित्य , विषय पर आभासी कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता करते हुए पद्मश्री से सम्मानित जापान के ओसाका विश्वविद्यालय के एमिरेट्स प्रोफेसर डॉ॰ तोमियो मिजोकामी ने सभी को “भये प्रकट कृपाला” की शुभ कामनाएँ देते हुए कहा कि विश्व में राम सतसाहित्य हरि- सा यत्र तत्र सर्वत्र विद्यमान है। प्रभु कृपा से साहित्य साधना के साथ उन्होने कठिनाइयों के बावजूद रामानन्द सागर के बेजोड़ ‘रामायण’ धारावाहिक का नवें दशक में जापानी में अनुवाद किया और विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को पढ़ाया जिसकी अमिट छाप पड़ी। उन्होने “जाके कपट दंभ नहि माया। ताके हृदय बसहिं रघुराया॥ को चरितार्थ किया और इसमें निहित उर्दू फारसी शब्दों की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया। मुख्य अतिथि के रूप में पधारे जापान के ही संस्कृत विद्वान एवं भगवदगीता के जापानी में अनुवादक प्रो॰ हिरोयूकी सातो द्वारा भारतीय दर्शन और साहित्य तथा ज्ञान परंपरा पर शोधपरक प्रकाश डाला गया एवं राम साहित्य को जीवन के परमोद्देश्य की ओर ले जाने वाला बताया गया। मौके पर देश-विदेश से अनेक साहित्यकार, विद्वान विदुषी, तकनीकीविद, प्राध्यापक, अनुवादक, शिक्षक, राजभाषा अधिकारी, शोधार्थी, विद्यार्थी और भाषा प्रेमी आदि जुड़े थे।

  आरंभ में दिल्ली से डॉ॰ जितेंद्र कालरा द्वारा आत्मीयता से स्वागत किया गया। तत्पश्चात वैश्विक हिन्दी परिवार की ओर से डॉ॰ जयशंकर यादव ने “सीय राममय सब जग जानी, के साथ संचालन संभाला। इस अवसर पर दक्षिण पूर्व एशिया के राम साहित्य पर ज्ञानार्जन कराते हुए थाइलैंड से प्रो॰ शिखा रस्तोगी ने कहा कि यहाँ भी अयोध्या विद्यमान है और राष्ट्राध्यक्ष राम के पूर्वजों से जुड़े हैं। इस क्षेत्र के साहित्य की विविध विधाओं में राम सहज ही परिलक्षित होते हैं। श्रीलंका से जुड़ी डॉ॰ मधुषिका दयारत्न ने पीपीटी के माध्यम से वहाँ के राम साहित्य से जुड़े अनेक दर्शनीय एवं पुरातात्विक स्थानों को सचित्र समझाया। मॉरीशस से पधारीं गिरमिटिया साहित्य और कानूनविद सुश्री प्रीना जीहा तिलक ने मॉरीशस और आस पास के क्षेत्रों में लघु भारत के दर्शन कराते हुए अटूट संबंध बताए और कहा कि राम साहित्य मानवता के समस्त मूल्यों का आधार है जिसकी नींव पर मॉरीशस भी टिका है। त्रिनिदाद और टोबैगो से जुड़ीं राम साहित्य विशेषज्ञ डॉ॰ इंद्राणी रामपरसाद ने “रामहिं केवल प्रेम पियारा। जानि लेहु जो जाननिहारा॥” को उजागर  किया। सान्निध्यप्रदाता के रूप में प्रखर चिंतक, कवि, लेखक श्री अनिल जोशी ने राम साहित्य को मानव जीवन में आने वाले सुख-दुख, हर्ष- विषाद, आशा -निराश और सफलता-असफलता आदि को अलौकिक आनंद में विलयन करने वाला बताया और कहा कि राम साहित्य दुनिया की हजारों भाषाओं और विविध विधाओं में है।    

      समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गनिर्देशन में सामूहिक प्रयास से आयोजित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख एवं सहयोगी की भूमिका का निर्वहन ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर और पूर्व राजनयिक सुनीता पाहुजा द्वारा किया गया। अंत में दिल्ली से आयुष मंत्रालय के योग विशेषज्ञ डॉ॰ दीप चन्द्र पंत के विनम्र कृतज्ञता ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। पूरे कार्यक्रम में “प्रभु की कृपा भयउ सब काजू” की झलक रही। यह कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत यूट्यूबपर उपलब्ध है।

रिपोर्ट लेखन – डॉ॰ जयशंकर यादव

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