मुंबई, 12 मई (आईएएनएस)। जाने-माने फिल्म निर्देशक शेखर कपूर अक्सर अपने सोशल मीडिया पर गहरी और विचारशील बातें साझा करते रहते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर उन्होंने अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि किस तरह उनकी व्यक्तिगत यात्रा शुरू हुई और कैसे हिमालय में एक साधु ने उन्हें ‘अपने दिल को प्रेम के लिए खोलो’ जैसी सरल लेकिन जिंदगी की गहरी सीख दी, जिससे उनके जीवन में नया मोड़ आया।

शेखर ने हिमालय में ट्रैकिंग के दौरान एक साधु से हुई अपनी मुलाकात को याद किया और बताया कि कैसे उस एक बातचीत ने उनकी जिंदगी बदल दी और उनकी नई यात्रा शुरू हुई।

शेखर कपूर ने लिखा, ”आज बुद्ध जयंती है। संस्कृत में बुद्ध का अर्थ है ‘ज्ञानी’.. जो पूरी तरह जागरूक है, सचेत है। मैं हिमालय में अकेले ट्रैकिंग कर रहा था। इस दौरान मैं एक साधु से मिला जो अपनी गुफा में ध्यान कर रहा था। बहुत ठंड थी, लेकिन उनके शरीर पर बहुत कम कपड़े थे, उनकी आंखें बंद थीं। मैंने हिम्मत करके उनसे पूछा, ‘क्या आपको ठंड नहीं लग रही?’ ये पूछते ही मुझे लगा कि ये बेवकूफी भरा सवाल है, मेरे पास और भी बहुत सारे गहरे सवाल थे। साधु ने मुस्कुराकर जवाब दिया, ‘मुझे ठंड का अहसास नहीं हो रहा। लेकिन अब जब तुमने पूछा, तो हां.. ठंड लग रही है।’ और यह कहकर उस साधु ने फिर से आंखें बंद कर लीं। उनके चेहरे पर उस तरह की हल्की मुस्कान थी, जैसे मानो किसी बच्चे ने सवाल पूछा हो।”

उन्होंने आगे लिखा, “क्या आप प्रबुद्ध हैं?” मैंने पूछा। उन्होंने मेरी ओर गहरी निगाह से देखा। उनकी आंखों का रंग बदलता हुआ प्रतीत हुआ। मुझे नहीं पता कि उनकी निगाहें कितनी देर तक टिकी रहीं। लेकिन मुझे अचानक एहसास हुआ कि सूरज डूब चुका है। और तारे निकल आए हैं या मैं यह सब सिर्फ़ कल्पना कर रहा था? ‘शेखर’… मैंने खुद से पूछा, ‘क्या तुम्हें ठंड नहीं लग रही है? मैं कब से उनकी निगाहों के नीचे बैठा था? ‘क्या तुम प्रबुद्ध हो?’ भिक्षु ने मुझसे अचानक पूछा। मैं हकलाया। ‘मैं तो यह भी नहीं जानता कि इसका क्या मतलब है?’ मैंने किसी तरह कहा। ‘जहां से आए हो वहां वापस जाओ। प्यार के लिए अपना दिल खोलो। जब तुम हर जगह प्यार पाओगे, तो तुम जान जाओगे कि प्यार तुम्हारे दिल से आया है। अपने भीतर से। इसे हर जगह बहने दो बाहर की ओर ‘यह तब होता है जब तुम्हारा प्यार वापस भीतर की ओर बहता है… तब दर्द, इच्छा, स्वार्थ हावी हो जाता है… अपने प्यार को बाहर की ओर बहने दो…’ भिक्षु ने अपनी आंखें बंद कर लीं। मुझे अचानक एहसास हुआ कि यह कितना ठंडा था। मुझे अचानक एहसास हुआ कि यह वास्तव में रात थी। मैं अपना रास्ता कैसे खोजूंगा? मेरी यात्रा शुरू हुई…”

उन्होंने कहा, ”इसके बाद साधु ने आंखें बंद कर लीं, मुझे अचानक ठंड का एहसास हुआ, यह भी कि अंधेरा हो चुका था। मैं सोचने लगा, ‘मैं अपना रास्ता कैसे खोजूंगा?’ यहां से मेरी यात्रा शुरू हुई..”

बता दें कि शेखर कपूर को हाल ही में पद्मभूषण अवार्ड से नवाजा गया है।

–आईएएनएस

पीके/केआर

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