कोरोना काल में आपदा को अवसर में बदलते हुए 3 जून 2020 को ‘वैश्विक हिन्दी परिवार’ नामक निशुल्क आभासी मंच द्वारा साप्ताहिक ऑनलाइन कार्यक्रमों की शुरुआत हुई। संस्था ने प्रत्येक रविवार भाषा, साहित्य, संस्कृति, हिंदीतर भाषाओं से पारस्परिक संबंध, शिक्षण, युवा और प्रौद्योगिकी आदि विविध विषयों पर 2025 तक अनवरत गुणवत्तायुक्त कार्यक्रम 5 वर्ष किए। इन साप्ताहिक कार्यक्रमों के पाँच वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक भव्य समारोह का आयोजन हाइब्रिड मोड में प्रवासी भवन, आई . टी . ओ, दिल्ली में किया गया।

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव श्री अतुल कोठारी ने की। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘वैश्विक हिंदी परिवार’ शब्द ही अपने आप में भारतीयता की पहचान है। ‘परिवार’ भारतीयता का प्रतीक है। यह ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की संकल्पना को आगे बढ़ाने वाला उपक्रम है। 5 वर्ष तक बिना किसी व्यक्तिगत हित के किसी कार्यक्रम को चलाना अपने आप में विशेष उपलब्धि है। इसके लिए उन्होंने पूरी टीम को बधाई एवं शुभकामनाएं दी। उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि अन्य भारतीय भाषाओं के कार्यक्रमों की संख्या बढ़ाएँ, प्रकाशन प्रारंभ करें एवं युवाओं की भागीदारी को अधिक करने का प्रयास हो।

डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार ने इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हिंदी को विश्व फलक पर ले जाने के लिए प्रयत्नों को और प्रभावी बनाया जाना चाहिए।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. सुनील कुलकर्णी, निदेशक- केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा ने कार्यक्रमों के 5 वर्ष पूरे करने पर बधाई देते हुए कहा कि इस मंच को बड़ी भूमिका के लिए तैयार होना चाहिए। हिंदी को विदेश में विदेशी भाषा के रूप में पढ़ाने हेतु कोई मानक पाठ्यक्रम तैयार करने में वैश्विक हिंदी परिवार को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने केंद्रीय हिंदी संस्थान को विशेष दर्जा मिलने और नई कार्य योजनाओं के प्रारंभ होने की जानकारी भी दी।

श्री श्याम परांडे, महासचिव- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद ने कहा कि विश्व में हिंदी को फैलाने में इस संस्था का अहम योगदान है। उन्होंने वर्ष 2026 के अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन की घोषणा करते हुए सबको इसमें शामिल होने का न्योता दिया।

कार्यक्रम की मुख्य वक्ता डॉ माधुरी रामधारी, महासचिव, विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में वैश्विक हिंदी परिवार की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि अनिल जोशी सबको स्नेह देकर अपनी छत्रछाया में जोड़े रखते हैं। परिवार को वही व्यक्ति आगे बढ़ा सकता है, जो बिना किसी आत्म-प्रचार के एवं निस्वार्थ भाव से सिर्फ काम करता रहे और यह कार्य अनिल जोशी ने कर दिखाया है। उन्होंने कहा कि वैश्विक हिंदी परिवार से प्रेरणा लेकर विश्व हिंदी सचिवालय भी अपने कार्यक्रमों में निरंतरता लाने का प्रयास कर रहा है।

श्री नारायण कुमार, मानद निदेशक, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद ने पीछे के कामों के मूल्यांकन करने के महत्व को रेखांकित किया।

श्री अनिल जोशी ने सहयोगी संस्थाओं के प्रति आभार व्यक्त किया और उन सभी विद्वानों के सहयोग की सराहना की जिनका इन कार्यक्रमों में सहयोग रहा।

उन्होंने इस यात्रा की चुनौतियों का जिक्र करते हुए संस्था के कार्यक्रमों की रूपरेखा के बारे में बताया कि यह कार्यक्रम दो विभागों में विभाजित है एक शिक्षा संबंधी और दूसरा सम्प्रेषण (Communication) संबंधी। उन्होंने वैश्विक परिवार द्वारा की जा रही गतिविधियों के विषय में भी जानकारी दी-इसमें विदेशी विद्यार्थियों के लिए हिंदी कक्षा, अच्छी हिंदी (व्याकरण) की कार्यशालाएं, पॉडकास्ट, वेबसाइट आदि शामिल हैं।

डॉ. पद्मेश गुप्त, संरक्षक, वैश्विक हिंदी परिवार ने कहा कि उन्हें आश्चर्य नहीं है कि इस कार्यक्रम ने 5 वर्ष पूरे किए हैं, आश्चर्य तब होगा जब यह दशक न पूरा करे। चूँकि अनिल जी कार्यक्रम नहीं चलाते अभियान चलाते हैं।

श्री राहुल देव, वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि इस परिवार को माता-पिता दोनों के रूप में अनिल जी मिले हैं। इसलिए इस परिवार को बराबर स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहता है। उन्होंने कहा कि भाषा का भविष्य तकनीक के बिना बचाया नहीं जा सकता। साथ ही भाषा को जिंदा रहने के लिए नयी पीढ़ी को भाषा से जोड़ना होगा। उन्होंने हिंदी को ज्ञान-विज्ञान के विषयों से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया।

डॉ. तोमियो मिज़ोकामि, भाषाविद्, जापान ने कहा, “मैं बूढ़ा आदमी हूं। बुढ़ापा तो अभिशाप होता है, लेकिन वैश्विक हिंदी परिवार के इस कार्यक्रम के कारण मेरा यह बुढ़ापा सुखद हो गया है। उन्होंने कहा कि हिंदी की ताकत भारत की आम जनता जानती है बस कुछ अंग्रेजीदा लोग इसे कम जानते हैं।”

वैश्विक हिंदी परिवार की संरक्षक श्रीमती इंदिरा वढेरा, ऑस्ट्रेलिया ने वैश्विक हिंदी परिवार की कार्य-प्रणाली और उपलब्धि को देखते हुए कहा- “मैं जो देख रही हूं, उसे देखकर आनंदित हो रही हूँ। मैं इसे साक्षी भाव से देख रही हूं और आनंद महसूस कर रही हूँ।  

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि राजदूत विनोद कुमार, अध्यक्ष- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद ने भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी और सहयोग का आश्वासन दिया।

प्रख्यात साहित्यकार दिव्या माथुर के संदेश को अंतरीपा ठाकुर, वातायन यूके ने पढ़ा। उन्होंने कहा कि दोनों संस्थाएँ निरंतर मिलकर वैश्विक स्तर पर काम कर रही हैं।

डॉ. बालेंदु दाधीच, तकनीकी विशेषज्ञ, माइक्रोसॉफ्ट ने 5 साल की इस यात्रा को हिंदी के लिहाज से चमत्कार माना। उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि हिंदी के लोग भी संगठित होकर निरंतर कार्य कर सकते हैं। इसकी उपलब्धि है कि इसने दुनिया भर में फैले हिंदी के लोगों को एक मंच पर लाया है। उन्होंने अनिल जोशी को बधाई देते हुए कहा कि यह काम अनिल जोशी ही कर सकते थे।

वैश्विक हिंदी परिवार की अंतरराष्ट्रीय समिति की संयोजक एवं प्रवासी लेखिका डॉ शैलजा सक्सेना ने इस भागीरथ प्रयत्न में महानुभावों के योगदान को रेखांकित करते हुए कविता पढ़ी, उसे विशेष रूप से सराहा गया।

सुश्री अलका सिन्हा, वरिष्ठ साहित्यकार ने कहा कि इसके 70 से अधिक देशों के हिंदी प्रेमियों का साथ आना महत्वपूर्ण कार्य है।

श्री राजेश चेतन वरिष्ठ कवि एवं समाज सेवी ने कहा यह मंच हिंदी का संयुक्त राष्ट्र संघ बनता जा रहा है।

डॉ. वरुण कुमार, पूर्व निदेशक, राजभाषा, रेल मंत्रालय ने कहा कि हिंदी की एक विराट दुनिया है- यह जानकारी इस मंच ने मुझे प्रदान की। अनिल जी ने उसकी शिराओं को जोड़ा और एक तंत्र खड़ा किया।

कार्यक्रम में इस अवसर पर विदेश में कार्यरत हिंदी अधिकारियों ने अपने शुभकामना संदेश दिए और वैश्विक स्तर पर हिंदी के विषय में अपने विचार प्रकट किए।

 विदेश से अति विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किए गए विद्वानों-विदुषियों की सूची निम्न है – सुश्री इंदिरा वढेरा (कनाडा), दिव्या माथुर, डॉ. पद्मेश गुप्त (ब्रिटेन), डॉ. सुरेन्द्र गंभीर, अनूप भार्गव (अमेरिका), डॉ. वेद प्रकाश सिंह (जापान) डॉ. यूरी बोत्विंकिन (यूक्रेन) डॉ. शैलजा सक्सेना (कनाडा), डॉ. रेखा राजवंशी (आस्ट्रेलिया), सुश्री पूजा अनिल (स्पेन), डॉ. संध्या सिंह, डॉ.आराधना झा श्रीवास्तव (सिंगापुर), डॉ. सृजन कुमार (दक्षिण कोरिया) एवं डॉ. शिखा रस्तोगी (थाईलैंड)।

इसके उपरांत वैश्विक हिन्दी परिवार के कार्यक्रमों की 5 वर्षीय अनवरत यात्रा को स्लाइड के माध्यम से विभिन्न विद्वानों के विचारों सहित, पर्दे पर दृश्य श्रव्य रूप में दिखाया गया जिसमें विभिन्न परियोजनाओं जैसे विदेशी विद्यार्थियों के लिए हिन्दी शिक्षण, कार्यशालाएं, वेबसाइट, पॉडकॉस्ट, अंतराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन, पूर्व महामहिम राष्ट्रपति का गरिमामय उद्बोधन, विभिन्न सत्रों में विद्वान विदुषियों का सम्बोधन और विविध विषयों पर विचार प्रकटन आदि सम्मिलित था।

भारत से अति विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किए गए विद्वानों-विदुषियों की सूची – श्री नारायण कुमार, डॉ. वी॰ आर॰ जगन्नाथन, डॉ. बालेंदु शर्मा दाधीच, डॉ. जयशंकर यादव, श्री नवेन्दु बाजपेयी, डॉ. राजेश कुमार, सुश्री अलका सिन्हा, डॉ. अशोक बत्रा, डॉ. बीना शर्मा, डॉ. जवाहर कर्नावट, डॉ. बरुण कुमार, श्री राजेश चेतन, डॉ. गोपाल अरोड़ा, डॉ. मोहन बहुगुणा, डॉ. अनीता वर्मा, सुश्री सुनीता पाहुजा, श्री कृष्णा कुमार एवं  डॉ. नवीन कुमार नीरज।

अंत में कार्यक्रम संयोजक डॉ. नीलम वर्मा, हृदय रोग विशेषज्ञ, नृत्यांगना, कवि ने एक कविता सुनाकर सबका अभिनंदन किया उन्होंने सबके लिए स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था भी की थी।

आरंभ में वैश्विक हिन्दी परिवार की ओर से साहित्यकार डॉ. अनीता वर्मा द्वारा संस्था की पृष्ठभूमि से परिचय कराया गया एवं सभी का आत्मीयता से स्वागत किया गया। डॉ. सुनीता पाहुजा ने संचालन की सशक्त और प्रभावी भूमिका निभाई।

इस कार्यक्रम में देश-विदेश से अनेक साहित्यकार, विद्वान-विदुषी, तकनीकीविद, प्राध्यापक, अनुवादक, शिक्षक, राजभाषा अधिकारी, शोधार्थी, विद्यार्थी और भाषा प्रेमी आदि उपस्थित थे और सैकड़ों की संख्या में विभिन्न देशों के हिंदी सेवी और विद्वान आभासी रूप से भी जुड़े थे।

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