
डॉ पुष्पा राही का जाना जैसे सहजता और स्नेह के संसार का समापन। एक ऐसा व्यक्तित्व जो बिना किसी छिपाव और दुराव के बड़ी सहजता से अपनी बात कहने का साहस रखती थी। जिनके भीतर एक ऐसी स्त्री थी जो अपने संस्कारों और परंपराओं को अपने साथ लेकर रचनात्मक संसार में निरंतर सक्रिय थी। हिंदी की वह कवयित्री जो घर परिवार की बातों को अपनी कविताओं में बुनकर ना जाने कब सब कुछ बिंदास तरीके से कह देती थीं।
हिंदी के प्रसिद्ध कवि बाल स्वरूप रही की जीवन संगिनी का जन्म 8 मार्च, 1938 को गुरदासपुर जिले पंजाब के घुमान में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी) प्रथम श्रेणी में किया।
छायावादी काव्य में अलंकार योजना’ विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की और ‘छायावाद और अंग्रेज़ी स्वच्छंदतावाद: समानांतर भाव-भूमि एवं कला-प्रक्रिया’ विषय पर जम्मू विश्वविद्यालय से डी.लिट् करने के बाद भी वह सबके लिए सहज जीवन जीने का सशक्त उदाहरण थी।
उनकी प्रकाशित रचनाओं में (काव्य-संग्रह) ‘एक युग के बाद’, ‘शब्द की लहरें’, ‘कुछ अलग’ (हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा साहित्यिक कृति सम्मान से सम्मानित), ‘स्वतः’, ‘स्वयं’, ‘लीक से हटकर’, ‘बस यूँ ही’, ‘लिखते लिखते’, ‘जो भाया सो गाया’ और ‘निरन्तर’ हैं।
उन्होंने किशोरावस्था से ही काव्य-सृजन आरम्भ कर दिया था। उनकी अनेकानेक कविताएँ ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘कादम्बिनी’, ‘सरिता’, ‘मुक्ता’, ‘नवनीत’ सहित भारत की लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा अनेक प्रतिनिधि काव्य-संग्रहों में संकलित हुईं।
उन्होंने अनेक कवि-सम्मेलनों, कवि-गोष्ठियों, परिचर्चाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के कार्यक्रमों में भागीदारी निभाई।
दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज में वरिष्ठ प्राध्यापिका के पद से सेवानिवृत्त होकर पारिवारिक दायित्वों का निर्वाह तथा साहित्य-साधना में संलग्न थीं। जब भी उनसे मिलना हुआ, बड़े नेह के साथ बातें करती हुई अपनी कविताओं का पाठ करती हुई ना जाने कब अपनी सी हो गई।
आदरणीय डॉ बाल स्वरूप राही जी के साथ दिल्ली के साहित्यिक समारोहों में अक्सर उनसे मुलाक़ात होती तो बहुत ईमानदारी से वर्तमान परिस्थितियों पर चर्चा करती।
उनकी स्मृति को नमन
अनीता वर्मा