विल यू मैरी मी

प्रो. सारिका कालरा

     भारती ने अपने व्हाट्एप्प मैसेज चेक किए तो आज फिर मीनल का कोई  मैसेज नहीं था। ‘पहले तो रोज सुबह-सुबह ही ‘मम्मा गुड मॉर्निंग’ का मैसेज कर देती थी अब देख रही हूँ एक दिन छोड़ कर करने लगी है। कभी-कभी तो तीन-चार दिन बाद ही कोई मैसेज आता है। हम्म! हो गई होगी काम में बिज़ी। किसी प्रोजेक्ट में लगी होगी।’ – भारती ने सोचा और घर के कामों में व्यस्त हो गई। मीनल को हैदराबाद शिफ्ट हुए लगभग तीन महीने होने को आए। इनटर्नशिप के बाद कंपनी ने मीनल को हैदराबाद की जॉइनिंग दी थी। जिस बच्ची को भारती ने पूरे तेईस साल अपने से दूर नहीं किया था उसे इस तरह एक झटके में ही उसकी नौकरी ने उससे दूर कर दिया था। मन मसोस कर रह गई थी भारती। पर प्रशांत के बार बार  कहने पर और मीनल के कैरियर के बारे में सोच कर चुप रह गई थी। ‘एक माँ इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती है कि अपनी ममता के लिए बेटी के भविष्य के साथ खिलवाड़ करे। आखिर शादी के बाद भी तो उसे उससे दूर ही रहना है’ – उसका मन उससे बार-बार कहता।

     दुनिया के रंग-ढंग देख रही थी भारती। एक बेटी की माँ है वह, कितनी चुनौतियाँ हैं उसके लिए। घरवालों, रिश्तेदारों का ऊपर से प्रैशर ‘शादी कर दो अब पढ़ लिख गई है। यहीं कोई नौकरी कर ले। इस उम्र में नौकरी के लिए दूसरे शहर जाने की क्या जरूरत। अकेली कैसे रहेगी। वहाँ कुछ हो गया तो… अकेली लड़की….’ भारती पर एक पल ये बातें हावी हो जाती पर वही दूसरे पल अपनी होनहार बेटी मीनल का चेहरा देख वह पिघल जाती। अपने सपनों को पूरा करना चाहती है, आत्मनिर्भर बनना चाहती है, दुनिया को अपनी नजर से देखना चाहती है इसमें बुरा ही क्या है। आजकल सभी तो नौकरी के लिए घर से दूर दूसरे शहरों में रहते हैं। फिर मीनल तो भारत में ही है। कभी भी उससे हैदराबाद जाकर मिल सकती है। क्या इतनी बातें उसके दिमाग में तब भी चलती जब मीनल की जगह पर बेटा उससे दूर नौकरी के लिए जाता – वह सोचती। शायद तब नहीं……. उफ़्फ़ वह भी क्या-क्या सोचती रहती है। ये उसका ज़माना नहीं है जब उसके पिताजी ने उसके नौकरी करने की इच्छा को मंजूरी न देकर झट से बैंक मैनेजर प्रशांत से उसकी शादी उससे बिना पूछे तय कर दी थी। अपनी कितनी ही इच्छाओं को उसने विवाह की वेदी के हवन पर स्वाहा होते देखा था। पर अपनी इकलौती बेटी के साथ वह कभी भी ऐसा नहीं होने देगी — उसने मीनल के पैदा होने के बाद ही यह प्रण लिया था।

     दिन भर वह मीनल को फोन करने के बारे में सोचती रही। पर उँगलियाँ उसका नंबर फोन पर टच करते-करते रह जाती। कहीं किसी मीटिंग में हुई तो…रात को करती हूँ। रात को तो ऑफिस नहीं होगा न उसका। ये मल्टीनेशनल कंपनियाँ भी अपने एम्प्लॉईस को कितना बिज़ी करके रखती हैं। जैसे उनकी कोई ज़िंदगी ही नहीं है। ठीक है पैसा बहुत देते हैं लेकिन मशीन क्यों बना देते हैं। उसने एक मैसेज उसको भेज दिया था ‘कैसा है मेरा बच्चा?’ उसके पीछे एक लव का इमोजी भी था। लेकिन शाम तक भी मीनल ने मैसेज नहीं देखा था। माँ का दिल दुविधा, चिंता, शंका, भय और न जाने कितने भाव थे उनसे दिन भर भरा रहा। प्रशांत इतना कूल कैसे रह लेते हैं। क्या इनको बेटी की चिंता नहीं? जवान लड़की दूसरे शहर में, सुबह से कोई बात नहीं हुई उससे फिर भी आराम से अपने कामों में लगे हैं। ‘तुम्हारा दिल माँ का दिल नहीं है न? एक बार पूछो तो। बात तो करो।’  — आखिरकार उसने प्रशांत को ये तीर मार ही दिया।

‘क्यों चिंता करती हो? व्यस्त होगी अपने काम में। मेरी तरह सरकारी नौकरी नहीं उसकी कि ऑफिस जाकर अपनी कुर्सी पर पसर जाए। कछुवे की चाल से फाइलें निपटाएँ, बार-बार घड़ी देखे कि कब पाँच बजे और घर का रास्ता पकड़े। एक बड़ी विदेशी कंपनी में काम करती है तुम्हारी बेटी। उसने नई-नई नौकरी शुरू की है। उसको काम करने दो। रात को बात कर लेंगे उससे।’ —  प्रशांत ने बहुत ही संयत होकर जवाब दिया।

प्रशांत से और उलझना बेकार था। पर उसने महसूस किया है कि उसकी मीनल जब तीन महीने पहले हैदराबाद गई थी तो दिन में कितनी ही बार उससे बात करती थी। उसको और प्रशांत को कितने ‘मिस यू’ और ‘लव’ वाले इमोजी भेजती थी। और रात को तो सोने से पहले पूरे दिन-भर का हिसाब किताब दोनों को देने के बाद ही सोती थी। तब भी तो वह नई-नई नौकरी थी उसकी। पर अब तो …. या…… नहीं … नहीं। कोई और उसकी जिंदगी में नया आया हो तो? पर मीनल तो उससे कुछ नहीं छुपाती। सभी कुछ उसके साथ बचपन से साझा करती है। स्कूल, कॉलेज से लेकर यूनिवरसिटी, उसका फ्रेंड सर्कल, उसके स्कूल ट्रिप्स तक की सारी घटनाएँ … सब तो जानती है। हैदराबाद में भी जब घर ढूंढ रही थी तब कितनी परेशान थी। अब जिस घर में रहती है उसके मकान मालिक से भी उसने बात कारवाई थी। “मम्मी घर अच्छा है। रेंट भी ठीक है और कंपनी से भी बस दस किलोमीटर ही दूर है। तुम बात कर लो इनसे, तुम्हें ठीक लगता है तो मैं कल ही यहाँ शिफ्ट कर लेती हूँ।’’ —अपनी मीनल की इस बात पर बलिहारी गई थी भारती। कि, कितनी बात मानती है उसकी ….. पर धीरे-धीरे जैसे जैसे टाइम निकल रहा है उसने बात करना काम कर दिया है।  उस रात मीनल से देर रात बात हुई। बोली – ‘आज सुबह से मीटिंग्स पर मीटिंग थी इसलिए बात नहीं कर पाई। अच्छा माँ थक गई हूँ सुबह से, अब सोती हूँ’ –कहकर  उधर से फोन बंद हो गया।

     तीन महीने और बीत गए और मीनल के फोन और मैसेज भी धीरे-धीरे कम आने लगे। ‘शायद बहुत मैचयोर हो गई है नौकरी करते करते, अब वो उसकी भोली-भाली, हर बात अपनी माँ से शेयर करने वाली मीनल नहीं रही। इस नौकरी की ज़िम्मेदारी ने कितना परिपक्व बना दिया है उसे अभी से’ – भारती सोचती। उसे जयशंकर प्रसाद के नाटक ‘चन्द्रगुप्त’ की  पंक्तियाँ   याद आती – ‘समझदारी आने पर यौवन चला जाता है।’ भारती साहित्य की विद्यार्थी रही है। साहित्य में आने वाली कई उक्तियों को वह अपने जीवन के साथ जोड़कर देखती तो लगता शायद उसी के लिए लिखा गया है। पहली बार उसे कोई उक्ति अपनी मीनल पर फिट बैठती लग रही थी। पर अभी तो उसकी मीनल पर यौवन आया है ,अभी तो उसके जीवन का बसंत शुरू हुआ है। अभी से वह अपने फूल को इस काम के बोझ तले कैसे मुरझाया हुआ कैसे देख सकती है। ठीक है……. आजकल के बच्चे अपनी जिम्मेदारियाँ बहुत गंभीरता से लेते हैं, उनका कैरियर ही उनका सब कुछ होता है। पर अपनी लाइफ भी तो कुछ है। शायद मिस कर रही होगी हम दोनों को। पर नौकरी के चलते कुछ कह नहीं कह पाती होगी। अगले हफ्ते ही मिलने जाएगे हम उससे मिलने।’ – उसने सोचा।

     शाम को छह बजे भारती ने मीनल को एयरपोर्ट से फोन किया कि वह और पापा उससे मिलने हैदराबाद पहुँच चुके हैं और दो घंटे में उसके पास होंगे।

“मम्मा… आप और पापा! इस तरह……मुझे बताते तो सही” —लगभग गुस्से में मीनल की आवाज थी।

अरे बाबा गुस्सा क्यो होती है। हम तो तुझे सरप्राइज़ देना चाहते थी। क्यों तुझे इस तरह हमारा आना अच्छा नहीं लगा ?

“वो बात नहीं। इतना कुछ मैनेज करना पड़ता है। पहले से पता होता तो मैं आज लीव ले लेती। एयरपोर्ट भी शहर से दो घंटे की दूरी पर है।” —उधर से मीनल की खीजती हुई आवाज थी।

“तू हमारी चिंता मत कर। अपने काम पर ध्यान दे। हम पहुँच जाएंगे आराम से। तू अपने टाइम से आना। तेरे घर का पता हमारे पास ही है।” —भारती ने कहा।

“ठीक है।” – और उधर से फोन कट गया।

भारती ने प्रशांत की तरफ देखा प्रशांत उसी के चेहरे को पढ़ रहे थे। जान गए थे कि जहां मीनल को इतने महीनों बाद अपने मम्मी-पापा से मिलने की खुशी होनी चाहिए थी  पर वह तो उल्टा उनके इस तरह आने से नाराजगी जता रही है। जान गए थे कि भारती के भीतर कितना कुछ टूट गया है मीनल के इस तरह बात करने से। पिछले छह महीने से दिन-रात जिससे मिलने की इच्छा को दबाये थी आज पूरी हो रही है। अपनी गुड़िया को छह महीने बाद देखने की चमक कल रात से उसकी आखों में वह देख रहे हैं। उसकी पसंद की नमकीन और आचार वह दो दिन पहले ही दिल्ली हाट से लेकर आई है। उसका फेवरिट कढ़ाई वाला दुपट्टा जो वह जल्दी में छोड़ गई थी वह भी उसने सम्हाल कर सूटकेस में रख लिया था। कल से उसका मन हिरनी की तरह कुलाचें भर रहा था। पर अब ……. प्रशांत चुप ही रहे।

“इस तरह अचानक आ गए न इसलिए परेशान हो गई। हमें उसको पहले बता देना चाहिए था।” — भारती ने लगभग रूआँसे होते हुए कहा।

एयरपोर्ट से घर तक टैक्सी के पूरे सफर में प्रशांत भारती के हाथ को अपने हाथ में थामे रहे। पूरे रास्ते कोई नहीं बोला।

दोनों उसका बेसब्री से इंतज़ार करते रहे कि बस हम दोनों का आने का सुनकर दौड़कर ऑफिस से आ जाएगी। पर ….

घर बहुत साफ सुथरा था और रसोई भी। ‘ये लड़की इतनी सफाई वाली कब से हो गई। वह तो किचेन में मैगी भी बनाती थी तो पूरा किचेन फैला देती थी। लगता है खाना बनाने वाली रख ली है आखिर कब तक रोज़-रोज़ बाहर के टिफ़िन ऑर्डर करती।

 मीनल दस बजे आई। माँ – पापा से गले लगती मीनल जैसे उनकी मीनल नहीं थी। “कितनी दुबली हो गई है तू। कुछ खाती – पीती भी है या बस काम में ही लगी रहती है?” —भारती ने मीनल के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए कहा।

‘’खाती हूँ माँ। बस काम का लोड ज्यादा है।” —मीनल ने कहा।

तीनों खाना खाकर लेटे तो भारती जी भर अपनी गुड़िया से बातें करना चाहती थी पर मीनल इस मूड में नहीं थी। बेटी को थका हुआ जानकर खुद ही बोली – “चल आज सो जा थकी हुई है। सुबह बातें करेंगे।”

“बातों का शोर तो भारती और प्रशांत के दिमाग में चल रहा था। मीनल के मकान मालिक से पता चला कि मीनल अब कभी – कभी ही रात को कमरे में आती है। ऑफिस में देर होने पर अपनी किसी कलीग के साथ ही जो पास रहती है वहीं रुक जाती है। कह रही थी अगले महीने ही दूसरी जगह अपनी फ्रेंड के साथ शिफ्ट हो जाएगी।’’ – पर यहाँ रहने में क्या बुराई है? अच्छा खासा कमरा है। मकान मालिक अच्छे हैं, भरोसे वाले हैं, और क्या चाहिए एक अकेली लड़की को दूसरे शहर में रहने के लिए। पर ये सब बातें मीनल ने कभी उन्हें क्यों नहीं बताई। मीनल फोन पर व्यस्त थी। चेहरे की थकान और फुर्ती से फोन पर मैसेज टाइप करती उँगलियों का कोई मेल नहीं था।

     तीन दिन हैदराबाद में रहकर भारती प्रशांत के साथ दिल्ली लौट आई। रुकने का कोई मतलब भी नहीं था। जिसके लिए गई थी उसके पास बिलकुल भी उन दोनों के लिए टाइम नहीं था। मीनल सुबह निकलती तो रात तक ही लौटती और आकर सो जाती। खाना भी ऑफिस से ही खाकर आती। एक हफ्ते बाद मीनल का ही फोन आया कि उसने दूसरी जगह शिफ्ट करने का सोच लिया है। वे दो हैं तो वन बेडरूम सेट किराए पर लिया है, दोनों मिलकर रेंट देंगे तो महंगा नहीं पड़ेगा। उसने जानना चाहा कि कौन है? क्या नाम है? कहाँ की है?

“अभी लेट हो रही हूँ माँ, आकर सब बताती हूँ।’’ – फोन कट गया।

“सब देखना पड़ता है न। किस्से साथ रह रही है? किस बैक्ग्राउण्ड से है?” —उसने प्रशांत से कहा।

“हम्म पर सबसे बड़ी बात है कि वह लड़की ही है न? कहीं कोई लड़का!” —प्रशांत ने चिंतित होते हुए कहा।

“क्या मतलब है तुम्हारा? पागल हुए हो क्या?” —उसने लगभग चीखते हुए कहा।

“शांत हो जाओ भारती। मेरी चिंता गलत भी हो सकती है। लेकिन आजकल लिव इन रिलेशन हमारे समाज  में बहुत तेजी से पनप रहे हैं। और युवा वर्ग इन रिश्तों को अपनाने में कोई हिचक भी नहीं दिखाते। अपने परिवार से दूर युवा वर्ग, लड़का-लड़की बिना शादी के ही साथ रहते हैं। जब तक सब ठीक है तो ठीक वरना फिर अलग।’’ – प्रशांत बोले।

“मुझे पता है ये सब। इसी जमाने की हूँ मैं भी। पर मीनल ऐसा नहीं कर सकती। मुझे उस पर पूरा विश्वास है।” —भारती कह तो गई पर उसकी त्योरियाँ चढ़ी हुई थी। मीनल को लेकर जिस शंका को वह मन के पीछे धकेल रही थी वह पूरे ज़ोर से मन के तहखाने को धकेल कर उसके सामने खड़ी थी। शायद इसीलिए तो वह बिलकुल बदली-बदली सी हो गई है। जिस माँ को पूरे दिन भर कि बात बताए  बताए मीनल को नींद नहीं आती थी वही कितनी अजनबी-सी लगने लगी है उसे। क्या कोई भी नया रिश्ता इस कदर हावी हो सकता है कि माँ-बाप ही पराए हो जाएँ। पर ये रिश्ता ……. लिव इन। उसका दिल अभी भी मानने को तैयार नहीं था कि उसकी मीनल शादी से पहले ही किसी लड़के के साथ रह रही है। नहीं …. कोई लड़की ही होगी जिसके साथ रह रही है। उसने ज़ोर देते हुए कहा।

“शाम को बात करते है। आराम से। भगवान करे ऐसा कुछ न हो। आखिर परिवार के संस्कार भी कुछ होते हैं। पर ज़माने की हवा ही ऐसी है।” —प्रशांत ने भारती को हिम्मत बंधाते हुए कहा।

लेकिन एक मैसेज भारती ने मीनल को सुबह ही कर दिया था – “कुछ जरूरी बात करनी है मीनल। फ्री रखना खुद को।”

     मीनल ने वह मैसेज पढ़ भी लिया था। लेकिन सिर्फ ओके लिख दिया। समझ गई थी माँ–पापा कुछ भाँप चुके हैं। अगस्त्य के बारे में बताना चाहती थी मम्मी-पापा को पर मौका ही नहीं मिला। अचानक से मिलने आ पहुंचे। अच्छा हुआ उस दिन लेट ईवनिंग की बोर्ड मीटिंग थी कोई और दिन होता तो दोनों कभी-कभी साथ ही घर पहुँचते थे। क्या कहूँगी दोनों से कि हम साथ रहने जा रहे हैं। या फिर झूठ बोल दूँ। क्या पता चलेगा उन्हें उतनी दूर बैठे। फिर हम एक दिन खुद ही उनसे अपनी शादी की बात कर ही लेंगे। पर हमारा इस तरह एक साथ शादी से पहले……. माँ तो शायद आज के बाद मेरी शक्ल ही देखना पसंद न करे और पापा… पापा भी कहाँ मुझे अपनाएँगे। दोनों शायद नहीं जानते कितना कॉमन है आजकल लिव इन में रहना।

     आज मीनल ऑफिस से जल्दी घर आ गई थी। अगस्त्य और मीनल आज साथ डिनर पर बाहर जाने वाले थे। पापा का फोन आया था, उन्होंने सामान्य हाल-चाल पूछकर फोन माँ को दे दिया था। आज बड़े महीनों बाद वह अपनी माँ की बातों को फोन पर आराम से सुन रही थी। शुरू में माँ के पूछने पर कि किसके साथ शिफ्ट होना है? कौन है? वह झूठा गुस्सा करके बोली थी –कि मेरी कंपनी में है काजल। उसके साथ रहूँगी। पर माँ की आगे की बातें सुन वह चुप रह गई। झूठ दुनिया से बोला जा सकता है पर उस माँ से नहीं जिसने जीवन दिया, संस्कार दिए। मीनल अपनी माँ का ही तो प्रतिरूप थी। शक्ल-सूरत चाहे उसे पापा की मिली हो पर आदतें और व्यवहार में वह दूसरी भारती ही थी। माँ बहुत संयत होकर फोन पर बोल रही थी – “मैं जानती हूँ मीनल तुम हमसे कभी झूठ नहीं बोलोगी। तुम हमारा गर्व हो। हमसे इतना दूर रहते हुए भी हमारी सीख तुम हमेशा मानती हो। हो सकता है कुछ ऐसा हो जो तुम नहीं बताना चाहती हो। तुम्हारे आस – पास बहुत कुछ ऐसा होगा जो तुम्हें लुभाता होगा – नया माहौल, नए दोस्त, आधुनिक लाइफ स्टाइल। पर जीवन इतना ही नहीं है। जीवन का आधार मूल्यों और संस्कारों पर टिका हुआ होता है। हमारी वर्तमान आदतें और जीवन मूल्य ही हमारे भविष्य की आधारशिला होते हैं जिन पर हमारी आने वाली पीढ़ी गर्व कर सके हमें ऐसा जीवन जीना चाहिए।”

     मीनल को डिनर के लिए निकलना था पर माँ के शब्द जैसे अमृत के समान थे। वह बस सुनती रही। माँ का एक-एक शब्द जैसे महीनों से उसके सूखे रेगिस्तान सरीखे दिल पर पानी की तरह बरस रहा था। इस बीच अगस्त्य के कई नोटिफ़िकेशन थे। वे दोनों अगले हफ्ते से साथ रहने जा रहे हैं। महानगरों में यह नया ट्रेंड है। उनके बाकी फ़्रेंड्स भी लिव इन में रहते हैं। दोनों एक दूसरे को बहुत पसंद करते हैं क्या पता शादी भी कर लें। पहले तो मीनल नहीं मानी पर अगस्त्य के प्रति उसकी भावनाएँ बढ़ती ही जा रही थी। यहाँ कोई उसका ध्यान रखने वाला भी तो नहीं था बस मम्मी-पापा से फोन पर ही बातें होती हैं। एक वही है जो उसकी इस नई नौकरी, नए शहर में, नए माहौल में उसका सहारा बना। फोन पर हुई माँ से लंबी बातचीत में मीनल को देर हो गई थी। अगस्त्य रैस्टौरेंट में उसका बेसब्री से इंतजार कर रहा था। दोनों ने खाना साथ खाया। वे अक्सर वीकेंड पर इसी रैस्टौरेंट में आते हैं।

“चलो अब अगले हफ्ते से इस तरह छुप-छुप कर मिलने की जरूरत नहीं। अब साथ ही रहना है।” —अगस्त्य ने मीनल की आँखों में झांक कर कहा।

“कब तक?” —मीनल ने उसकी तरफ सवाल दागते हुए कहा।

“जब तक हम एक दूसरे से ऊब ना जाएँ।” – अगस्त्य ने बेफिक्री से हँसते हुए कहा। “क्या मतलब कब तक? ओह कम ऑन मीनल। वी र मैच्योर। अर्निंग आ लॉट। हमें अपने ढंग से जीने का हक है।”

“अपने ढंग से जीने का ये मतलब तो नहीं कि हम एक ऐसे रिश्ते में रहना शुरू कर दें जिसे हमारा समाज कोई नाम नहीं दे सकता।” – इस बार मीनल के बोल बहुत तीखे थे।

“सॉरी ! हम साथ नहीं रहेंगे। मैं उस घर में ठीक हूँ। चाहो तो हम आज के बाद कभी नहीं मिलेंगे।” – मीनल ने दो टूक जवाब दिया।

अगस्त्य ने उसकी इन बातों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इन आठ महीनों में उसने मीनल को बहुत करीब से जाना है। मीनल के इंटेलिजेंस और आदतों से वह काफी प्रभावित रहा है। उन दोनों के बीच नजदीकी का ये सबसे बड़ा कारण भी था।

     मीनल और अगस्त्य उसके बाद कभी नहीं मिले। एक ही कंपनी में काम करने के कारण टकराते तो जरूर पर दोनों के बीच का प्रेम जैसे दूर बैठा दोनों को निहारता रहता था। अगस्त्य से दूरी को मीनल शुरुआत में संभाल नहीं पाई वह दिन भर बेचैन रहती और रात को माँ–पापा के साथ अपने मन को बाँट लेती। भारती दूर रहकर भी बेटी की भावनाओं को समझ रही थी। उसे खुशी थी कि उसकी मीनल दोबारा उनके पास आ गई है, दिल खोलकर उनसे बात करती है।

मीनल के दिल का एक कोना जो वह अगस्त्य के नाम कर चुकी थी वह सूना हो गया था। उसे वह अपने काम, अपने कैरियर, अपने माँ– पापा के प्यार से भर देना चाहती थी। पर अगस्त्य एक कसक बनकर हमेशा उस कोने में खड़ा रहता।

इस बात को एक महिना बीत गया। मीनल अपने केबिन में आकर बैठी ही थी कि अगस्त्य उसके सामने खड़ा था। उसके चेहरे पर उस दिन वाली बेफिक्री नहीं थी , वह बहुत संयत और अडिग था। आत्मविश्वास के साथ उसने मीनल से कहा – ‘विल यू मैरी मी?’  

मीनल अवाक थी। उसके पास कोई शब्द नहीं थे। भावनाओं के बवंडर को भीतर दबाते हुए उसने जवाब दिया —- “सोचूँगी।”

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