यमराज की डायरी का पन्ना

विजय विक्रान्त, कनाडा

यमराज के पद पर अपनी नौकरी लगने के कुछ दिन बाद ही जब मैं ने अपने काम और ज़िम्मेवारियों के बारे में पूछताछ की तो इस बात की पुष्टि हो गई कि धरती के बोझ का संतुलन रखने के लिये ही मुझे इस नौकरी पर रखा गया है और शिवजी (महेश) महाराज मेरे बड़े साहब (बॉस) हैं।

प्रशासन सम्बन्धी पद्धति के अनुसार धरती पर जब कभी भी किसी का जन्म होता है तो ब्रह्माजी के दफ़तर से एक पत्र  विष्णु जी को जाता है। यह सब इसलिये क्योंकि विष्णु जी के महकमे की ज़िम्मेवारी पैदा हुए सब प्राणियों के लालन पालन की होती है। इस पत्र में पैदा हुए प्राणी के जीने की कितनी लम्बी लीज़ है और उसे धरती से कब उठा लिया जाएगा; इसके बारे में भी साफ़ साफ़ लिखा होता है। ब्रह्मा जी का दूसरा पत्र शिवजी महाराज को जाता है। इस पत्र में हर प्राणी का आई.डी. और जीवन की लीज़ ख़तम होने की तिथी और समय लिखे होते हैं; क्योंकि उन्हें धरती से उठाना शिवजी का महकमा है। अब शिवजी महाराज ठहरे मस्त मौला। कैलाश पर्वत की मस्ती से उन्हें कहाँ फ़ुर्सत। इस उठाने बिठाने के लिये न तो उनके पास समय है और न ही कोई रुचि। यही कारण है कि ब्रह्मा जी के पत्र को, एक नज़र से, फटाफट देखने के बाद वो इसे मेरे पास भेज देते हैं। यमराज के इस पद पर लोगों को ऊपर लाने की पूरी ज़िम्मेवारी अब मेरी ही है। क्योंकि हमारा एरिया बहुत विशाल है इस लिये मेरे पास यमदूतों का एक अच्छा ख़ासा डिपार्टमैण्ट है और उस में काम करने वाले यमदूतों के अपने अपने क्षेत्र बन्धे हुए हैं। रोज़ सुबह दफ़तर खुलने पर सारे यमदूतों को उनके इलाकों के कार्ड दिए जाते हैं। इन कार्डों पर हर ऊपर लाने वाले प्राणी का नाम, पता और प्राण निकालने का समय दर्ज होता है। प्राण खेंचने के समय में कोई भूल न हो जाये इसी लिए हर कार्डों पर नंबर होते हैं और यमदूत नंबरों के हिसाब से ही प्राण ख़ेंचते हैं।

एक दिन अचानक मेरे एक सीनियर यमदूत की तबियत ख़राब हो गई। खा़ँसी और ज़ुकाम के मारे बुरा हाल था। क्योंकि उसकी हालत नीचे जाने लायक नहीं थी और मेरे पास वैसे भी स्टाफ़ की कमी थी, क्योंकि कुछ यमदूत छुट्टी पर गये हुये थे। स्टाफ़ कम होने के साथ साथ आज की लिस्ट भी काफ़ी लंबी थी। यही सोच कर मैं ने फ़ैसला किया कि आज धरती पर यमदूतों के साथ मैं स्वयं जाऊँगा। इस बहाने मेरा भी कुछ सैर सपाटा हो जायेगा और मेरे यमदूत फ़ील्ड में कैसा काम करते हैं इसकी भी रिपोर्ट मिल जाएगी। दफ़तर की गाड़ियों में बैठ हम ठीक समय पर अपने अपने इलाकों में पहुँच गये। हमारे दफ़तर का एक नियम था कि किसी के प्राण लेने से पहले हम उसका इंटरव्यू  लेते थे। मरने से पहले वो अपने सब चाहने वालों से मिल ले इस लिये हम उसे दो घण्टे का समय देते थे। उस दिन शाम के पाँच बजे तक हम कोई पन्द्रह जानें ले चुके थे। सोलह नम्बर कार्ड “चुलबुली” नाम की एक महिला का था। जब हम उसे लेने पहुँचे तो देखा कि वो एक क्लब में किसी मित्र की पार्टी में बड़े ज़ोर शोर से नाच रही थी। उसे देख कर ऐसा लगता था कि उसे दुनिया का कोई ग़म नहीं है और वो पूरी मस्ती से हर पल को जी रही है।

इन्टरव्यू के दौरान जब चुलबुली को हमारे आने का कारण पता चला तो वो बहुत गिड़गिड़ाई और कहने लगी कि अगर उसको कुछ दिन और जीने का मौका मिल जाए तो हमारी उस पर बहुत बड़ी कृपा होगी। मैं ने उसे बताया कि हम ब्रह्मा जी और शिवजी के नियमों से बँधे हुये हैं और इस मामले में नियम के उल्लँघन करने की कोई भी गुंजाईश नहीं है। मेरे हाथ में कार्डों की मोटी गठ्ठी देखकर चुलबुली समझ गई कि हम लोग अपने कार्डों के हिसाब से ही अगला प्राणी चुनते हैं। एकाएक उसकी आँखों में एक चमक सी आ गई और वो कहने लगी कि अगर हम अपने अगले प्राणी कार्ड की ढेरी के नीचे से चुनेंगे तो उसका नंबर सब से बाद में आयेगा और उसे जीने और नाचने का कुछ और समय मिल जाएगा। हालाँकि ऐसा करना हमारे डिपार्टमैन्ट के कायदे कानून के बिल्कुल ख़िलाफ़ था फिर भी न जाने क्यों मुझे चुलबुली पर तरस आ गया और मन ही मन मैं ने यह फ़ैसला कर लिया कि अगले प्राणी को हम चुलबुली के सुझाव से ही चुनेंगे। यह बात मैं ने किसी को भी नहीं बताई। मुझे यह भी पता था कि चुलबुली के बाद हमारा अगला प्राणी भी इसी क्लब में है।

चूँकि खाने का समय हो गया था इस लिये उसी क्लब में एक कोने में बैठ कर खाने का आर्डर कर दिया। इस बीच चुलबुली भी मेरे वाली मेज़ पर आ गई। कार्ड की ढ़ेरी को मेज़ पर छोड़ कर मैं हाथ धोने के लिये वाशरूम गया । समय आने पर मैं ने चुलबुली को बुलाया और कहा कि मैं ने उसकी बात मान ली है और आगे के सब प्राणी मैं नीचे से ही चुनूँगा। कहाँ तो मैं सोच रहा था कि चुलबुली यह सुन कर बहुत ख़ुश होगी लेकिन जैसे ही मैं ने सब से नीचे वाला कार्ड निकाला चुलबुली के चेहरे की हवाईयाँ उड़ चुकी थीं और वो हक्का बक्का हो कर मेरी तरफ़ देख रही थी। वो रह रहकर गिड़गिड़ा रही थी कि मैं नीचे वाले कार्ड से अपना अगला इंसान न चुनूँ। उसका कहना था कि मैं अपने बनाये हुए हिसाब से ही चलूँ।

मैं बहुत परेशान हो गया। क्या हो गया है इस औरत को जो थोड़ी देर पहले कही अपनी ही बात का ही खण्डन कर रही है। हालाँकि कार्ड ढेरी में से निकाला जा चुका था और मुझे कार्ड वाली आत्मा को अपने साथ ले जाना था फिर भी मैं ने बड़ी उत्सुक्ता से पूछा कि आख़िर माजरा क्या है।  मेरा सवाल सुनकर रोते हुये चुलबुली बोली कि “यमराज जी, जब आप वाशरूम गये थे उस समय मैं ने अपना कार्ड चुपके से गठ्ठी के सब से ऊपर से हटा कर सब से नीचे रख दिया था। मुझे क्या पता था कि आप मेरा सुझाव मान लेंगे।“

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