श्री बालेश्वर अग्रवाल स्मृति व्याख्यानमाला का भव्य आयोजन

नई दिल्ली, 22 जुलाई, 2025। इंडिया हैबिटेट सेंटर में आयोजित श्री बालेश्वर अग्रवाल स्मृति व्याख्यानमाला के उद्घाटन भाषण में नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सचिन चतुर्वेदी ने कहा कि आज के वैश्विक संदर्भ में प्रवासी भारतीय समुदाय केवल एक सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक नहीं है, बल्कि वह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और भारत की विदेश नीति का एक अहम स्तंभ बन चुका है। उन्होंने कहा कि भारतीय डायसपोरा अब केवल स्मृति का विषय नहीं, बल्कि वह भारत की वैश्विक उपस्थिति को दिशा देने वाला एक सशक्त और सक्रिय भागीदार है।

डॉ. चतुवेर्दी ने इस बात पर बल दिया कि प्रवासी भारतीयों की भूमिका बहुआयामी है, वे न केवल सांस्कृतिक प्रतिनिधि हैं, बल्कि आर्थिक, बौद्धिक और रणनीतिक दृष्टि से भी भारत के वैश्विक हितों के संवाहक बन चुके हैं। उन्होंने कहा कि यह समुदाय नीतिगत संवाद, वैश्विक सहयोग और भारत की वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस अवसर पर देश-विदेश से आए अनेक प्रमुख वक्ताओं, लेखकों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकताओं ने गिरमिटिया समाज, भारतीय डायसपोरा और भारत के वैश्विक संबंधों के विविध पहलुओं पर अपने विचार साझा किए।

कार्यक्रम की शुरूआत अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महासचिव श्याम परांडे ने की। उन्होंने कहा कि श्री बालेश्वर अग्रवाल एक ऐसे युगद्रष्टा थे जिन्होंने सीमाओं से परे भारतीयता की चेतना को जीवित रखा। वे प्रवासी भारतीयों के लिए प्रेरणा-स्रोत रहे और उन्होंने उन्हें आत्मगौरव से जोड़ा।

दक्षिण अफ्रीका के उच्चायुक्त एच.ई. प्रो. अनिल सुक्लाल ने अपने संबोधन में कहा कि गिरमिटिया समाज केवल भारत की ऐतिहासिक विरासत नहीं, बल्कि वर्तमान भारतीय समाज का अभिन्न हिस्सा है। उन्होंने महात्मा गांधी के प्रवासी अनुभवों को भारत की आजादी और विचारधारा की नींव बताया। पद्मश्री रामबहादुर राय ने श्री अग्रवाल के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को समाज-निर्माण का औजार बनाया और भारत तथा प्रवासी भारतीयों के बीच संवाद का सेतु रचा।

गाज़ियाबाद के सांसद अतुल गर्ग ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि यह संस्था प्रवासी भारतीयों की ऊर्जा को भारत की प्रगति में जोड़ने का सराहनीय कार्य कर रही है। श्री अनिल जोशी ने कहा कि प्रवासी समाज भारत की सांस्कृतिक आत्मा के वाहक हैं, और हमें उनके अनुभवों का लाभ नीतिगत और सामाजिक विकास में उठाना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार राकेश पांडे ने प्रवासी भारतीयों के बौद्धिक और नैतिक योगदान की सराहना करते हुए कहा कि मीडिया को इनके योगदान को उचित स्थान देना चाहिए। डॉ. जवाहर कर्नावट ने कहा कि भारतीय डायसपोरा बहुलता, सहिष्णुता और सांस्कृतिक निरंतरता का प्रतीक है और वह एक जीवंत वैश्विक सांस्कृतिक आंदोलन बन चुका है।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के अध्यक्ष विनोद कुमार ने परिषद की गतिविधियों का परिचय देते हुए कहा कि संस्था का उद्देश्य वैश्विक भारतीय समुदाय से सतत संवाद बनाए रखना है। प्रसार भारती के अध्यक्ष नवनीत सहगल ने मीडिया की भूमिका पर बात करते हुए कहा कि आज मीडिया की जिम्मेदारी केवल सूचनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि वह संस्कृतियों और पीढ़ियों को जोड़ने का एक पुल है। यह आयोजन न केवल विचारों का आदान-प्रदान रहा, बल्कि यह भारत और प्रवासी समाज के बीच गहरे वैचारिक और भावनात्मक संबंधों को भी उजागर करता है। श्री बालेश्वर अग्रवाल स्मृति व्याख्यानमाला एक बार फिर यह सिद्ध करने में सफल रही कि प्रवासी भारतीय केवल भारत का अतीत नहीं, उसका वर्तमान और भविष्य भी हैं।

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