हिंद महासागर के बीच स्थित छोटा-सा द्वीप राष्ट्र मॉरीशस अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के लिए विश्वभर में जाना जाता है। यहाँ बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग, जिनके पूर्वज उत्तर प्रदेश और बिहार से यहाँ आए थे,  लगभग दो शताब्दियों से बसे हैं। वे अपने पूर्वजों की परंपराओं और त्यौहारों को आज भी पूरे उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाते हैं। इन्हीं त्यौहारों में से एक है श्रीकृष्ण जन्मोत्सव – भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण दिवस का पर्व। यह इस द्वीप पर भारतीयता का जीवंत उत्सव है, जो आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़े रखता है। यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व भी रखता है।

मेरे लिए अत्यंत सौभाग्य की बात रही कि इस समय मैं मॉरीशस में हूँ और जन्माष्टमी की रात यहाँ बिताना मेरे लिए अविस्मरणीय अनुभव रहा। मॉरीशस भले ही भौगोलिक रूप से भारत से दूर है, परंतु यहाँ जन्माष्टमी का उल्लास देखकर लगता है कि जैसे हम अपने ही देश में हैं। हर साल की तरह इस वर्ष भी इस्कॉन सहित अन्य मंदिरों में भी भजन-कीर्तन, गीता-पाठ और झाँकियों की सजावट से रातभर उल्लास का माहौल रहा। वहाँ का दृश्य मन मोह लेने वाला था। रंग-बिरंगी झालरों से सजा प्रांगण, फूलों की खुशबू और लगातार बजते मृदंग-झांझ पूरे वातावरण को कृष्णमय कर रहे थे। बच्चों द्वारा कृष्ण-लीला के मंचन से वातावरण आनंदमय बना हुआ था। यह देखकर अत्यंत प्रसन्नता हुई कि यहाँ की नई पीढ़ी भी अपनी परंपराओं को कितनी आत्मीयता से संजो रही है। अनेक श्रद्धालुओं ने उपवास किया व रात्रि जागरण कर भजन कीर्तन करते हुए मध्य रात्रि में अपना उपवास खोला।

सामुदायिक स्तर पर भी उत्सव की गूंज सुनाई देती रही। रेडियो और टेलीविज़न चैनल पर विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। हिंदी और भोजपुरी मंडलियों ने कृष्ण पर रचित कविता-पाठ व नृत्य मंचन किया।

15 और 16 अगस्त को भी कई मित्र परिवारों के घर से निमंत्रण मिला और मुझे देश से मीलों दूर आकर भी भजन-कीर्तन में शामिल होकर आनंदित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह देखकर मन अति प्रफुल्लित हुआ कि यहां भी विधिवत् कान्हा को सजा कर पालने में झुलाया गया, छप्पन व्यंजन बनाकर मध्यरात्रि को कान्हा को भोग लगाया गया, सबको प्रसाद बाँटा गया। एक पल को भी अहसास नहीं हुआ कि भारत में नहीं हूँ। वह क्षण सचमुच आत्मा को छू लेने वाला था। श्रद्धा व भावातिरेक से भीगे मेरे नयनों को देख मेरे बगल में बैठे एक बुज़ुर्ग मॉरीशसवासी ने भावुक होकर कहा – “हमारे पूर्वज भारत से आए थे, पर कृष्ण हमारे दिलों में हमेशा साथ रहे।” उनकी बात सुनकर मुझे एहसास हुआ कि सांस्कृतिक रिश्ते ही वह डोर है जो हमें सीमाओं से परे जोड़ती है।

इंदिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, महात्मा गाँधी संस्थान और रामायण सेंटर इत्यादि में भी इस अवसर पर विशेष आयोजन किए गए जिसमें स्थानीय लोग और प्रवासी समुदाय शामिल हुए।

मोतायब्लांश सनातन धर्म सभा के उमानाथ मंदिर के आचार्य पवन कुमार प्रवीण जी ने बताया कि प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी उनके मंदिर के प्रांगण में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। सभी भक्तजन कृष्ण जन्मोत्सव मनाने के लिए एकत्रित हुए। तदुपरान्त बाल-गोपाल का अभिषेक, पूजन, भजन-संकीर्तन  किया गया। इस वर्ष बच्चों ने न सिर्फ वसुदेव का अभिनय किया बल्कि कृष्ण-सुदामा चरित्र को भी अपने नाटक के माध्यम से सबके समक्ष प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया। भक्तजन बड़ी ही बेसब्री से कृष्ण भगवान के प्राकट्य का इंतजार कर रहे थे, जैसे ही मध्य रात्रि में भगवान के प्राकट्य का समय हुआ, मंदिर शंख-घंटा ध्वनि और भगवान के जयकार के उद्घोष से गूंज उठा। सर्वत्र लोग बधाई देने  लगे  “नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की”, उसी मध्य अपने शीश पर बाल गोपाल को टोकरी में रखकर वसुदेव का आगमन  दर्शाया गया, तत्पश्चात भगवान को पालने में झुलाकर भगवान का षोडशोपचार पूजन, ललना बधाई गाई गई –

“गोकुल में बाजे ला बधाई श्रीकृष्ण के जन्म भईल हो अहो ललना पलना में झूले नंदलाला यशोदा झूलावेली हो।” तदुपरांत आरती और सनातन धर्म के जयघोष के साथ जन्मोत्सव हर्षोल्लास से संपन्न हुआ।

यह पर्व साबित करता है कि भौगोलिक दूरी चाहे जितनी भी हो, सांस्कृतिक रिश्ते दिलों को जोड़कर रखते हैं। भारत और मॉरीशस का यह साझा सांस्कृतिक रिश्ता जन्माष्टमी के अवसर पर और भी गहरा हो उठा।

यह पर्व भक्ति, एकता और भारतीय मूल्यों को संजोए रखने का सशक्त प्रतीक है। यह पर्व लोगों को आध्यात्मिकता, भक्ति और आपसी एकता का संदेश देता है। जिस तरह समुद्र से घिरे इस द्वीप पर कृष्ण नाम की गूंज सुनाई देती है, वैसे ही यह पर्व हमें याद दिलाता है कि श्रीकृष्ण की लीलाएँ और उनकी शिक्षाएँ—“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत…”—आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी द्वापर युग में थीं। यह पर्व याद दिलाता है कि श्रीकृष्ण का यह संदेश—धर्म की रक्षा करना, अन्याय के विरुद्ध खड़े होना और प्रेम व भक्ति का मार्ग अपनाना—आज भी प्रासंगिक है। श्रीकृष्ण का जीवन केवल भक्ति का नहीं, बल्कि नीति, साहस और धर्म की स्थापना का संदेश देता है।

जब कभी कहीं भी गीता का यह श्लोक उच्चारित किया जाता है – “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” तो ऐसा लगता है मानो यह संदेश हम सबके जीवन को दिशा देने के लिए ही गूंज रहा है।

मॉरीशस में जन्माष्टमी का हिस्सा बनकर मुझे यह महसूस हुआ कि श्रीकृष्ण की बांसुरी की तान, चाहे मथुरा में बजे या मॉरीशस में—भक्ति और आनंद का वही रस बिखेरती है।

सुनीता पाहूजा

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