
#वयम्, #तारांजलि और #हिंदी_विभाग_राजधानी_कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्त्वावधान में युवा कवयित्री #शैलजा_सिंह के डायमंड बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित गीत संग्रह #मैं_गीतों_की_जादूगरनी का लोकार्पण एवं काव्य-गोष्ठी का भव्य आयोजन शनिवार, 6 सितंबर, 2025 को राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के खचाखच भरे मुख्य सभागार में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ गीतकार प्रमिला भारती ने की। राजधानी कॉलेज के प्राचार्य प्रो. दर्शन पाण्डेय का विशेष सान्निध्य रहा। वरिष्ठ साहित्यकार, केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व उपाध्यक्ष अनिल जोशी मुख्य वक्ता थे। वरिष्ठ कवि-दोहाकार और वयम् के अध्यक्ष नरेश शांडिल्य और वरिष्ठ साहित्यकार और तारांजलि की अध्यक्ष डॉ तारासिंह ‘अंशुल’ वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। वरिष्ठ गीतकार-ग़ज़लकार और वयम् के उपाध्यक्ष शशिकांत ने पुस्तक पर अपना आलेख-पाठ प्रस्तुत किया। राजधानी कॉलेज के हिंदी विभाग के प्रभारी प्रो. जसवीर त्यागी कार्यक्रम के समन्वयक रहे। पूरे कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध कवि-ग़ज़लकार और वयम् के महासचिव अनिल मीत ने किया।

दीप प्रज्ज्वलन से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। मंत्रोच्चार हिमांशु दुबे ने किया। दिल्ली विश्वविद्यालय का कुल गीत प्रस्तुत किया गया। तत्पश्चात सभी मंचस्थ अतिथियों का शॉल ओढ़ा कर स्वागत-सत्कार किया गया। वयम् की ओर से शैलजा सिंह और उनके पतिदेव राजबीर सिंह को शॉल व स्मृति चिह्न प्रदान कर सम्मानित किया गया।
कवयित्री शैलजा सिंह ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में कहा कि लेखन की शुरुआत मुक्त छंद की कविताओं से हुई और बाद में गीतों की ओर स्वतः रुझान बढ़ा। प्रेम, विरह, देश भक्ति, सामाजिक समस्याओं आदि सभी विषयों पर गीत लिखे गए हैं। उन्होंने रचना प्रक्रिया को जटिल बताते हुए कहा – “पीर प्रसव की मुझसे पूछो, हाँ मैंने गीतों को जना है”। शैलजा सिंह ने सस्वर अपने कुछ गीत भी प्रस्तुत किए।
मुख्य वक्ता अनिल जोशी ने शैलजा सिंह के गीतों की सराहना करते हुए कहा कि प्रेम और विरह के भावप्रवण गीतों के साथ-साथ शैलजा ने अपने गीतों में अनेक विचारोत्तेजक विषयों पर भी सार्थकता से लिखा है, जिन्हें अलग से रेखांकित किया जाना चाहिए। प्रो. दर्शन पाण्डेय ने शैलजा के गीतों की सहजता और पठनीयता के वैशिष्ट्य पर विस्तार से प्रकाश डाला।उन्होंने मौजूदा समय में साहित्य से दूर होते समाज पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि कॉलेज में लेखक से संवाद कार्यक्रम लगातार आयोजित होंगे जिससे विद्यार्थी साहित्य से प्रत्यक्षतः जुड़ सकें।

नरेश शांडिल्य ने प्रेम और विरह पर शैलजा सिंह के दो विशेष गीतों के माध्यम से उनकी गीतोचित काव्य शैली और सहज अभिव्यक्ति की ताक़त को सामने रखा और उन्हें ‘प्रेम और विरह की कवयित्री’ बताया। डॉ. तारा सिंह ‘अंशुल’ ने बताया कि उनकी सुपुत्री शैलजा सिंह की शुरू से ही लेखन में रुचि रही और आज उनकी पहली पुस्तक के लोकार्पण पर वे भीतर तक भावविभोर हैं। शशिकांत ने पुस्तक पर अपना विस्तृत आलेख पाठ प्रस्तुत किया और शैलजा के गीतों को हर दृष्टि से आँकते हुए गीतों की प्रशंसा की।
कार्यक्रम की अध्यक्ष और महादेवी वर्मा की शिष्या रही प्रमिला भारती ने कहा कि काव्य शास्त्र की दृष्टि से परखने पर शैलजा के अधिकांश गीत एकदम खरे उतरते हैं। उन्होंने शैलजा के गीतों के भावपक्ष और कलापक्ष दोनों की खुलकर सराहना की। प्रमिला भारती ने गीतों के भाव, मात्रा और प्रभाव पर बात करते हुए कहा कि गीतों में प्रवाह एक अनिवार्य शर्त है और शैलजा के गीत अपने आप में विस्मयकारी हैं।
लोकार्पण के पश्चात दूसरे सत्र में काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया, जिसमें 30 से अधिक कवि-कवयित्रियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं, जिनमें प्रो. जसवीर त्यागी, कुलदीप सलिल, मनोज अबोध, नीरज चौहान, मनोज कामदेव, डॉ. वी. के.शेखर, रूबी मोहन्ती, कल्याणी शर्मा, सोनिया सोनम, डॉ नीलम वर्मा, दिनेश सोनी मंजर, भरत जैन, शकुंतला मित्तल, वीणा अग्रवाल, भावना शुक्ल, शंभू भद्र, अनूप अनुपम, नरेश मालिक, रितु चौरसिया, जनार्दन यादव, पुनीता सिंह, सुप्रिया सिंह वीणा, डॉ परविंदर सिंह प्रमुख रहे। इस भव्य लोकार्पण कार्यक्रम में सभागार अंत तक भरा रहा। अतिथियों, काव्य-पाठ करने वाले कवि-कवयित्रियों के अतिरिक्त अनेक गणमान्य व्यक्तियों, हिंदी प्रेमियों, आचार्यों और विद्यार्थियों की गरिमामयी उपस्थित ने कार्यक्रम को शानदार बना दिया।
अंत में, राजधानी कॉलेज के हिंदी विभाग के प्रभारी और कार्यक्रम समन्वयक प्रो. जसवीर त्यागी ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।