
दिनांक 20.09.2025 को नई दिल्ली के आइटीओ स्थित हिन्दी भवन के सभागार में दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा “साहित्यकार सम्मान समारोह – 2025” का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता के कार्यभार का वहन दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन संस्था की अध्यक्षा श्रीमती इंदिरा मोहन ने किया। मुख्य अतिथि का दायित्व इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी के सशक्त हाथों में रहा। विशिष्ट अतिथियों की श्रेणी में सुविख्यात गीतकार एवं गज़लकार श्री बाल स्वरूप राही तथा आकाशवाणी से संबंध रहे अधिकारी श्री सोम दत्त शर्मा मंचासीन रहे। दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन के महामंत्री एवं शिक्षाविद् प्रो॰ हरीश अरोड़ा ने सानिध्य प्रदान किया। संचालन की जिम्मेदारियों का निर्वहन शिक्षाविद् एवं साहित्यकार प्रो॰ रचना बिमल के सुपुर्द रहा।

कार्यक्रम का आरंभ जहां एक ओर, मंचासीन गणमान्य विभूतियों के कर-कमलों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करने के पश्चात् मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुआ। वहीं दूसरी ओर, डॉ राजीव कुमार पाण्डेय ने मां सरस्वती की वंदना में सुरम्य प्रस्तुति के साथ अंजुली अर्पित की।
तत्पश्चात्, कुशल संचालिका प्रो॰ रचना बिमल ने क्रमबद्ध तरीके से मंचासीन गणमान्य विभूतियों का संक्षिप्त परिचय देते हुए उन्हें सम्मानित करने के लिए आमंत्रित किया। एक ओर, डॉ सच्चिदानंद जोशी को अंगवस्त्र ओढ़ाकर एवं स्मृति-चिन्ह प्रदान करके तथा अन्य मंचासीन विभूतियों को अंगवस्त्र ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम को गति प्रदान करते हुए संचालिका महोदया ने प्रो॰ हरीश अरोड़ा को अपने आरंभिक उदबोधन के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने इस माध्यम से संस्था और उसके कार्य-कलापों संबंध की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए अवगत कराया कि वर्ष 1944 में श्री मदन मोहन मालवीय और श्री पुरूषोत्तम दास टंडन के अथक प्रयासों द्वारा इस हिन्दी भवन की स्थापना हुई थी, जिसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी श्री गोपाल प्रसाद व्यास जी ने अपने जीवन-काल में सहर्ष स्वीकार करते हुए तन्मयता से इसे निभाया। वर्तमान में भी उनका परिवार इस कार्य में निरंतर सजगता सहित कर्मशील है।
श्री सोम दत्त शर्मा ने अपने अतिसंक्षिप्त वक्तव्य में वर्तमान समय की रचनाधर्मिता की रचनात्मकता में व्याप्त होती अराजकता पर चिंता जताई और उसके प्रचार-प्रसार को रोकना के प्रति समर्पण भाव से गतिशील होना होगा।
श्री बाल स्वरूप राही ने अतीत में झांकते हुए दृष्टिगोचर प्रस्तुत करते हुए अवगत कराया कि आज हिन्दी भवन में गत वर्षों के साहित्यकारों एवं कवियों-कवयित्रियों के विभूषित चित्रों की श्रृंखला को उनके ही कार्यकाल में अमली जामा पहनाया गया था। साथ ही, उन्होंने उस समय की पत्रकारिता और हिन्दी साहित्य जगत की प्रतिष्ठित विभूतियों के कुछ अनसुने-अनकहे-अनछूए पहलुओं की किस्सागोई को सभागार के समक्ष प्रस्तुत किया। अपने चिर-परिचित अंदाज में मुक्तक, गीत और गज़ल के पाठ से अपनी वाणी को विराम दिया।

डॉ सच्चिदानंद जोशी ने अपने विस्तृत उदबोधन में वर्तमान में हिन्दी साहित्य की रचनाधर्मिता में आने वाले संकटों से उभरने हेतु किए जा रहे कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने वर्तमान समय में एआई और जेनजीं संदर्भित उपजी चुनौतियों से निपटने हेतु जानकारियों से भी श्रोताओं को लाभान्वित किया। सत्य तो यह है कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस किसी भी तरह से आर्टिस्टिक इंटेलिजेंस की बराबरी कभी नहीं कर सकता। हमें आने वाले समय में बहुत ही सतर्कता के साथ वर्तमान तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा। नहीं तो बिना बुलाई आफत या आपदा में फंस सकते हैं। रचनाधर्मिता को बनाए रखना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यह प्रकृति का नियम है। स्मरण शक्ति का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जितनी चीज़ें हमें याद रहती थी, आज के समय में वह असंभव-सी बन पड़ी हैं। यह इसलिए कि हमने अपनी स्मरण शक्ति का इस्तेमाल करना बंद कर दिया है और जिस वस्तु या विषय का अपने जीवन में उपयोग करना बंद कर देंगे, वह निरंतर क्षीण होती चली जाएगी। इसी तरह से यदि हम अपनी रचनाधर्मिता का सही उपयोग नहीं करेंगे, तो वह भी धीरे-धीरे क्षीण होने लगेगी। उन्होंने इस पर भी चिंता जताई कि आज हम हिन्दी पखवाड़ा मना रहे हैं, लेकिन शर्म की बात है कि हमारे स्वयं के नौनिहाल हिन्दी में सही तरीके से एक वाक्य भी नहीं बोल पाते हैं। चिंता इसलिए भी है, क्योंकि विश्व में जेनजीं की आबादी सबसे अधिक 70% भारत में है। इसी वजह से रचनाकारों का दायित्व ओर अधिक बढ़ जाता है कि यदि हमें उनमें अपने भाषा, संस्कारों, संस्कृति, मूल्य-बोध और आधारभूत बातों के प्रति जागृति और चेतना आए, उसके लिए हमें गहन चिंतन के साथ सकारात्मकता बनाए रखने के लिए ओर अधिक अतिरिक्त प्रयास भी करना पड़े, तो उसके लिए हम कटिबद्ध रहें। यह आबादी हमारे देश और विश्व की धरोहर है, इसलिए हमें उन्हें सही दिशा-निर्देश प्रदान करने के लिए सदैव मार्गदर्शक बने रहना होगा। तभी भारत के साथ-साथ विश्व का भविष्य भी उज्जवल बन सकेगा। उन्होंने विशेष अनुरोध पर अपनी बहुचर्चित रचनाओं ‘आओ हम सब शिव बन जाएं’ तथा ‘क्लाउड और बादल’ के काव्यपाठ से सभागार में उपस्थित जनसमुदाय को भाव-विभोर करते हुए मंच पर पुनः अपना स्थान ग्रहण किया।
द्वितीय चरण में साहित्यकार सम्मान समारोह – 2025-2026 का क्रियान्वयन किया गया। मंचासीन विभूतियों एवं पुरस्कार सौजन्य-कर्ताओं के कर-कमलों द्वारा “सम्मेलन साहित्य रत्न पुरस्कार” से डॉ शकुन्तला कालरा एवं श्री नरेश शांडिल्य को, “सम्मेलन साहित्य विभूषण पुरस्कार” से सुश्री सुमन वाजपेयी, श्री शशिकांत, श्री संजय कुमार स्वामी, श्री ताराचंद ‘नादान’ को एवं श्री सदानंद पाण्डेय को, “सम्मेलन साहित्य भूषण पुरस्कार” से डॉ राजीव कुमार पाण्डेय एवं डॉ विनोद बब्बर को, “सम्मेलन साहित्य श्री पुरस्कार” सुश्री रेणु अग्रवाल, डॉ अंकित शर्मा एवं श्री अरविंद कुमार सिंह को अंगवस्त्र ओढ़ाकर, प्रशस्ति-पत्र, स्मृति-चिन्ह एवं अनुदान राशि प्रदान करके सम्मानित किया गया। साथ ही, मंचासीन विभूतियों के कर-कमलों द्वारा डॉ वीणा गौतम एवं डॉ नीलम सिंह के संपादन में निर्मित “साहित्यकार सम्मान समारोह – 2025-26” स्मारिका का लोकार्पण किया गया, जिसमें सारगर्भित तरीके से प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों की स्मृति में प्रायोजित इन सम्मानों के उनके जीवन परिचय के साथ उनसे संबंधित सम्मानित हस्ताक्षरों का परिचय भी चित्र सहित प्रकाशित किया गया है।

तदोपरांत, संचालिका प्रो॰ रचना बिमल ने कुछ सम्मानित हस्ताक्षरों को व्यक्तिगत परिचय के साथ अपने-अपने संक्षिप्त उदबोधनों एवं कुछ चुनिंदा रचनाओं के काव्यपाठ हेतु आमंत्रित किया। डॉ शकुन्तला कालरा, श्री नरेश शांडिल्य, श्री शशिकांत तथा श्री संजय कुमार स्वामी ने सम्मानित किए जाने हेतु धन्यवाद और आभार ज्ञापित करते हुए अपनी श्रेष्ठतम रचनाओं के काव्यपाठ से सभागार में उपस्थित जनसमुदाय को भाव-विभोर कर मंत्र-मुग्ध कर दिया।
श्रीमती इंदिरा मोहन ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि आज का यह आयोजन एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि, रचनात्मकता का उत्सव है। गत 40 वर्षों से इस संस्था से जुड़ी हुई हूं। इस दौरान अपने कार्य-कलापों से निरंतर पायदान-दर-पायदान नवीनतम प्रतिमान स्थापित करने में सफलता प्राप्त की है। धीरे-धीरे आज यह संस्था 12 साहित्यकारों को सम्मानित करने वाली संस्था बन गई है और आशा करती हूं कि भविष्य में यह संस्था 24 साहित्यकारों को सम्मानित करने का सौभाग्य प्राप्त करेगी।
श्रोता-दीर्घा में देश-विदेश के विभिन्न शहरों और क्षेत्रों से पधारी गणमान्य विभूतियों एवं साहित्य प्रेमियों के बीच श्री अतुल विष्णु प्रभाकर, नवीन गुप्ता, डॉ शशि अग्रवाल, डॉ रंजना अग्रवाल, आचार्य अनमोल, राकेश शर्मा, पवन विज, सुमन शर्मा, सुषमा शर्मा, कोमल शर्मा, नेहा शर्मा, डॉ रवि शर्मा ‘मधुप’, डॉ सुधा शर्मा ‘पुष्प’, डॉ नीलम सिंह, डॉ वीणा गौतम, वीणा भाटिया, उषा अग्रवाल, डॉ डी के गर्ग, रश्मि जैन, अमित मित्तल, निधि वर्मा, प्रो॰ रमाकांत द्विवेदी, पुनीत श्योराण, मोहम्मद ईशाक खान, तन्मय स्वामी, विनीता स्वामी, चंद्रभान शर्मा, साक्षी, अविरल अभिलाष, रीना, अंशुल अग्रवाल, सत्यपाल चावला, काव्य कुमार, उमा आर्य, सुशील वर्मा, उर्मिला शर्मा, प्रभा सरदाना, अरूणा मिश्रा, भावना हुडडा, अन्शु मित्तल, तुषार आर्य, डॉ स्निग्धा अग्रवाल, प्रकाश चंद जैन, भरत जैन, अमित शर्मा, रमा कांत शर्मा, बृजमोहन लाल, प्रेम सिंह, डॉ रितेश रंजन पाठक, रोहित कुमार, डी वागीश राज शुक्ल, प्राची वोरा, देवेन्द्र कुमार, शिवांग शर्मा, प्रदीप कुमार, राघव शर्मा, नमन सिंह, शैलजा सिंह, रवीन्द्र भारद्वाज, गुंजन शर्मा, काव्या शर्मा, पूनम अग्रवाल, कुमार सुबोध प्रमुख रहे।
डॉ रवि शर्मा ‘मधुप’ द्वारा सभागार में उपस्थित देश-विदेश के विभिन्न शहरों और क्षेत्रों से पधारे विद्वतजनों एवं आगंतुकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए धन्यवाद और आभार ज्ञापित करने के साथ यह भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ।
— कुमार सुबोध, ग्रेटर नोएडा वेस्ट।