
आयोजक: मोरिशस आर्य रवि वेद प्रचारिणी सभा (MARVPS)
दिनांक: शनिवार, १८ अक्तूबर २०२५
समय: सायं ४ बजे से ६.३० बजे तक
स्थान: ५४-५६ महात्मा गाँधी स्ट्रीट, पोर्ट लुइस
मोरिशस आर्य रवि वेद प्रचारिणी सभा द्वारा ऋषि निर्वाण दिवस और दीपावली महोत्सव बड़े श्रद्धा, ज्ञान और उत्साह के साथ मनाया गया। यह कार्यक्रम वैदिक परंपरा, कृतज्ञता और एकता की भावना से परिपूर्ण था। सभी आर्यजन एकत्र हुए ताकि वेदों की शिक्षाओं और ऋषियों के अमर संदेश को स्मरण कर सकें।
कार्यक्रम का आरंभ शारदीय नवसस्येष्टि यज्ञ से हुआ, जिसे सभा के आचार्यों और प्रधान आचार्य ने सम्पन्न किया। यह यज्ञ भारत की प्राचीन वैदिक परंपरा का प्रतीक है। इस काल में जब धान और चावल की नई फसल तैयार होती है, तो आर्य समाज के अनुयायी ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करने के लिए नया अन्न अग्नि में आहुति स्वरूप अर्पित करते हैं। इस यज्ञ को शारदीय नवसस्येष्टि महायज्ञ कहा जाता है क्योंकि यह शरद ऋतु की अमावस्या को सम्पन्न होता है। नए अन्न की प्राप्ति की खुशी में दीप जलाने की परंपरा ही आगे चलकर दीपोत्सव — दीपावली — बनी।
इसके पश्चात स्वामी दयानंद वैदिक मंदिर, त्रिओले विद्यार्थियों द्वारा यज्ञ प्रार्थना और विश्व कल्याण प्रार्थना प्रस्तुत की गई। इसके बाद सभा के महासचिव श्री सूरज प्रकाश दूखरन ने स्वागत भाषण दिया। श्री चॉयटू सूर्यप्रकाश द्वारा वीणा वादन ने वातावरण को मधुर बना दिया, तत्पश्चात महिलाओं और पंडिताओं द्वारा दीप प्रज्वलन किया गया, जो अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।



धार्मिक कार्य विभाग की अध्यक्षा — श्रीमती हर्षना चेदी का संदेश
इसके बाद धार्मिक कार्य विभाग की अध्यक्षा, श्रीमती हर्षना चेदी ने अत्यंत प्रेरणादायक और वैदिक दृष्टिकोण से युक्त भाषण दिया।
उन्होंने बताया कि वैदिक परंपरा में दीपावली केवल दीप जलाने का पर्व नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। इसी समय भारत में धान और चावल की नई फसल तैयार होती है। जब नया अन्न घर में आता है, तो लोग प्रसन्न होकर नवसस्येष्टि यज्ञ करते हैं और उस पहले अन्न को अग्नि में अर्पित करते हैं। इस यज्ञ का उद्देश्य ईश्वर को धन्यवाद देना है कि उसने हमें समृद्धि और अन्न दिया। इसी आनंद और कृतज्ञता की भावना से दीपोत्सव का आरंभ हुआ — जहां हम बाहर और भीतर दोनों रूपों में प्रकाश फैलाते हैं।
उन्होंने कहा कि आज महर्षि धन्वंतरि जयंती भी मनाई जाती है। महर्षि धन्वंतरि आयुर्वेद के परम विद्वान थे। उन्होंने स्वास्थ्य और जीवन-संतुलन का जो ज्ञान दिया, वही हमें सिखाता है कि शरीर और आत्मा दोनों का संतुलन ही सच्चा स्वास्थ्य है।
इसी काल में महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती का निर्वाण हुआ था। स्वामी दयानंद ने सन~ १८६० में दीपावली के दूसरे दिन — कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मथुरा में अपने गुरु महर्षि विरजानंद सरस्वती से पहली बार भेंट की थी। इस मिलन ने उनके जीवन की दिशा बदल दी और उन्हें वेद-प्रचार के लिए पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया।
उन्होंने कहा — “स्वामी दयानंद आज शरीर से हमारे बीच नहीं हैं, परंतु जब तक आर्य हैं, उनका नाम और उनका संदेश सदा जीवित रहेगा। जिस दिन हम आर्य वेदिक धर्म और उनके उपदेशों को अपनाना और फैलाना बंद कर देंगे, वही दिन होगा जब ऋषि का वास्तविक निर्वाण होगा। पर जब तक हम उनके ज्ञान को अपनाते और आगे बढ़ाते रहेंगे, वे सदा अमर रहेंगे।”
उन्होंने सभी से आग्रह किया कि हम इस पावन दिन पर केवल घरों में ही नहीं, अपने हृदयों में भी दीप जलाएं — यज्ञ, ज्ञान और सेवा के माध्यम से।
इसके बाद कुमारी दुखी कृति और कुमारी हुरकू द्वारा कविता पाठ किया गया।
सभा के प्रधान आचार्य, आचार्य सूरज प्रकाश खेड़ू शास्त्री जी ने ऋषि संदेशों को जीवन में उतारने का महत्व बताया एवं लक्ष्मी का वैदिक स्वरुप दर्शाया I
भजन संध्या में श्री संतोष आनंद कॉलू एवं समूह तथा श्री नवीन ओखेज़ द्वारा सुंदर भजन प्रस्तुत किए गए। सभा के अध्यक्ष श्री वीरसेन रूकमनीया ने अपने उद्बोधन में आर्य समाज की एकता और वैदिक मिशन को आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी।
सांसद के कई सदस्यों ने भी अपनी उपस्थिति एवं दीपावली सन्देश प्रस्तुत किये।
भारत उच्चायुक्त से श्रीमती श्रुति पाठक की उपस्थिति एवं सन्देश से कार्यक्रम की शोभा और बढ़ गई।
मुख्य अतिथि माननीय डॉ. के. एस. सुकन, मंत्री (उच्च शिक्षा, विज्ञान एवं अनुसंधान), ने अपने संदेश में सभा के कार्यों की सराहना की और कहा कि इस प्रकार के आयोजन हमारे समाज में वैदिक संस्कृति और राष्ट्रीय मूल्यों को जीवित रखते हैं।
कार्यक्रम का समापन दीप दान एवं धन्यवाद ज्ञापन (श्री अरुण गनिया द्वारा) तथा शांति पाठ के साथ हुआ। पूरा वातावरण प्रकाश, शांति और कृतज्ञता से भर गया।
अंत में सभा की ओर से सभी अतिथियों को दीपदान, महा प्रशाद एवं मिठाई से सत्कार किया गया।


