‘उर्दू और हिन्दी हमारी मातृभाषा को कैसे बढ़ा सकती हैं?’ विषय पर एक सेमिनार का आयोजन

आजकल दिनांक 19.09.2024 से 21.09.2024 उत्तर प्रदेश के नोएडा, सैक्टर 16-A स्थित फ़िल्म सिटी के मारवाह स्टुडियो प्रांगण में ‘राइटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ की सहभागिता के साथ ‘एशियन अकादमी ऑफ आर्ट्स’ द्वारा देश के दूसरे सबसे बड़े ग्लोबल लिटरेचर फेस्टिवल के 10वें संस्करण का आयोजन किया जा रहा है।
इस अवसर पर प्रथम दिवस दिनांक 19.09.2024 के पहले सत्र में “How Can Urdu and Hindi Enhance Our Mother Tongue?” अर्थात् “उर्दू और हिन्दी हमारी मातृभाषा को कैसे बढ़ा सकती हैं?” विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया।

उपस्थित गणमान्य विभूतियों एवं जनसमुदाय को अपने अमूल्य उदगारों से लाभान्वित करने के लिए मंचासीन विभूतियों में मारवाह स्टुडियो के सर्वेसर्वा, फेस्टिवल के अध्यक्ष एवं आफ्टा के चांसलर श्री संदीप मारवाह, शिक्षाविद्, कवि एवं साहित्यकार डॉ विवेक गौतम, स्वयं फिल्म निर्माता-निर्देशक एवं ‘के.आसिफ’ द्वारा निर्मित ऐतिहासिक फिल्म ‘मुगल-ए-आज़म’ की रंगीन कृति (कलर वर्जन) के एडिटर-इन-चीफ श्री सुनील सलगिया, लिडरशिप फ्रेटरनिटी से पधारे ब्यूरोक्रेट, थाॅट लिडर एवं लेखक प्रो॰ डॉ पी के राजपूत, उत्तर प्रदेश व्यापार-कर विभाग से सेवानिवृत्त सहायक कमिश्नर एवं लेखक श्री रईस आज़म खान, फिल्म निर्मात्री, लेखक एवं मोटिवेशनल स्पीकर डॉ पल्लवी प्रकाश, कवयित्री एवं लेखक डॉ रचना निर्मल, यूट्यूबर सुश्री पूनम कालरा तथा फेस्टिवल निदेशक श्री सुशील भारती विद्यमान रहे। कार्यक्रम की संचालिका सुश्री महक जैदी ने बहुत ही उम्दा और उत्कृष्ट संचालन का परिचय दिया।

कार्यक्रम के आरंभ में जहां एक ओर मंचासीन विभूतियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करके सत्र का आग़ाज़ किया गया। वहीं दूसरी ओर, सभी विभूतियों को पुष्पगुच्छ भेंट स्वरूप प्रदान कर सम्मानित किया गया।
तत्पश्चात्, संचालिका द्वारा सभी वक्ताओं को संक्षिप्त परिचय के साथ क्रमबद्ध तरीके से निर्धारित विषय पर अपने-अपने सारगर्भित वक्तव्यों से उपस्थित श्रोताओं को लाभान्वित करने के लिए आमंत्रित किया गया।
परिचर्चा के आरंभिक उदबोधन में फेस्टिवल अध्यक्ष श्री संदीप मारवाह ने अवगत कराया कि हिन्दी विश्व में अंग्रेज़ी, चीनी और स्पेनिश के बाद सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। आज 170 देशों में एएफटी मौजूद है। उन्होंने शायरी के अंदाज में अर्ज किया कि “हिन्दी को दाएं से आते देखा, उर्दू को बाएं से आते देखा। हमने दोनों को हाथ मिलाते देखा।” हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाएं एक-दूसरे में ऐसे घुल-मिल गई हैं, जैसे चाय में दूध और शक्कर। डॉ विवेक गौतम ने शिक्षक, कवियों, ग़ज़लकारों एवं लेखकों के माध्यम से इंगित करते हुए दृष्टिगत किया कि हम अनेकानेक वर्षों तक मुगलों और अंग्रेजों के शासनादेशों की गुलामी के तहत माताहयत रहे। उनकी भाषाएं अरबी, फ़ारसी और इंग्लिश थी। हमारे देश के लोग भी उनकी सेना में शामिल थे। तब यह अधिकतर सैनिकों की भाषा मानी जाती थी। इसीलिए हिन्दी में इन्हीं तीनों भाषाओं के शब्द बहुतायत से सम्मिलित हैं। प्रायः सभी वक्ताओं ने अपने कार्य-कलापों के क्षेत्र से अपने-अपने निजी अनुभव सांझा करते हुए दृष्टिगोचर प्रस्तुत किया कि फ़ारसी और अरबी से उर्दू तथा संस्कृत से हिन्दी भाषा की उत्पत्ति और अंग्रेज़ी के शब्द मिश्रण से यह दोनों ही भाषाएं अपने-आप में समृद्ध हुई हैं और एक-दूसरे की पूरक भी मानी जाती हैं। इसीलिए तो प्रत्येक विधा में शिक्षण, अध्ययन, मनन और लेखन करने वाला शिक्षार्थी इन सभी बारीकियों को अपने सफ़र के दौरान भली-भांति समझ पाता है।

डॉ पी के राजपूत ने बताया कि ग्लोबलाइजेशन से हिन्दी को विश्व के अनेक देशों में एक महत्वपूर्ण स्थान मिला है। जहां एक ओर, इसके प्रचार-प्रसार में फिल्मों का योगदान रहा है। वहीं दूसरी ओर, आईटी इंडस्ट्री के प्रादुर्भूत का भी भरपूर सहयोग एवं योगदान प्राप्त हुआ है। यहां तक कि इकोनॉमिक्स के आधार पर भी इसकी बहुत ज़रूरत है।
फिल्म निर्मात्री डॉ पल्लवी प्रकाश ने बताया कि मातृभाषा को समृद्ध करने में हिन्दी और उर्दू के साथ-साथ रिजनल भाषाओं का भी योगदान मिलता है। उन्होंने अपनी प्रादेशिक भाषा में निर्मित फिल्म ‘मोहब्बत की सौगात’ एवं ईटीवी पर प्रसारित एवं प्रदर्शित धारावाहिक ‘प्रणाम भारत’ के सन्दर्भों द्वारा व्याख्यायित करते हुए संक्षिप्त रूप से हिन्दी और उर्दू की जुगलबंदी से मातृभाषा के विस्तार पर सारगर्भित अभिव्यक्ति सहित प्रकाश डाला।

कवयित्री डॉ रचना निर्मल ने अपने वक्तव्य में स्पष्टता के साथ उद्धृत किया कि समाज के बीच में रहकर ही भाषा विकसित होती है। स्थान और समय के स्थानांतरण अनुसार सामाजिक परिवेश में हिन्दी और उर्दू के अतिरिक्त बोली तथा इस्तेमाल की जाने वाली अन्य भाषाओं का भी प्रभाव निश्चित रूप से मातृभाषा को समृद्धि प्रदान करता है।
के आसिफ की मील का पत्थर साबित और प्रतिस्थापित ऐतिहासिक फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ कलर्स वर्ज़न के एडिटर-इन-चीफ श्री सुनील सलगिया ने दृष्टिगत किया कि इस फिल्म को बनाने में आसिफ़ साहब को 14 वर्ष लगे थे, किंतु इस दौरान वह कभी भी निराश नहीं हुए थे। दो बार उन्हें फिल्म की बनी हुई छह से आठ रील को नष्ट करना पड़ा था। इस विफलता का पहला कारण वित्तीय कठिनाई रहा और दूसरा कारण देश का विभाजन रहा, जिस दौरान अकबर का रोल निभाने वाला कलाकार पाकिस्तान चला गया। तभी, पृथ्वीराज कपूर को अकबर के लिए साइन किया गया। इसीलिए कहते हैं कि सपने को जीने के लिए अंतर्मन में संजोना पड़ता है। सफलता तभी मिलती है। इस फिल्म की कहानी को उद्धृत करते हुए अवगत कराया कि राजा अपने पुत्र को अपनी अल्हड़ जवानी में डगमगाते हुए देख उसे अपने से दूर भेज देता है, लेकिन वह वापिस लौटकर आने पर भी एक कनीज़ के प्यार में पड़कर पिता से बगावत कर बैठता है। वैसा ही प्रयोग, राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ की विफलता के बाद ऐसा ही प्रयोग कर ‘बाॅबी’ फिल्म का निर्माण किया था, जिसमें कुछ इसी तरह अमीर-गरीब के बीच बने संबंधों की कहानी दोहराई गई थी। इस फ़िल्म ने भी उस समय सफलता के नए आयाम स्थापित किए थे। कहने का अभिप्राय यह है कि ‘मुगल-ए-आजम’ में हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी और अरबी का इस्तेमाल हुआ है और ‘बाॅबी’ में हिन्दी और उर्दू का इस्तेमाल हुआ है। दोनों की सफलता ने अपनी-अपनी जगह अलग ही कीर्तिमान स्थापित किए हैं। यह दर्शाता है कि अनेकानेक भाषाएं देश की मातृभाषा को समृद्धि प्रदान करती हैं। अंग्रेज़ी शासनकाल से इंग्लिश भाषा का इस्तेमाल भी बहुतायत से उपयोग में आ गया है, जो सुविधाजनक है। इसके लिए उन्होंने ‘टेबल टेनिस और मेकअप मैन’ शब्दों को हिन्दी में अनुवादित करते हुए व्यक्त किया कि हिन्दी में इनको व्याख्यायित करना कितना मुश्किल है। इसीलिए इन्हें ऐसे ही रूप में इस्तेमाल के लिए आमजन द्वारा स्वीकृत कर लिया गया है।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में गत पांच वर्षों तक शिक्षक रहे श्री रईस आज़म खान ने अपने उद्बोधन में कहा कि हम सभी रोज़मर्रा में हिन्दी और उर्दू की जुबान का उपयोग करते हैं। दरअसल, सभी आमजन हिन्दवी भाषा में बात करते हैं। उन्होंने उदाहरण सहित प्रकाश डाला कि एक तरफ गीतकार गोपाल दास नीरज लिखते हैं ‘शोखीयों में घोला जाए, फूलों का शबाब’ और दूसरी तरफ ‘ये महलों ये तख्तों या ताजों की दुनिया’। कुछ इसी तरह गीतकार शकील बदायूंनी भी उर्दू के शायर होते हुए लिखते हुए कुछ अलग हटकर गढ़ते हैं ‘नैन लड जईंहें, तो हंगामा कसक हुई बे करी’। इसी श्रेणी में कविराज शैलेन्द्र के गीत भी आते हैं। कहने का अभिप्राय मात्र यही है कि हिन्दी, उर्दू और देश में प्रचलित अन्य सभी भाषाएं मिलकर ही राष्ट्र की मातृभाषा को समृद्धि के शिखर पर लेजाकर स्थापित करती हैं। यूट्यूबर सुश्री पूनम कालरा ने भी अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर मातृभाषा को समृद्ध बनाने में हिन्दी और उर्दू दोनों की ही सराहना करते हुए अपना अति संक्षिप्त उद्बोधन सबके समक्ष रखा।
कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव पर एएफटी के चांसलर श्री संदीप मारवाह ने मंचासीन विभूतियों को स्मृति-चिन्ह प्रदान कर सम्मानित करते हुए उनके प्रति अभिवादन और आभार ज्ञापित किया।
फेस्टिवल निदेशक श्री सुशील भारती द्वारा सभागार में श्रोताओं के मध्य उपस्थित गणमान्य विभूतियों शिक्षाविद् डॉ मंदिरा घोष, कवि श्री गोल्डी गीतकार, आकाशवाणी दूरदर्शन कलाकार, सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी, अधिवक्ता एवं गद्य-लेखक श्री कुमार सुबोध इत्यादि सहित भारी संख्या में विद्यमान छात्र-छात्राओं के प्रति धन्यवाद और आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम के प्रथम सत्र को सम्पन्न घोषित किया।
— कुमार सुबोध, ग्रेटर नोएडा वेस्ट।