
राजभाषा क्रियान्व्यन समिति, किरोड़ीमल महाविद्यालय एवं हिंदी अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 9 अक्टूबर को “स्वाधीनता आंदोलन में हिंदी और महात्मा गांधी” विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का सफल आयोजन किरोड़ीमल महाविद्यालय के सेमिनार कक्ष में किया गयाl भारतीय अतीत व वर्तमान के सामंजस्य को प्रतिबिम्बित् करने वाले इस प्रकार के गहन विषय की मांग रहती है कि उसपर आख्यान देने वाले वक्ताजन भी गहनता के सागर में डूबे हुए हों; इसी दृष्टि से मुख्य अतिथि के रूप में पद्मश्री रायबहादुर राय जी (वरिष्ठ पत्रकार) तथा कार्यकर्म की अध्यक्षता हेतु प्रो जितेन्द्र श्रीवास्तव (निदेशक, अंतर्राष्ट्रीय विभाग, इग्नू) एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. हनीत गांधी (अधिष्ठाता, प्रवेश शाखा, दिल्ली विश्वविद्यालय) का आगमन हुआl अन्य गणमान्य उपस्थितयों के रूप में डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार संतोष (सह-आचार्य, हिंदी विभाग, भा. भाषा केन्द्र, जेएनयू) व डॉ.सुनील कुमार (सह-आचार्य, हिंदी विभाग, दि. वि.) व डॉ. राजीव रंजन गिरी ( सह-आचार्य, हिंदी विभाग, दि. वि.) तथा श्री प्रभात ओझा (पत्रकार) भी कार्यक्रम के आकर्षण बिन्दु बनकर शरीक हुएl
मंत्रोचार की आभा से युक्त दीप प्रज्वलन एवं स्वागत-अभिनंदन की उन्नत सांस्कृतिक परम्परा के उपरान्त संगोष्ठी का सिंहनाद हुआ; संयोजक डॉ. विनय गुप्ता द्वारा इस सिंह की चाल को नियंत्रित करने का कार्य भी भलीभाति शुरू हुआl प्रथम सत्र की प्रथम वक्ता के रूप में प्रो हनीत गांधी ने गांधी जी के कार्यों की प्रशंसा व वर्तमान में उनकी बनाई तर्ज पर हो रहे विश्वविद्यालीय कार्यों की प्रशंसा कीl महाविद्यालय प्राचार्य, प्रो दिनेश खट्टर का आभार प्रस्तुतिकरण; डॉ सुनील कुमार के वचनों से गांधी जी की कथनी और करनी पर सुनाये अद्भुत प्रसंग; तदोपरान्त डॉ. राजीव रंजन गिरी के सूक्ष्मता आधारित, हिंदी और उसकी राजभाषा बनने की कहानी और गांधी जी की भागीदारी का विश्लेषण; और प्रो जितेन्द्र श्रीवास्तव द्वारा मातृभाषा महत्त्व तथा कुछ अनसुने किस्सों का लोकमंगल हेतु प्रकटीकरण, आदि संश्लिष्ट गतिविधियो से प्रथम सत्र का समापन हुआl

घड़ी ने चार के इशारे पर द्वितीय सत्र के नवोउद्गार का सूचन कियाl इसी बीच, विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित, डॉ. कंचन (एस.डी.एम मथुरा, यू.पी.) जी द्वारा विषय की गंभीरता का आस्वादन श्रोतागण को दिया गयाl वक्तव्यों का तांका लगाना आरंभ हुआ, श्री प्रभात ओझा जी द्वारा भारतेंदु मंडल के भाषायी योगदान पर प्रकाश डाला गया, जिसमें विहंगावलोकन की खुशबू थीl
अगली कड़ी में डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार संतोष ने कुछ विषयों का सूत्रपात किया, जिनमे गांधी जी द्वारा भाषायी उत्थान पर किये गये कार्य एवं उन्हें लेकर निर्मित, आज के समाज की शंका का निदान थाl भाषायी धरातल पर गांधी जी की हार का पूर्वनिर्धारण जो वर्ग कर चुका है, उनकी आंखें खोलने का काम भी ज्ञानेन्द्र जी ने कियाl
सभी विविध व्याख्यानों को संश्लिष्टता का रूप, श्रद्धेय बाबू जी “पद्मश्री रायबहादुर राय” द्वारा दिया गया ; विषय की औचित्यता , गांधी जी के हिंदी को देश की संपर्क भाषा के रूप में उद्धृत करने हेतु सम्पन्न प्रयासों की समीक्षा आदि गहन विषयों पर उन्होंने विवेचन कियाl करतल ध्वनि ने परिवेश को स्पंदित करने का काम भी निभायाl

धन्यवाद ज्ञापन में डॉ.ज्ञानेंद्र पांडे (सह-संयोजक) ने सब श्रोताजन, अतिथिजन, तथा कार्यक्रम को फलागम तक ले जाने वाले विद्यार्थीयों का धन्यवाद कियाl राजभाषा क्रियान्व्यन समिति के संयोजक, डॉ.विनय गुप्ता एवं सह संयोजक, (डॉ. ऋतु वार्ष्णेय गुप्ता, डॉ. हरेती लाल मीना) का भी आभार व्यक्त कियाl महाविद्यालय के अन्य प्राध्यापकों, सम्मिलित शोधार्थियों का भी अभिनंदन किया गयाl इसी के साथ सभी जलपान की और मुखृत हुए, जो एक सफल समापन के बाद आदर्श गन्तव्य माना जाता हैl
निष्कर्षत: यह व्यक्त करना समीचीन होगा कि संगोष्ठी समकालीन भारतीय समाज को जागृत करने का काम करती हैl ये एक प्रश्न भी आपकी समझ को प्रदान करती है की -“हिंदी तो सदैव से इस देश की है, पर क्या यह देश कभी हिंदी का हुआ है?”