वैश्विक दौर में हिंदी की प्रासंगिकता : स्पर्श हिमालय महोत्सव के दूसरे सत्र का विषय

स्पर्श हिमालय महोत्सव के दूसरे सत्र में विषय विशेषज्ञों ने अपने विचार व्यक्त किए

प्रो. राजेश कुमार ने कहा, प्रासंगिक होना वैचारिक चिंतन है। प्रासंगिक होने के लिए संसाधनों की आवश्यकता होती है। 140 देशों में 1 करोड़ 18 लाख भारतवासियों की संख्या है। यहाँ हिंदी बोलने वाले लोगों की संख्या पर्याप्त मात्रा में मौजूद है। 50 देशों में भारत विद्या का अध्ययन होता है। वैश्विक स्तर पर हिंदी को व्यापकता के साथ मन मानस में स्थान प्राप्त हो रहा है।

प्रो.गोपाल शर्मा जी ने कहा, “मैं बाईलिंगवल प्राध्यापक हूँ। हमारा लक्ष्य ऐसी AI को विकसित करना है जो देश मे हर व्यक्ति को भारतीय भाषा से जुड़े, एलोन मस्क की कंपनी हिंदी के विद्वानों को ढूंढ कर अपने मे शामिल करके हिंदी को विकसित करना चाहती है। हिंदी के विकास में सिनेमा का भी बड़ा योगदान है।

प्रो. इंद्र सिंह ठाकुर जी के अनुसार, भाषा बाधा नही होती, भाषा सेतु होती है। भाषा व्यक्ति के चिंतन को व्यक्त करती है। विश्व की दौड़ में हिंदी भाषा को जाना चाहिए। वह जुनून और जज्बे से ही जाएगी। लेखक गांव इसके पीछे एक आधार रखने का कार्य करेगा। भाषा का अनुवाद सही रूप में होना ही श्रेत्रीयता को जोड़ता है। विश्व हमारी तरफ देख रहा है हमे उसको आशा पर उतरना होगा।

प्रो. पांडेय ने कहा, ग्लोबलाइजेशन में हिंदी को अधिक प्रासंगिक बनाया है। इसके पश्चात विश्व मे हिंदी की मांग बढ़ी है। जहाँ पर भारत का व्यवसाय बडा वहाँ हिंदी भाषा की स्थिति अधिक बड़ी है। हिंदी की जिस देश को आवश्यकता है वहाँ पर हिंदी सुदृढ़ हुई है।

डॉ. राजेन्द्र कुमार व्यास ने कहा, “गांधी ने कहा कि अगर मैं तानाशाह होता तो मैं हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बना देता। हिंदी के लिए खतरे के रूप में बाज़ार है, जो व्यक्ति की सोचने की शक्ति को कमजोर कर रहा है। हिंदी को संम्पन करने के लिए उसकी शब्द संपदा को मजबूत करना होगा। हिंदी में शब्द ही संस्कार के रूप में कार्य करते है। हिंदी भाषा संस्कृति के संस्कारों से विकसित हुई है।“

अनिल जोशी जी ने कहा, वैश्विक स्तर हमारे लेखन में हिंदी की स्थिति डगमगाती नज़र आती है। हमें शिक्षण की दृष्टि से हिंदी को मजबूत करना होगा। तकनीक के माध्यम से हिंदी को विश्व मे कई हज़ारों, लाखों लोगों तक पहुचाने का कार्य होना चाहिए। प्रयोग और तकनीक से हिंदी को जन जन तक पहुंचाना होगा। प्रवासी लेखन ने कई देशों तक अपनी पहुँच बनाई है। भारत की भाषाएं ही भारत की आत्मा है। और भारत की आत्मा को संभाल कर रखना होगा।

तेजेन्द्र शर्मा जी ने कहा, जब तक कोई भाषा रोजी रोटी से नही जुड़ेगी, तब तक विकास होना असंभव है। इसलिये लेखक हिंदी से केवल भावनात्मक रूप में जुड़ता है। जबकि भारत की आंचलिकता को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलानी होगी। इमोजी का इस्तेमाल करने से भी भाषा को खतरा हो रहा है। हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की जरूरत है।

डॉ. ललित किशोर के अनुसार, NBT 55 से अधिक भाषओं में पुस्तके प्रकाशित होती है।।

इस सत्र में जवाहर जी, प्रो. रमा,  अरुण जी, बी. एल गॉड जी, रमा शर्मा, जया वर्मा, इंद्रजीत शर्मा, अनिता वर्मा जी, विनयशील चतुर्वेदी जी, राजेश कुमार मांझी जी इत्यादि विद्वान्, प्राध्यापक, शोधार्थी, छात्र मौजूद रहे।

रिपोर्ट : मनीष कुमार

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