
“तुझको क्या हो गया बनारस” पुस्तक का अनावरण
दिनांक 24.10.2024 को नोएडा के सैक्टर – 112, नोएडा स्थित “प्रतिबिंब” के सभागृह में “विद्या-प्रेम संस्कृति न्यास” के तत्वावधान में प्रकाशक एवं वितरक ‘साहित्य भूमि’ के सौजन्य से सद्य प्रकाशित पुस्तक “तुझको क्या हो गया बनारस” के अनावरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसी पुस्तक के ‘आवरण का अनावरण’ गत वर्ष दिनांक 01.03.2024 को इसी सभागार में उपस्थित गणमान्य विभूतियों के कर-कमलों द्वारा किया गया था।
कार्यक्रम की अध्यक्षता के कार्यभार का वहन इंडिया नेटबुक्स के सर्वेसर्वा, प्रतिष्ठित लेखक एवं साहित्यकार डॉ संजीव कुमार ने किया।
मुख्य अतिथि की भूमिका विश्व रिकॉर्ड धारक, अंतरराष्ट्रीय लेखक, पत्रकार एवं विचारक डॉ शंभू पंवार ने निभाई। विशिष्ट अतिथि के तौर पर प्रणेता साहित्य न्यास के संरक्षक एवं प्रतिष्ठित कहानीकार श्री एस जी एस सिसोदिया एवं बाल साहित्यकार एवं ‘ककसाड़’ पत्रिका की संपादिका श्रीमती कुसुमलता सिंह उपस्थित रहे। लोकार्पण-कर्ता की श्रेणी में ‘अभिनव ह्यूरोज’ पत्रिका के संपादक एवं प्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री देवेंद्र बहल तथा स्व॰ श्री प्रेम किशोर पाण्डेय की पत्नी एवं डॉ कल्पना पाण्डेय ‘नवग्रह’ की माताजी श्रीमती विद्या पाण्डेय विराजमान रहे। प्रमुख वक्ताओं की श्रृंखला में अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के संरक्षक, लब्ध प्रतिष्ठित कवि एवं व्यंग्यकार सुविख्यात गज़लकार प्रज्ञान पुरुष श्री सुरेश नीरव, सुविख्यात वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सविता चडढा तथा नारायणी साहित्य अकादमी की राष्ट्रीय अध्यक्षा एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ पुष्पा सिंह ‘बिसेन’ मंचासीन रहे। विक्रमशिला हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति, भोजपुरी साहित्य के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रामजन्म मिश्र ने विशिष्ट सानिध्य प्रदान किया। निवेदक के तौर पर विद्या-प्रेम संस्कृति न्यास के संरक्षक डॉ आर के सिंह ने बखूबी साथ दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ कल्पना पाण्डेय ‘नवग्रह’ के सशक्त हाथों में रहा। व्यक्तिगत कारणों से विशिष्ट अतिथि डॉ सुधा शर्मा ‘पुष्प’, श्री सुधेंदु ओझा एवं श्री ओमप्रकाश प्रजापति अनुपस्थित रहे।

कार्यक्रम का आरंभ गणमान्य विभूतियों के कर-कमलों द्वारा स्व॰ श्री प्रेम किशोर पाण्डेय के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित किया गया और स्व॰ श्री प्रेम किशोर पाण्डेय की सुपुत्री श्रीमती रंजना दूबे ने सरस्वती वंदना की प्रस्तुति दी।
तत्पश्चात्, जहां एक ओर क्रमबद्ध तरीके से सभी मंचासीन गणमान्य विभूतियों को श्रीमती विद्या पाण्डेय, डॉ कल्पना पाण्डेय ‘नवग्रह’ तथा डॉ आर के सिंह द्वारा माल्यार्पण, अंगवस्त्र ओढ़ाकर एवं स्मृति-चिन्ह प्रदान करके सम्मानित किया गया। वहीं दूसरी ओर, मंच के समक्ष सभागार में विराजमान विद्वतजनों को भी सव॰ प्रेम किशोर पाण्डेय की सुपुत्रियों श्रीमती रंजना दूबे एवं श्रीमती अर्चना पाण्डेय द्वारा माल्यार्पण एवं अंगवस्त्र ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम को गतिशीलता प्रदान करते हुए संचालिका डॉ कल्पना पाण्डेय ‘नवग्रह’ ने पुस्तक अनावरण के लिए आज ही का दिन चुनने के लिए अवगत कराया कि आज उनके विवाह एवं पाणिग्रहण संस्कार की 25वीं वर्षगांठ अर्थात् रजत जयंती है। इसलिए यह दिन तय करने में उनका व्यक्तिगत स्वार्थ रहा। संयोग की बात है कि आज अहोई अष्टमी के व्रत और पूजन का अवसर भी है। तत्पश्चात् क्रमबद्ध श्रृंखला में वक्ताओं को अपने-अपने उदबोधनों के लिए आमंत्रित किया। बीच-बीच में उन्होंने पिताजी के जीवन से जुड़े कुछ अनकहे-अनछूए पहलुओं का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि अपने लेखन के नाम में पिताजी के उपनाम ‘नवग्रह’ का उपयोग अपनी माताजी श्रीमती विद्या पाण्डेय से आज्ञा प्राप्त करने के पश्चात् ही अपने नाम के साथ जोड़ना प्रारंभ किया है।
डॉ सविता चडढा ने रेखांकित किया कि इस पुस्तक का शीर्षक मैंने ही चुना था। स्व॰ श्री प्रेम किशोर पाण्डेय जी विनम्रता और सरलता की प्रतिमूर्ति थे। इस पुस्तक में एक मानवतावादी व्यक्तित्व की समाज के प्रति उनके चिंतन और दर्शन की झलक दिखाई देती है। बनारस में जो आज घटित हो रहा है, वह लेखक ने उस समय जान लिया था।
डॉ रामजन्म मिश्र ने स्व॰ प्रेम किशोर पाण्डेय ‘नवग्रह’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर दृष्टिगोचर प्रस्तुत करते हुए अवगत कराया कि उनकी बनारस में सबसे बड़ी पहचान यह थी कि उनके मकान से छह घर छोड़कर पूर्व प्रधानमंत्री स्व॰ श्री लालबहादुर शास्त्री जी का मकान था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी उन्हें मंत्री पद की पेशकश की थी, किंतु उन्होंने उसे इसलिए अस्वीकार कर दिया था कि उन्हें बनारस नहीं छोड़ना था। वक्तव्य को आगे बढ़ाते हुए कहा कि पिता के सदगुणों को अपने भीतर आत्मसात करने वाली आत्मजा ने इस पुस्तक का संपादन एवं प्रकाशन करके पितृश्रण से उऋण होने की दिशा में एक छोटे-से अंश का प्रयास मात्र है। उन्होंने उनकी अन्य दो पुत्रियों से भी आग्रहपूर्वक निवेदन किया कि उन्हें भी बाकी सभी परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर पिता के अनछुए-अनकहे पहलुओं को समाज के समक्ष लाने में सहभागिता के साथ प्रयास करना चाहिए।

प्रज्ञान पुरुष श्री सुरेश नीरव ने उद्धृत किया कि यह पुस्तक विद्या-प्रेम के समायोजन से उत्पन्न कल्पना द्वारा अपने पिता की अभिव्यक्तियों को संचयित और समायोजित करके समाज के समक्ष प्रस्तुत करने के अभूतपूर्व प्रयास को परिलक्षित करती है। सुपुत्री कल्पना ने ‘लोकार्पण’ के स्थान पर ‘अनावरण’ शब्द का प्रयोग करके साहित्य में एक नवीन आयाम की संरचना को प्रतिस्थापित किया है। यह उत्तम प्रयोग स्वागत के साथ-साथ सराहनीय और बधाई के लायक है। सलंग्न वीडियो में आप उनके उदगार विस्तार से स्वयं सुन सकते हैं।
डॉ शंभू पवार ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया कि अपने माता-पिता को समाज के समक्ष समर्पित सेवा-भाव से सम्मान दिलाना संतान का परम धर्म और कर्तव्य है। आज उनकी सुपुत्री ने पिता की धरोहर को इस काव्य-संग्रह के माध्यम से समाज के समक्ष लाकर सही अर्थों में उसी दायित्व का निर्वहन किया है।
डॉ नामवर सिंह द्वारा स्थापित संस्था ‘नारायणी साहित्य अकादमी’ की राष्ट्रीय अध्यक्षा डॉ पुष्पा सिंह ‘बिसेन’ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि स्व॰ श्री प्रेम किशोर पाण्डेय का व्यक्तित्व अभूतपूर्व प्रतिभाओं से परिपूर्ण था। इस पुस्तक में उनकी संकलित स्वरचित रचनाएं समसामयिक विचारधारा के साथ-साथ ज्वलंत मुद्दों पर तीखा प्रहार करती दिखाई देती हैं।
‘अभिनव ह्यूरोज’ के संपादक एवं लोकार्पणकर्ता श्री देवेंद्र बहल ने अपने संक्षिप्त उदबोधन में डॉ कल्पना पाण्डेय ‘नवग्रह’ को पुस्तक के लिए शुभाशीष के साथ मंगल शुभकामनाएं अर्पित करते हुए इस अवसर पर आमंत्रित करने के लिए आभार व्यक्त किया।
स्व॰ श्री प्रेम किशोर पाण्डेय की धर्मपत्नी श्रीमती विद्या पाण्डेय एवं डॉ कल्पना पांडेय ‘नवग्रह’ की माताजी ने धैर्य और संयम से अपने मनोभावों को नियंत्रित करते हुए इस नाजुक पल को अपनी स्मृतियों में जीवनपर्यंत संजोए रखने की अभिलाषा व्यक्त की।
श्री एस जी एस सिसोदिया ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि इस पुस्तक का मूर्तरूप में समाज के समक्ष प्रस्तुत होना कर्मठता और पुरुषार्थ के साथ किए गए अथक परिश्रम का साक्षात परिणाम है।
बाल साहित्यकार एवं ‘ककसाड़’ पत्रिका की संपादिका श्रीमती कुसुम लता सिंह ने पिता पर अपनी संवेदनशील भावनाओं से युक्त रचना की प्रस्तुति के माध्यम से स्व॰ श्री प्रेम किशोर पाण्डेय को अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए।
डॉ संजीव कुमार ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में इस पुस्तक को एक अदभूत और अभूतपूर्व कृति स्वीकारा। उन्होंने कहा कि “हम जब जीवन में आते हैं, तो हमारे जीवन के साथ निर्देश पुस्तिका नहीं आती। इसीलिए भगवान ने पिता को बनाया है, जो ज़िंदगी के साथ भी, ज़िंदगी के बाद भी।”
सभागार में उपस्थित जनसमूह के मध्य विराजमान विद्वतजनों में जी डी गोयनका विद्यालय की प्राचार्या सुश्री प्रीति सिरोही, पूर्व प्राचार्य एवं निदेशक डॉ स्मिता, कहानीकार सुश्री शन्नो, कवि श्री ब्रह्देव शर्मा, गुरू मां श्रीमती मधु मिश्रा, सूर्या प्रकाशन के श्री राजकुमार एवं साहित्य भूमि प्रकाशन से श्री धमेंद्र, डॉ कल्पना पाण्डेय ‘नवग्रह’ की बड़ी बहन श्रीमती अर्चना पांडे तथा आकाशवाणी दूरदर्शन कलाकार, सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी, अधिवक्ता एवं गद्य-लेखक श्री कुमार सुबोध इत्यादि प्रमुख रहे।
स्व॰ श्री प्रेम किशोर पाण्डेय ‘नवग्रह’ की बड़ी सुपुत्री श्रीमती अर्चना पाण्डेय ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में स्पष्टीकरण दिया कि यह पिता के प्रेरक मनोबल का ही शाश्वत परिणाम है कि उनकी पुत्रियाँ वर्तमान समय में आत्मनिर्भर और सम्मानजनक जीवनयापन करते हुए माता-पिता के प्रति उन्हीं के द्वारा निरोपित संस्कारों का निर्वहन करने में समर्थ और सक्षम हैं। तत्पश्चात्, उनके द्वारा सभागार में देश के विभिन्न शहरों से पधारे आगंतुकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए धन्यवाद और आभार ज्ञापित करने के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

— कुमार सुबोध, ग्रेटर नोएडा वेस्ट।