शोमैन राजकपूर के 100 साल : बातें-मुलाक़ातें

पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के आमंत्रण पर राजकपूर परिवार की चार पीढ़ियों ने नरेंद्र मोदी जी से मुलाक़ात में उन्हें याद करते हुए उन पर चर्चा की।

दिवंगत एक्टर और फिल्ममेकर राज कपूर के 100वें जन्मदिन पर बातचीत में पीएम मोदी ने राज कपूर पर एक डॉक्यूमेंट्री या फिल्म बनाकर उनके बारे में दुनिया को बताने का सुझाव दिया। रीमा जैन से लेकर करीना कपूर खान और आलिया भट्ट तक सभी ने पीएम मोदी से अपने दिल की बात कही और पीएम मोदी ने भी सभी की बातें सुनते हुए अपने विचार कपूर परिवार के साथ साझा किए। कपूर परिवार ने एक वीडियो में बताया है कि उनकी पीएम मोदी के साथ मुलाकात कैसी रही। रणबीर कपूर ने माना कि उनकी और फैमिली के सभी लोग प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करने को लेकर काफी नर्वस महसूस कर रहे थे, लेकिन उन्होंने हंसी मजाक करके सभी को काफी कम्फर्टेबल कर दिया।

अब कुछ बातें इस शो मैन के बारे में –

फिल्मी दुनिया के शो मैन राजकपूर कपूर का जन्म 14 दिसंबर 1924 को भारत के पेशावर (अब ये हिस्सा पाकिस्तान में आता है) में हुआ था।

साल 1930, जगह बॉम्बे का सेंट जेवियर स्कूल। स्कूल में नाटक चल रहा था। 6 साल के एक लड़के ने पादरी की तरह लंबा चोगा पहना हुआ था। चोगा लंबा था और लड़के की हाइट छोटी। मुश्किल से वो खुद को संभाल पा रहा था। मंच पर चढ़ा तो जोश में था, एक ही डायलॉग दो बार बोल गया। कुछ ही देर में उसकी स्टेज पर फिर से एंट्री थी, इस बार चोगा उसके पैरों में फंस गया। सबके सामने स्टेज पर गिर पड़ा, हॉल में बैठे लोग हंसने लगे। सीन खत्म होने पर जब लड़का बैक स्टेज गया तो प्रिंसिपल ने उसकी गर्दन पकड़ ली। दो-चार थप्पड़ जड़ दिए।

गुस्से में प्रिंसिपल ने कहा-

तुम एक्टर हो? तुम्हारे पिता एक्टर हैं? मुझे तो लगता है तुम गधे हो। बाहर निकलो और दोबारा मत आना।

आगे चलकर वही लड़का इंडियन सिनेमा का सबसे बड़ा शोमैन बना। उसकी फिल्मों ने विदेशों में भी धूम मचाई। उनकी फ़िल्मों को रूस में राष्ट्रीय फिल्म का दर्जा मिला। उसे भारतीय सिनेमा का चार्ली चैपलिन तक कहा गया। राज कपूर, जिन्हें दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड समेत सैकड़ों अवॉर्ड्स से नवाजा गया।

जब वो अवॉर्ड लेने दिल्ली पहुँचे तो कार्यक्रम के दौरान ही उनकी तबीयत ख़राब हुई और उन्हें आनन-फ़ानन में अस्पताल ले जाया गया। उन्होंने अपनी पत्नी के साथ दिल्ली के अस्पताल में अंतिम साँस ली। 

बॉम्बे में राज कपूर का परिवार कालीघाट की हाजरा रोड के पास रहा करता था। पृथ्वीराज कपूर ने 1929 में फिल्म ‘बेधारी तलवार’ से हिंदी सिनेमा में कदम रखा और साल-दर-साल कामयाबी हासिल करते रहे और स्टार बने। बॉम्बे शहर में हर कोई उन्हें जानता था।

राज, देवेंदर और रविंदर तीनों बच्चों में राज सबसे हैंडसम थे। परदादा पर गईं गहरी नीली आंखें, सफेद चमकदार चेहरा, जिस पर पूरे समय लालिमा रहती थी। नजरबट्टू लगाने के साथ-साथ मां राज का चेहरा गीले कपड़े से पोंछकर ये लालिमा हटाने की कोशिश करती रहती थीं। राज जहां भी ठहरते थे, हर कोई उन्हें नजर भरकर देखता था। पिता के सेट पर लड़कियां उनके गालों को लिपस्टिक से भर देती थीं।

पृथ्वी थिएटर में काम करते हुए राज कपूर को एक रोज एक लड़के की जरूरत थी, जिसके लिए वो मार्च 1946 में रीवा गए थे। वहां उनके अंकल प्रेमनाथ रहा करते थे, जिन्हें फिल्म में लेने के लिए उनके पिता करतार नाथ से इजाजत चाहिए थी। वो बात कर ही रहे थे कि अचानक उन्हें दूर एक कमरे से सितार की आवाज सुनाई दी। आवाज सुनते ही वो बात छोड़कर उस कमरे में पहुंच गए। वहां देखा तो पता चला कि रिश्ते में उनकी बुआ लगने वालीं प्रेमनाथ की बहन कृष्णा सितार बजा रही थीं।

दरअसल, कृष्णा संगीत की पढ़ाई कर रही थीं और आने वाले इम्तिहान की तैयारी के लिए अपने टीचर के साथ बैठी थीं। राज कपूर ने झट से इजाजत मांग ली कि क्या वो उनके साथ प्रैक्टिस में बैठ सकते हैं। इजाजत मिलने ही वो पास रखे तबले को लेकर बजाने लगे। क्लास खत्म होते ही राज कपूर ने बड़े ही स्टाइल से कृष्णा को अपना विजिटिंग कार्ड दिया, जिसमें लिखा था, राज कपूर-प्रोडक्शन इंजार्च, पृथ्वी थिएटर।

कुछ घंटे बाद ही राज कपूर को प्रेम नाथ के पिता से उन्हें साथ बॉम्बे ले जाने की परमिशन मिली और वो बॉम्बे लौट आए। तीन दिन ही बीते थे कि कृष्णा कपूर के घर राज कपूर का रिश्ता भेजा गया। जाहिर है उनके परिवार ने झट से रिश्ता कबूल कर लिया। इसके 2 महीने बाद ही 12 मई 1946 को दोनों शादी के बंधन में बंध गए।

साल 1946 में केदार शर्मा ने फिल्म नील कमल शुरू की। उन्होंने लीड रोल पत्नी कमला चटर्जी को दिया और हीरो बने जयराज। शूटिंग शुरू हुई ही थी कि कमला चटर्जी का आकस्मिक निधन हो गया। केदार शर्मा बुरी तरह टूट गए और उन्होंने फिल्म बंद कर दी। कुछ महीनों बाद उन्होंने पत्नी की याद में फिल्म दोबारा शुरू की, जिसमें उन्होंने चाइल्ड आर्टिस्ट बेबी मीना (मधुबाला) को पहला लीडिंग रोल दिया। ये सुनते ही जयराज ने फिल्म छोड़ दी।

जब जयराज ने फिल्म छोड़ी तो केदार शर्मा ने रंजीत स्टूडियो में बतौर क्लैप बॉय काम कर रहे राज कपूर को फिल्म में लीड रोल दे दिया।

कहा जाता है कि क्लैप बॉय होते हुए एक रोज राज कपूर बार-बार कैमरे के सामने आकर बाल संवार रहे थे। इससे चिढ़कर डायरेक्टर केदार शर्मा ने उन्हें थप्पड़ जड़ दिया था। इस थप्पड़ की भरपाई करने के लिए उन्होंने राज कपूर को हीरो बनाया था।

राज कपूर की बतौर लीड पहली फिल्म नील कमल का पोस्टर, जिसमें उनका चेहरा भी नहीं था।

राज कपूर और मधुबाला के साथ जैसे ही फिल्म ‘नील कमल’ अनाउंस हुई, फाइनेंसर्स अपने पैसे वापस मांगने लगे। उनका कहना था कि भला ये भी कोई कास्टिंग हुई, न हीरो को कोई जानता है न हीरोइन को। फिल्म कैसे चलेगी।

गुस्से में आकर केदार शर्मा ने अपना प्लॉट बेच दिया और फाइनेंसर्स के पैसे लौटाकर खुद फिल्म प्रोड्यूस की।

24 मार्च 1947 को रिलीज हुई फिल्म ‘नील कमल’ सेमी हिट रही, जिससे राज कपूर को कोई खास पहचान नहीं मिली। इसके बाद रिलीज हुईं उनकी फिल्में ‘जेल यात्रा’, ‘दिल की रानी’ और ‘चित्तौड़ विजय’ भी बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो गईं।

यही वो समय था जब राज कपूर ने अपने करियर को नए सिरे से शुरू किया। 1948 में उन्होंने महज 24 साल की उम्र में RK स्टूडियो की नींव रखी और पहली फिल्म आग डायरेक्ट और प्रोड्यूस की और नरगिस के साथ फिल्म में लीड रोल निभाया।

बतौर डायरेक्टर राज कपूर की पहली फिल्म आग थी।

नौकर से उधार लेकर फिल्म बनाई: यूनिट की फीस के लिए स्टूडियो-पत्नी के गहने गिरवी रखे, फिर कैसे आवारा से हिंदी सिनेमा का नक्शा बदला।

उनकी फिल्में पूरे विश्व में लोकप्रिय हुईं। रूस, फ्रांस, ब्रिटेन व एशिया के लगभग सभी देशों में उनकी नीली आँखों का और संगीत का जादू छा गया।

-अनीता वर्मा

सोर्स- किस्से राज कपूर की बेटी ऋतु नंदा द्वारा लिखित राज कपूर की बायोग्राफी ‘राज कपूरः द वन एंड ओनली शोमैन’ से लिए गए हैं।

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