
लक्ष्मीबाई महिला महाविद्यालय-दिल्ली विश्वविद्यालय के खूबसूरत प्रांगण में ‘मातृभाषा: हिंदी और सिन्धी’ दिवस बड़े ज़ोर शोर से मनाया गया, जिसकी संयोजना प्रधानाचार्य, प्रो प्रत्यूष वत्सला, जी ने एक बड़े फ़लक पर की। उनसे हाल ही मैं प्रयागराज में शिक्षा न्यास द्वारा आयोजित माहकुम्भ सम्मेलन में मिली थी, जहां अचानक से अयोध्या के विद्वान विजय रंजन जी से फ़ोन पर बात हुई और उन्हीं के माध्यम से हमारा परिचय हुआ, लगा कि यह संसार सचमुच एक छोटा सा गाँव है, हम कहीं न कहीं टकरा ही जाते हैं। इस कार्यक्रम मंच पर मेरे साथ थे डॉ रजत शर्मा, सिन्धी सेवा संगम की अध्यक्ष, सरिता वातवानी (प्रो रवि टेकचन्दानी का ज़िक्र छिड़ा, जो अन्यत्र व्यस्त थे और कार्यक्रम में जुड़ नहीं पाए थे), डॉ सुमित कुमार मीना और सुंदर संचालन किया डॉ प्रियंका कुमारी ने। इस कार्यक्रम में गृहस्वामिनी की संपादिका, अर्पणा संत-सिंह भी सम्मिलित हुईं। विद्यार्थियों के प्रश्नों की झड़ी का जवाब देकर मैं अपने अतीत में पहुँच गयी पर उनसे अनुभव साझा करना अच्छा लगा। इस आदर्श महाविद्यालय में गाय, बत्तख, मोर, भित्ति चित्र, वनस्पति उद्यान, अध्ययन-झोपड़ियां, उपयोगी और दिलचस्प कूड़ेदान – के अतिरिक्त बहुत सी असाधारण गतिविधियाँ – योग एवं आध्यात्मिक केंद्र के साथ छात्राओं को मार्च-पास्ट, राइफ़ल ट्रेनिंग – ऐसे स्थल पर मैं बार बार जाना चाहूँगी, चाय के समय, पौष्टिक और स्फूर्तिदायक नाश्ता परोसा। इतने सारे सुंदर और उपयोगी उपहारों के साथ विदा हुई तो सचमुच मन प्रफुल्लित था। मुझे आमंत्रित करने के लिए प्रिय प्रत्यूष जी का हार्दिक आभार, मेरी समस्त शुभकामनाओं सहित एवं सस्नेह, दिव्या माथुर, वातायन-यूरोप।





