

रुद्रावतार
भगवान भुवन-भास्कर का मुख झलका
पूरब की दिशा हुई रक्तिम
लहरियाँ उठीं मद्धिम-मद्धिम
शिव समाधिस्थ थे, ध्यान कलश छलका भगवान भुवन-भास्कर का मुख झलका
देखा__धर्म की ध्वजा है जीर्ण-शीर्ण
अहसास निशा का है कराल
उसका ‘चर’रावणहुआ काल
होने वाले प्रभु धरा पर अवतीर्ण देखा_धर्म की ध्वजा है जीर्ण-शीर्ण
ब्राह्मण-कुल में जनमा है दशकंधर
है परम प्रतापी, रुद्र-भक्त
जो होम करे निज प्राण-रक्त
शिव-पूजा-हित, मस्तक काट-चढ़ा कर ब्राह्मण कुल में जनमा है दशकंधर
शिव के मस्तक पर गंग- चंद्र शोभित
कंठ में हलाहल को धारे
आँखें ज्यों दहकें अंगारे
देख प्रवाहित होते_सच का शोणित
शिव के मस्तक पर गंग-चंद्र शोभित
दश-आनन के पापों का बोझ बढ़ा
धारण करके गौ का बाना
पृथ्वी ने दैवी व्रत ठाना
तप-लीन हुई, हर-प्रिय को अर्घ्य चढ़ा दश-आनन के पापों का बोझ बढ़ा
विष्णु ने कहा_ “माँ, चिंता अब न करो,
दशरथनंदन बन आता हूँ
धर्म की ध्वजा फहराता हूँ
अब योगिराज शंकर का ध्यान धरो” विष्णु ने कहा- “माँ, चिंता अब न करो,
“आराध्यदेव मेरे हैं माता वे
कल्याण करेंगे वे निश्चय
इसमें न करो किंचित् संशय
मैं ज्ञान अगर हूँ तो हैं ज्ञाता वे आराध्यदेव मेरे हैं माता वे”
श्री विष्णु हुए फिर क्षण में अन्तर्लय
पृथ्वी ने शिव-तप शुरू किया
घटनाक्रम शिव ने जान लिया
दे दिया अभय_वे जो हैं मृत्युंजय
श्री विष्णु हुए फिर क्षण में अन्तर्लय
फिर किया ध्यान हरि का, ‘हरि के प्रिय ने :
“आराधक मैं, आराध्य तुम्हीं
छल सकते हो प्रभु मुझे नहीं
अमरत्व दिया तव भक्ति के अमिय ने फिर किया ध्यान हरिका ‘हरि के प्रिय ने :
“तुम दुष्ट-दलन-हित पहुँचो पृथ्वी पर
बनकर मनुष्य, आदर्श-रूप
तुम करो राज्य बन हृदय-भूप
मैं भी आता सेवाहित बन वानर
तुम दुष्ट-दलन-हित पहुँचो पृथ्वी पर
“रावण ने मुझसे अतुल शक्ति पाई
पर यदि वह अहंकार में भर
उच्छृंखल करता है निज स्वर
तो पड़ेगी मृत्यु-रागिनी सुनाई
रावण ने मुझसे अतुल शक्ति पाई
“मैं संहारक हूँ इस जग का लेकिन
दशकंधर को न मार सकता
निज मस्तक काट काट रखता
वह मेरी ही भक्ति में लीन पल-छिन
मैं संहारक हूँ इस जग का लेकिन
सुस्मरण किया वामांग शक्ति का फिर
माँ शक्ति तुरत ही प्रकट हुई
शिव की चिंता थी छुईमुई_
“है धर्म-च्युत हुआ धरा पर दशकंधर”
सुस्मरण किया वामांग शक्ति का फिर
“शीघ्र ही अवतरित होंगे विष्णु वहाँ
“धरणी को अनय-मुक्त करने
मर्यादा को सत् से वरने
“होवेगी परम ज्योति प्रज्वलित जहाँ
शीघ्र ही अवतरित होंगे विष्णु वहाँ
“देवि! सृजित कर रहा मैं अपना अंश
“आराध्य देव के चरणों में
अंतस् से फूटी किरणों में
“मानस-सरोवर का जो उज्ज्वल हंस
देवि ! सृजित कर रहा मैं अपना अंश
“यह रही कामना करूँ सदा सेवा
“यह अवसर आया है सुंदर
प्राणों में झरते रस-निर्झर
“मुझको न कहो अब देवि ! महादेवा
यह रही कामना करूँ सदा सेवा
“दश दिव्यांशों से हुआ प्रस्फुटित मैं
“एकादश रुद्र अतुल होगा
भूमण्डल का सम्बल होगा
“कर उसे सृजित हो सकूँगा सृजित मैं
दश दिव्यांशों से हुआ प्रस्फुटित मैं
“वह अनुपम बाल-ब्रह्मचारी होगा
“आराध्यदेव की सेवा-हित
वह योगी होगा इंद्रिय-जित
“वह जरा-मरण-जित, अविकारी होगा
वह अनुपम बाल ब्रह्मचारी होगा
“जो सभी असाध्य कार्य होंगे प्रभु के
“वह उन्हें करेगा सहज रूप
काँपेंगे उससे दनुज-भूप
“आशीष चलेगा लेकर वह सबके
जो सभी असाध्य कार्य होंगे प्रभु के
“मेरे समान ही पूजा जायेगा
“वह धीरोदात्त, गुणी होगा
जग उसका सदा ऋणी होगा
“मारुत-सुत, हनूमान कहलायेगा
मेरे समान ही पूजा जायेगा
“रावण का पतन शीघ्र प्रभु कर देंगे
“लेकिन पग-पग पर, क्षण-क्षण में
आयेंगे हनुमान स्मरण में
“नभ को प्रभु की जय श्री से भर देंगे
रावण का पतन शीघ्र प्रभु कर देंगे
“एकादश-रुद्र-रूप का परिकल्पन__
“प्रभु की लीला-हित करता हूँ
नव शाश्वत रँग अब भरता हूँ
“बिम्बित आदर्श करे ऐसा दरपन_ एकादश-रुद्र-रूप का परिकल्पन
“मैं शिव हूँ, वह शिवत्व को मूर्त्त करे
“मैं रुद्र,रौद्र वह रिपु के हित
सौंदर्य-सत्य उसमें हों स्थित
हर विषम घड़ी को दिव्य मुहूर्त करे
मैं शिव हूँ, वह शिवत्त्व को मूर्त्त करे
“रावण शिर दश रुद्रों को भेंट चुका
“इसलिये अवध्य हुआ मुझसे
पर लिप्त अनय में है कबसे
“वह अपना भाग्य स्वयं ही मेट चुका
रावण शिर दश रुद्रों को भेंट चुका
“एकादश रुद्र नहीं उससे पूजित
“प्रभु-कार्य-निमित्त रुद्र जिस क्षण
अपमानित होगा तब रावण
“मेरे प्रभु के हाथों होगा दंडित
एकादश रुद्र नहीं उससे पूजित”
माँ शक्ति के अधर पर सुस्मिति छाई-
“संकल्प आपका उज्ज्वल है
यह निश्चय परम दिव्य पल है
“रुद्रावतार की महत् घड़ी आई”
माँ शक्ति के अधर पर सुस्मिति छाई-
“युग-युग से इसकी सभी प्रतीक्षा में
“कब आप धरा पर उतरेंगे
निर्बल के पल कब सँवरेंगे
“सार्थक शिवत्व कब, ब्रह्म परीक्षा में
युग-युग से इसकी सभी प्रतीक्षा में
“मैं अपनी अनुपम शक्ति उसे दूँगी
“जो उसे अजेय बना देगी
कवियों में गेय बना देगी
“मैं कालजयी वह भक्ति उसे दूँगी
मैं अपनी अनुपम शक्ति उसे दूँगी”
फिर शिव के दिव्य तेज में लीन हुई
शिव ने समाधिहित ध्यान धरा
रसमग्न हो गई वसुंधरा
आगत के स्वागत में तल्लीन हुई
फिर शिव के दिव्य तेज में लीन हुई
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– उद्भ्रांत