तुम शिव हो

तुम शिव हो
तुम साध हो
तुम सृष्टि हो
हम भँवर हैं
तुम समुंदर हो
तुम शिव हो तुम शिव हो
तुम गंगा हो
हमारा मन दिया
लौ जैसे मृगतृष्णा
तुम हवा हो
तुम शिव हो तुम शिव हो
तुम्हारा नील वर्ण
तुम चाँद स्वरूप
तुम विष सघन में
हम प्रभंजन में
तुम शिव हो तुम शिव हो
तुम चिन्तन हरण
शेष जीवन मिलन
तुम मोक्ष दाता
तुम्हारा स्वरूप भाता
तुम शिव हो तुम शिव हो
तुम ब्रह्मानंद स्वरूपा
अखिलानंद स्वरूपा
तुम ही शिव तांडव स्त्रोत
तुम ही न: शिव: शिवम्
तुम शिव हो तुम शिव हो।

*****

– अनिता कपूर


शिव

तप और शिव
मन और चित्त
शिव और पार्वती
जैसे गंगा आरती
जैसे विश्व भारती
गरल पीकर नीलकंठ
युगों युगों तक अंनत
वो हो तो वही हो बस
खिंचे चले आए भोले बरबस
महाकाल देवों के देव
बस भोले भंडारी महादेव
मौत -उत्सव और जीवन -उल्लास
शिव दर्शन और मन निर्मल आकाश
शिवरात्रि सब शांत शाश्वत
ध्यान ओम् और मन आश्वस्त

*****

– अनीता वर्मा


शिव

महादेव, जगदीश्वर
काशी के ईश
विश्व नाथ कहलाए हैं
भाल पर सज़ाए चन्द्र
शीश में गंगा को समाए हैं
मोक्षरूप विभु-व्यापक
ब्रह्म वेद स्वरूप पाए हैं
निज स्वरूप में दिपयमान
उज्जवल पिंगल नेत्रों वाले
सर्पों का हार बना कर
उन्हें ह्रदय से लिपटाए हैं
पद्म राग मणि किरणें
कुंडलों से निकलती हैं
चंदन और अगरू की
भस्म अंग पर रमाए हैं
कैलाश पे धुनि रमा के
डम डम डमरू बजा
भूत प्रेतों को साथी बनाए हैं
संदेह नहीं कोई निःसंदेह हैं वो
आकार नहीं जिनका कोई
निराकार हैं जो
बंधन मुक्त निरापाश
आनंद से परिपूर्ण हैं
नीलकमल सदृश कंठ वाले
नीलकंठेश्वर कहलाए हैं
ब्रह्मा और विष्णु भी जिनके
आगे शीष झुकाए हैं
दक्ष का यज्ञ ध्वंस कर
त्रिपुरा सुर को मोक्ष दिलाए हैं
कालों के महाकाल बन
असुरों को हराए हैं
ऐसे मेरे भोलेनाथ सदा
भक्तों के सहाय हैं
सदा भक्तों के सहाय हैं

(काव्य संग्रह ‘संदूकची’)

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@डॉ ऋतु शर्मा ननंन पाँडे


भोले भंडारी


(कुंडलिया छंद)

भोले भंडारी जपो, महादेव का नाम।
करते नित कल्याण शिव, बनते बिगड़े काम॥
बनते बिगड़े काम, शिवा का कर लो वंदन।
नित्य करो अभिषेक, सदा तुम कर लो चंदन॥
शीश धारते गंग, निगलते भांग के गोले।
गौरा के पतिदेव, कहाते बम-बम भोले॥१॥

शंकर की महिमा बड़ी, भजन करें सब लोग।
शंकर जपते ही बने, सदा सुखद संयोग॥
सदा सुखद संयोग, दिव्य भोले भंडारी।
नित्य जपें सब लोग, जगत के हर नर-नारी॥
हरते सब संताप, ‍जपो तुम नित्य निरंतर।
देवों के हैं देव, सदाशिव भोले शंकर॥२॥

भोले भंडारी सदा, करते प्रभु का ध्यान।
राम नाम का जाप वे, करते नित्य बखान॥
करते नित्य बखान, राम की पूजा करते।
राम नाम से प्रीत, सदा हैं शिवजी धरते॥
कह गुंजन कविराय, जगत नित हरिहर बोले।
राम जगत कर्तार, जगत रक्षक हैं भोले॥३॥

✍… ©️ डॉ॰ अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश


शिव स्तुति


(चौपाई छंद)

शिव शंकर शंभू त्रिपुरारी।
महिमा तेरी सबसे न्यारी॥
मुख-मंडल शोभा अति साजे।
शशि ललाट शिख गंग विराजे॥

कर त्रिशूल अरु दृश्य निराला।
डमरू बाजे नित मतवाला॥
तन शोभे सुन्दर मृगछाला।
भक्तों का है तू रखवाला॥

ओंकार भीमा त्र्यंबकेश्वर।
रामेश्वर मल्लिक नागेश्वर॥
विश्वनाथ सोमा घृष्णेश्वर।
वैद्य केदार महकालेश्वर॥

द्वादश रूपी बसे शिवालय।
‘गुंजन’ जपे तुम्हें देवालय॥
कृपा करो हे डमरूधारी।
पूजे तुम्हें सकल नर नारी॥

नारद सारद सब गुण गायें।
सुगम सरल विधि तुमहीं पायें॥
शिव आजन्मा शिव अविनाशी।
शिव व्यापक घट-घट के बासी॥

दक्षसुता के तुम पति प्यारे।
तीन लोक में सबसे न्यारे॥
गणपति कार्तिक दोउ विराजें।
संग पार्वती सुन्दर साजें॥

महिमा आप न जाय बखानी।
कृपा करो शिव शंकर दानी॥
राम नाम अति शंभू प्यारा।
तीन लोक में तुम्हीं सहारा॥

सकल अंग में भस्म रमाते।
सर्प गले में नित लिपटाते॥
भांग धतूरा शिव को भावे।
देव दनुज मानव सब ध्यावे॥

शिव स्वरूप अति मंगलकारी।
आदि न अंत न तुम अवतारी॥
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।
शेषनाग मुनि ध्यान लगावें॥

गौरी गणपति गोरखनाथा।
शीश झुका नित गावें गाथा॥
कार्तिकेय नित नन्दी गावैं।
जलचर नभचर थलचर ध्यावैं॥

तुम्हें जपें नित सती स्वरूपा।
जनकनन्दनी देव अनूपा॥
कृपा करो अौघड़ विज्ञानी।
तुम सा नहीं दूजा कोउ दानी॥

जय जय जय शिव भाग्य विधाता।
भक्ति भाव से तुम्हें बुलाता॥
महादेव कैलाश निवासी।
दर्शन को अँखियां अब प्यासी॥

*****

✍…डॉ॰ अर्जुन गुप्ता गुंजन
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश


महाशिवरात्रि पर विशेष भवानी छंद में

है पर्व महाशिवरात्रि, शिव- आद्या का परिणय ।
करता हर्षित संसार, बमभोले की जय-जय ।।

अद्भुत दूल्हे का रूप, पहने हैं मृगछाला ।
अंग लगाए हैं भस्म, सर्प गले की माला ।।

शिव शंकर प्रभु हैं आदि, प्रिय भोले भंडारी ।
गिरिजा पाईं त्रिपुरारि, तप कीं हैं अति भारी ।।

अनुपम गिरिजा श्रृंगार, रति भी आज लजाईं ।
शैलसुता रूप अनिंद्य, अविकारी को भाईं ।।

वर हैं प्रभु भोलेनाथ, औघड़ हैं बाराती ।
शंकर गिरिजा अति मुग्ध, बनकर दीया-बाती ।।

भींगे हैं सबके नैन, बिलखें परिजन सारे ।
देतीं माता आशीष, दोनों कुल तू तारे ।।

सुर-नर-मुनि हर्ष अपार, जोड़ा मंगलकारी ।
सब माँग रहे कर जोड़, रहना प्रभु हितकारी ।।

*****

– डॉ पंकजवासिनी, पटना, बिहार

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