
मॉरीशस देश में महाशिवरात्रि का पर्व
(– सुनीता पाहूजा)
महाशिवरात्रि का पर्व भारत में अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। वर्षभर में 12 शिवरात्रियाँ होती हैं परंतु इनमें महाशिवरात्रि का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। यह त्यौहार हर साल फाल्गुन महीने की कृष्ण चतुर्दशी को पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन महाशिवरात्रि की मध्यरात्रि में भगवान शिव का ब्रह्मा से रूद्र के रूप में अवतरण हुआ था। एक मान्यता यह भी है कि यह पर्व देवों के देव महादेव कहे जाने वाले शिव और आदिशक्ति स्वरूपा देवी पार्वती के शुभ-विवाह के दिन के रूप में मनाया जाता है। बाबा भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए यह दिन सबसे अच्छा माना जाता है, शिव-उपासक इस दिन उनकी पूजा-अर्चना से मनवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं। यह त्यौहार भारत से बाहर भी अनेक देशों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। अपने देश के पड़ोसी हिंदू राष्ट्र नेपाल से लेकर सुदूर मॉरीशस, सूरीनाम, गयाना, त्रिनिदाद, फीजी इत्यादि देशों में महाशिवरात्रि का पर्व बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है।

ज्योतिषविदों के अनुसार वर्ष 2021 में 11 मार्च को पड़ने वाली महाशिवरात्रि का अत्यंत विशिष्ट महत्व था क्योंकि इस वर्ष 101 साल बाद इस दिन शिवयोग, सिद्धियोग और घनिष्ठा नक्षत्र का संयोग बनने जा रहा थै। इन शुभ संयोगों के बीच महाशिवरात्रि पर पूजा बेहद कल्याणकारी मानी जा रही थी।
व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए इस वर्ष की महाशिवरात्रि का विशेष महत्व रहा। ईश्वर की कृपा से मॉरीशस स्थित भारतीय उच्चायोग में द्वितीय सचिव (हिंदी एवं संस्कृति) के पद पर तीन वर्ष के लिए मेरी प्रतिनियुक्ति हुई और अक्तूबर 2020 में मैंने अपना कार्यभार ग्रहण किया। इस प्रकार वर्ष 2021 के महाशिवरात्रि पर्व का हिस्सा बनने का और भारत से मीलों दूर होते हुए भी मॉरीशस की इस अनूठी धूमधाम की साक्षी होने का मेरा यह प्रथम अवसर रहा।

मॉरीशस में महाशिवरात्रि मात्र पर्व न होकर एक तीर्थ की भांति है और इसका उत्सव ठीक 10 दिन पहले आरंभ हो जाता है। धूमधाम तो निराली होती ही है, सबसे अधिक प्रभावित करने वाली बात मुझे यह लगी कि बालकों और युवाओं में इसके प्रति खासा उत्साह दिखाई देता है। इस अवसर पर मॉरीशस के बाहर से भी लोग शामिल होने के लिए आते हैं। एक दिलचस्प बात यह है कि जो युवावर्ग देश से बाहर पढ़ने-लिखने या धनोपार्जन के लिए विदेश गया हो, वह भी छुट्टी लेकर विशेषतः महाशिवरात्रि के लिए मॉरीशस आता है ठीक वैसे ही जैसे भारतवासी होली-दीवाली पर अपने परिजनों के पास आने की कोशिश में रहते हैं। मॉरीशस में महाशिवरात्रि एक राष्ट्रीय पर्व है और इस दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है।
मॉरीशस की मेरी एक पत्रकार सखी, सुश्री सविता तिवारी ने मुझे बताया कि इस तीर्थ में भाग लेने वाले युवक तो लगभग 3 से 4 माह पूर्व ही इसकी तैयारी में लग जाते हैं। जी बिलकुल ठीक पढ़ा आपने 3 से 4 माह पूर्व! दरअसल जिस प्रकार भारत में इस अवसर पर भक्तगण लकड़ी से निर्मित मंदिरनुमा आकृति, अर्थात् “कांवड़” का निर्माण करते हैं और फिर लाखों की तादाद में कांवड़िये सुदूर स्थानों से आकर हरिद्वार से गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं, ठीक उसी तरह मॉरिशस में भी शिवरात्रि के पूर्व मॉरीशस के कोने-कोने से हजारों भक्तगण पैदल चलकर गंगा तालाब पहुंचते हैं। अत्यंत परिश्रम और समय लगाकर बनाए गए इनके कांवड़ इतने सुंदर होते हैं कि इन पर से नज़र ही नहीं हटतीं। ये कांवड़ ज़्यादातर बड़े परंतु कई छोटे भी होते हैं और सभी कांवड़ देश की युवा-शक्ति की उच्च कोटि की कलात्मकता का परिचय देते हैं। इनकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। जिस शिद्दत के साथ यह सब किया जाता है उससे यह स्पष्ट होता है कि धर्म और आध्यात्म इनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग हैँ। कांवड़ लेकर अधिकतर तीर्थयात्री अपने घर से गंगा तलाब (जिसका उच्चारण मॉरीशसवासी गंगा तलाओ करते हैं) तक पैदल जाते हैं। समय और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए कुछ श्रद्धालु वाहनों का भी प्रयोग करते हैं। रंग-बिरंगे, इतने नयनाभिराम कांवड़ सड़कों पर उल्लास की लहर बिखेर देते हैं। देशभर में जगह-जगह पर विभिन्न व्यावसायियों द्वारा बनाए गए पोस्टर और बैनर लगाए जाते हैं। इन पर महादेव के चित्र के साथ शुभकामनाएं होती हैं। हर तरफ शिव ही शिव, भीतर-बाहर शिव, सारा वातावरण ही शिवमय हो उठता है!

गंगा तलाब तक जाने वाली सड़क के किनारे निवासियों द्वारा थोड़ी-थोड़ी दूरी पर शिविर लगाए जाते हैं जिनमें कांवड़ियों के लिए जलपान, खान-पान और विश्राम आदि की व्यवस्था की जाती है। हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में इस यात्रा में भागीदार रहता है। शिवरात्रि के दिन लोग व्रत रखते हैं, शिव-पूजन करते हैं, प्रतिमाएं विसर्जित करते हैं और फिर श्रद्धापूर्वक गंगा तलाब से पावन-पवित्र जल लेकर अपने घर ले जाते हैं। कहा जाता है कि यह जल भी गंगा के समान शुद्ध है और महीनों तक खराब नहीं होता। इसके बाद भक्तों द्वारा गंगा तालाब के इस अमृतमयी जल से अपने-अपने घरों के पास शिवालयों में जलाभिषेक किया जाता है।
मॉरीशस में आज गंगा तलाओ नाम से प्रसिद्ध इस सुरम्य प्राकृतिक झील को कभी परी तलाओ के नाम से जाना जाता था। 110 वर्ष पूर्व भारत की पवित्र गंगा से जल लाकर `परी तालाब’ में डाला गया और तब इसे `गंगा तालाब’ नाम दे दिया गया। भारत और मॉरीशस के दीर्घकालिक, ऐतिहासिक और भावनात्मक संबंधों को पवित्र गंगाजल ने और भी प्रगाढ़ बना दिया है। वर्तमान में इसका केवल नाम ही गंगा तलाओ नहीं है, इसका महत्व भी वही है जो भारत में गंगा मैया का है। यहाँ के निवासी किसी भी शुभ कार्य के लिए गंगा दर्शन के लिए अवश्य जाते हैं। माता-पिता अपनी संतान को सबसे पहले गंगा तलाओ ले जाते हैं, कोई कार इत्यादि खरीदता है तो वहीं जाकर वाहन-पूजा करवाता है। मॉरीशस के हिंदू परिवार व्रत-उपवास, पर्व-त्यौहार के दिन और विशिष्ट दिनों पर गंगा तलाओ अवश्य जाते हैं। विदेश से आने वाले सभी पर्यटकों को भी गंगा तलाओ जाने की बड़ी उत्सुकता रहती है। भारत से जब भी प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति अथवा अन्य कोई विशिष्ट जन मॉरीशस देश में औपचारिक यात्रा पर आते हैं तो उनके कार्यक्रम में गंगा-दर्शन और गंगा-आरती की व्यवस्था अवश्य की जाती है।

मॉरीशस आने के कुछ ही दिन बाद मुझे एक मित्र दंपत्ति के साथ गंगा तलाओ जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। सचमुच अत्यंत पावन-पवित्र वातावरण था, हवा के कण-कण में आध्यात्मिकता का अहसास हो रहा था। हल्की-हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी जो हवा में और भी आनंद घोल रही थी। मॉरीशस के दक्षिण-पश्चिम में स्थित गंगा तलाव सवान्ने ज़िला के दूरस्थ पर्वतीय इलाके में एक शांत ज्वालामुखी पर स्थित है, वस्तुतः यह एक झीलनुमा गड्ढा है जो समुद्र तट से 1800 किलोमीटर ऊपर है। गंगा तलाब को ग्रांड बेसिन और फ़्रैंच में बो बांसे भी कहा जाता है।
गंगा तलाओ पहुँचने से पहले दूर से दिखाई देने लगती हैं तलाओ के तट पर बनी दो भव्य मूर्तियाँ। कांसे की बनी माँ दुर्गा की 108 फीट ऊँची प्रतिमा विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा है, विशालकाय शेर के साथ इसकी भव्यता देखते ही बनती है। दूसरी प्रतिमा भी कांसे की बनी, हाथ में त्रिशूल लिए खड़े शिव जी की 108 फीट ऊँची प्रतिमा है, दिव्यता से परिपूर्ण! कला का अनूठा नमूना। महादेव के चरणों तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनी हैं, तस्वीर खिंचवाने के लिए जब हम ऊपर चढ़े तो उनके चरणों की बनावट देख कर ही मंत्रमुग्ध हो गए, उनके नाखून तक इतनी सुंदरता से बनाए गए हैं, बहुत देर तक वहां से उठने की इच्छा ही नहीं हुई। इसे मंगल महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।

कुछ कदम आगे जाते ही गंगा जी के दर्शन होते हैं, अत्यंत रमणीक स्थल है, चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा, पहाड़ियाँ जिन पर हरियाली ही हरियाली, प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। गंगा के तट पर बना है एक भव्य मंदिर, लगभग सभी देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं यहाँ, एक-एक मूर्ति अप्रतिम, बहुत ही खूबसूरती से गढ़ी गईं और बड़े प्रेम से सजाई-सँवारी गईं। आप बड़ी आसानी से भूल जाते हैं कि भारत में नहीं, विदेश में हैं।
इसके अलावा भी फरवरी 2021 में भारत के विदेश मंत्री माननीय श्री जयशंकर जी के मॉरीशस दौरे के दौरान भी उनके द्वारा गंगा आरती की व्यवस्था करनाने के लिए दो बार गंगा तलाओ जाने का अवसर मिला। हर बार एक नई-सी अनुभूति हुई।
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर एक सप्ताह पूर्व, 6 मार्च 2021 को गंगा आरती में शामिल होने के लिए निमंत्रण था, मन अति प्रफुल्लित था। संयोग से कार्यालय के एक सहयोगी का और भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन की अध्यक्ष श्रीमती सरिता बुद्धू जी का साथ भी मिल गया। आदरणीय सरिता जी को विश्वभर में सभी ‘दीदी’ कहकर पुकारते हैं। रास्ते भर में वे अपने बचपन और युवावस्था के समय के महाशिवरात्रि के अनुभव साझा करती रहीं, एक घंटे का सफर कब कट गया पता ही नहीं चला।
गंगा तालाओ पर हिंदू संगठनों द्वारा महाशिवरात्रि के आयोजन की समस्त व्यवस्था की जाती है। हम जब वहाँ पहुँचे तो मंच पर बालकों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जा रहा था। औपचारिक स्वागत के बाद सभी विशिष्ट अतिथियों को ससम्मान गंगातट पर गंगा आरती के लिए आमंत्रित किया गया। बहुत ही भव्य कार्यक्रम था तट पर भी। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर युवक और युवतियां माँ गंगा की स्तुति कर रहे थे। प्रत्येक स्तुतिकर्ता के सामने एक बड़ी-सी थाली में फूल, दीप-धूप, अगरबत्ती, पूजा सामग्री सजी थी। पूरे विधि-विधान से माँ गंगा की आरती की गई। विशेष अतिथि के तौर पर आरती करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। मन अत्यंत प्रफुल्लित अनुभव कर रहा था। आरती के तुरंत बात प्रसाद रूप में भोजन की व्यवस्था थी।
लौटने का समय हो गया था। भारत जैसी धूमधाम थी, चहल-पहल व उत्साह था, ऐसा वातावरण कि एक पल को भी अहसास नहीं होता कि हम भारत से 5100 मील दूर हैं। इतने लोग शामिल थे कि लग रहा था मानो पूरा मॉरीशस ही वहाँ उमड़ पड़ा हो, एक मेले की तरह। पर इस मेले में कहीं भी हुड़दंग नहीं था, चारों ओर शुद्ध आध्यात्मिकता की सुगंध। लौटते हुए भी रास्ते में अनेक कांवड़ मिले जो गंगा तलाओ की तरफ जा रहे थे। इतने सुंदर कांवड़, महादेव की मूर्ति के साथ किसी कांवड़ में मोर बने थे तो किसी में मगरमच्छ, रंग-बिरंगे फूलों और काग़ज़ों से सजे – हर बार लगता कि गाड़ी रुकवा कर कैमरे में कैद कर लें, कहीं-कहीं कोशिश भी की, पर अंधेरा हो चला था और वाहनों की भीड़ से रास्ता रुकने लगा था। परंतु गंगा तलाओ से गंगा जल लेने जा रहे कांवड़ियों का उत्साह तो देखते ही बनता था। वस्तुतः महाशिवरात्रि का यह पर्व धार्मिक-आध्यात्मिक श्रद्धा से बढ़कर सामाजिक चेतना का भी पर्व है। कहीं न कहीं यह इस बात की ओर ध्यानाकर्षित करता है कि पानी सभी जीवों के लिए, इस धरती के लिए, पर्यावरण के लिए नितांत आवश्यक वस्तु है। जल है तो जीवन है।
मॉरीशस में गंगा तलाओ से जल ले कर जाने और फिर उस जल से अपने-अपने घर में या आसपास के मंदिर में जाकर शिव का अभिषेक करने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। मॉरीशसवासी बताते हैं कि सन 1897 में दो पुजारियों ने सपने में यह देखा की `ग्रैंड बेस्सिन’ के तलाब का पानी जानवी से उत्पन्न हुआ और गंगा जी का एक हिस्सा बन गया। पुजारियों के इस सपने की खबर पूरे मॉरीशस में फैल गई। इसी वर्ष तीर्थयात्री `ग्रैंड बेस्सिन’ तक चल कर गए, तलाब में से पानी लिया और महाशिवरात्रि के पर्व पर शिव जी को अर्पित किया। बस तब से यह परंपरा बन गई कि हर शिवरात्रि को श्रद्धालुजन गंगा तलाब तक पैदल यात्रा करते हैं। इस गंगा तलाब का संचालन मॉरीशस सनातन धर्मं मंदिर संस्थान और हिन्दू महासभा करती है। धर्म और संस्कृति के प्रति यह आस्था मॉरीशस के प्राकृतिक सौंदर्य में चार चाँद लगा देती है।

आरती और प्रसाद रूप में भोजन ग्रहण करने के बाद हम वापस चल दिए। वापसी पर भी अनेक कांवड़ देखने को मिले। घर पहुँचते-पहुँचते रात के आठ बज गए थे पर थकावट का कहीं नामो-निशान न था अपितु मन अत्यंत प्रसन्न था। इसके बाद 11 मार्च को प्रथम पहर की पूजा का भी निमंत्रण था। मन बड़ी बेसब्री से 11 तारीख का इंतज़ार करने लगा, पर वक्त को तो कुछ और ही मंज़ूर था। मॉरीशस देश में कोविद मामले होने की ख़बरें आने लगी थीं। मामले बढ़ते देख सरकार ने 10 मार्च से लॉक-डाउन की घोषणा कर दी। 11 मार्च की महाशिवरात्रि और 12 मार्च को देश के 53वें स्वतंत्रता दिवस और 29वें गणतंत्र दिवस को लेकर जितना उत्साह था, सब ठंडा पड़ गया। घर पर रहने के कड़े आदेश जारी कर दिए गए थे।
परंतु ऐसे में भी श्रद्धालुओं की भक्ति की प्रबलता में कोई कमी नहीं आई। मंदिरों और हिंदु संगठनों ने निर्णय लिया कि चारों पहर की पूजा अवश्य की जाएगी और वे अपनी-अपनी फेसबुक के माध्यम से इनका सीधा प्रसारण करेंगे ताकि सभी लोग अपने-अपने घर से भी समस्त पूजा विधिवत् कर पाएं। टेलीविज़न पर भी गत वर्षों के भजनों और आयोजनों की रिकार्डिंग दिखाई जा रही थी। वातावरण अब भी शिवमय ही बना हुआ था।
शिव-शक्ति मंदिर, ला लोरा गाँव में आचार्य पूरण तिवारी जी और उनकी पत्नी श्रीमती सविता तिवारी जी द्वारा सम्पन्न की जा रही पूजा में मैं भी, फेसबुक के माध्यम से, प्रथम पहर की पूजा के समय से जुड़ी रही। प्रत्येक पहर की पूजा के बाद शिवलिंग का शृंगार किया गया। चौथे पहर की पूजा का दृश्य सामने आया तो मन सचमुच रोमांचित हो उठा। इस बार शिवलिंग के शृंगार में हृदय और बुद्धि दोनों का भरपूर प्रयोग किया गया था। शिवलिंग को मॉरीशस देश के झंडे के चारों रंगों से इस तरह सजाया गया था कि शिवभक्ति और देशभक्ति का अनूठा संगम प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा था, कितनी नवीन, कलापूर्ण सोच! आनंद भी आ गया और इस दंपत्ति पर गर्व भी। सच पूछिए तो इस लेख का अंतिम भाग मैंने उनकी पूजा के साथ-साथ ही पूरा किया था। लेख के समापन तक चौथे पहर की पूजा शुरू हो चुकी थी, सुबह के 4 बज रहे थे और हवन चल रहा था। मैंनें उनके साथ ही ऑनलाइन आरती की और शिव बाबा से प्रार्थना भी कि वे भारत और मॉरिशस के साथ-साथ समस्त जगत को करोनामुक्त कर दें और ऐसी कृपा करें कि सारे संसार में स्वास्थ्य, सुख और शांति रहे।

वर्ष 2022 में गंगा तलाब पर मॉरीशस गणराज्य के प्रधानमंत्री जी की माता जी, आदरणीय सरोजिनी जगन्नाथ जी व भारतीय उच्चायुक्त महोदया, महामहिम श्रीमती नंदिनी सिंगला जी के साथ अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने का, महाशिवरात्रि की चारों पहर की पूजा में शामिल होने का, इस पावन अवसर पर भारत से लाए गंगाजल को इस तालाब में मिलाने का और क्रेन के ज़रिए ऊपर जाकर 108 फुट ऊँची मंगल महादेव की मूर्ति पर जलाभिषेक करने का परम सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ। शिवजी की कृपा से मिले ये सुखद अनुभव मेरे जीवन का अविस्मरणीय हिस्सा हैं। हर हर महादेव !


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